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असली दवाइयों की काली छाया…

आशुतोष कुमार सिंह

भगवान के बाद किसी पर आम लोगों का सबसे ज्यादा भरोसा है तो वो हैं दवा, डॉक्टर और दुकानदार… दवा, डॉक्टर और दुकानदार के इस त्रयी के प्रति हमारी भोली-भाली जनता इतनी अंधभक्त है कि डॉक्टर साहब जितनी फीस मांगते हैं, दुकानदार महोदय जितने का बिल बनाते हैं, उसको बिना लाग-लपेट के अपनी घर-गृहस्थी को गिरवी रखकर भी चुकता करती है.

इसी परिप्रेक्ष्य में एक छोटी सी घटना से अपनी बात कहना चाहूंगा. पिछले दिनों मालाड, मुम्बई स्थित एक अस्पताल में मेरे मित्र की पत्नी अपना ईलाज कराने गईं. डॉक्टर ने उन्हें स्लाइन (पानी बोतल) चढ़ाने की बात कही. अस्पताल परिसर में स्थित दवा दुकानदार के पास डाक्टर द्वारा लिखी गई दवाइयों को खरीदने मैं खुद गया. डॉक्टर ने जो मुख्य दवाइयां लिखी थी उसमें मुख्य निम्न हैं-

डेक्सट्रोज 5%, आर.एल, आई.वी.सेट, निडिल, डिस्पोजल सीरिंज और कुछ  टैबलेट्स…

डेक्सट्रोज 5% का एम.आर.पी-24 रूपये, आर.एल का-76 रूपये, आई.वी.सेट का-117 रूपये, निडिल का-90 रूपये और डिस्पोजल सीरिंज का 8 रूपये था.

मेरे लाख समझाने के बावजूद दवा दुकानदार एम.आर.पी. (मैक्सिमम् रिटेल प्राइस) से कम मूल्य पर दवा देने को राजी नहीं हुआ. वह कहते रहा कि मुम्बई दवा दुकानदार एसोसिएशन ने ऐसा नियम बनाया है जिसके तहत वह एम.आर.पी. से कम पर दवा नहीं दे सकते. मजबूरी में मुझे वे दवाइयां एम.आर.पी. पर खरीदनी ही पड़ी.

गौरतलब है कि डेक्सट्रोज 5% का होलसेल प्राइस 8-12 रूपये, आर.एल का 10-17 रुपये, निडिल का 4-8 रुपये, डिस्पोजल सिरिंज का-1.80-2.10 रूपये तक है. वहीं आई.वी. सेट का होलसेल प्राइस 4-10 रूपये है.

ऐसे में सबकुछ जानते हुए मुझे 117 (आई.वी.सेट) +90 (निडिल) +76 (आर.एल) +24 (डेक्सट्रोज) +8 (डिस्पोजल सिरिंज) का देना पड़ा। यानी कुल 315 रुपये देने ही पड़े.

ध्यान देने वाली बात यह है कि इन दवाइयों का औसत होलसेल प्राइस 10+14+6+2+8=40 रुपये बैठता है. यानी मुझे 40 रूपये की कुल दवाइयों के लिए 315 रूपये वह भी बिना किसी मोल-भाव के देने पड़े. इस मुनाफे को अगर प्रतिशत में काउंट किया जाए तो 900 फीसद से भी ज्यादा का बैठता है.

ऐसे में यह वाजिब सा सवाल है कि इस देश की गरीब जनता असली दवाइयों की इस काली छाया से कब मुक्त होगी. एम.आर.पी. के भूत का कोई तो ईलाज होना चाहिए…

(लेखक ‘संस्कार पत्रिका’ से जुड़े हुए हैं)

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