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वृद्धाश्रम में कराह रहा है क्रांतिवीर

विनायक विजेता

‘अगल बगल हट, आ रहे हैं सुरेश भट्ट’… 1974 के आंदोलन में यह नारा तब गुंजता था जब सुरेश भट्ट नामक क्रांतिवीर किसी कार्यक्रम या प्रदर्शन की अगुवाई करने पहुंचते थे. उस आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाला नवादा का यह सपूत आज दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में अपनी कुर्बानियों को याद कर आंसू बहा रहा है. जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके सुरेश भट्ट की सुध वैसे किसी समाजवादी ने लेना गवारा नहीं समझा जो सुरेश भट्ट को कभी अपना राजनैतिक गुरु माना करते थे. चाहे राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद हों या बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार…

1974 आंदोलन की उपज शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो सुरेश भट्ट को नहीं जानता हो. मूल रुप से नवादा के निवासी सुरेश भट्ट की गिनती एक सम्पन्न परिवार में की जाती थी. नवादा में एक सिनेमा हॉल, अच्छी-खासी ज़मीन के मालिक सुरेश भट्ट की अधिकांश सम्पत्ति 1974 के आंदोलन के क्रम में ही बिक गई. कभी इस क्रांतिवीर के पीछे कतार में खड़े रहने वाले नेता और कथित समाजवादी आज कई महत्वपूर्ण राजनीतिक ओहदे पर हैं, पर किसी ने अपने राजनीतिक गुरु की सुध नहीं ली.

मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, जिन्होंने 1974 के आंदोलन की याद में जेपी स्वतंत्रता सेनानी सम्मान योजना की शुरुआत की, उन्होंने भी यह कभी जानने की कोशिश नहीं की कि जयप्रकाश नारायण के बाद उस आन्दोलन के दूसरे सबसे चर्चित शख्स सुरेश भट्ट कहां और किस स्थिति में है. कई नेताओं, जिनमें लालू प्रसाद भी शामिल हैं को सुरेश भट्ट की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया गया. ऐसे नेताओं ने अफ़सोस तो ज़ाहिर किया पर दिल्ली के संबद्ध वृद्धाश्रम में जाकर ज़िन्दगी की अंतिम सांसे और आर्थिक तंगी से जुझ रहे सुरेश भट्ट से मिलना उचित नहीं समझा.

उल्लेखनीय है कि कई बीमारियों से ग्रस्त सुरेश भट्ट पिछले चार वर्षों से भी अधिक समय से नॉर्थ दिल्ली के आज़ाद नगर में रेडियो कॉलोनी स्थित रोजरी ओल्ड एज होम में रह रहे हैं. उनकी बीमारी ही ऐसी है कि परिवार वाले चाहकर भी उन्हें नवादा नहीं ला सकते, क्योंकि उनकी चिकित्सा कर रहे चिकित्सकों ने उनका दिल्ली में ही रहना ज़रुरी बता दिया है. इन्हीं लाचारियों के कारण उनके परिजनों ने उन्हें वृद्धाश्रम में रख छोड़ है.

सुरेश भट्ट का जवान और इकलौता बेटा प्रकाश बेरोजगार है. मुंबई में रह रही बड़ी बेटी असीमा भट्ट, जो अभिनय क्षेत्र से जुड़ी हैं, हमेशा दिल्ली आकर अपने पिता का हालचाल लेती रहती हैं.

पत्नी सरस्वती भट्ट और बेटी प्रतिभा भट्ट, सुरेश भट्ट को जेपी आन्दोलन पेंशन देने का आग्रह लेकर कुछ माह पूर्व जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ट नारायण सिंह सहित कई नेताओं से मिले पर खुद को समाजवादी कहने वाले उन नेताओं ने इन्हें सचिवालय जाने की सलाह दे दी.

सरस्वती भट्ट और बेटी प्रतिभा भट्ट जेपी सम्मान पेंशन योजना का लाभ पाने के लिए कई बार सचिवालय में भटक चुकी हैं और आखिरकार उनके पास चुप रहने के अलावा अब कोई दूसरा रास्ता नहीं है. बिहार के नेताओं को इस बात की थोड़ी सी भी शर्म नहीं है कि जिसके बदौलत उनकी राजनीतिक पहचान बनी उसे ही वे भूल रहे हैं. वैसे भी राजनीति में शर्म कहां!

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