तरुण वत्स
भारत में आरटीआई यानि सूचना के अधिकार को साल 2005 में लागू किया गया था. इसके लिए हर सरकारी, अर्द्ध-सरकारी कार्यालयों में एक सूचना विभाग बनाया गया और इन विभागों में एक सूचना अधिकारी भी नियुक्त किया गया. सरकार जनता को उसके इस अधिकार को बढावा देने के लिए आजकल सरकारी विज्ञापन भी प्रकाशित व प्रसारित कर रही है.
लोग अपनी विभिन्न तरह की सूचनाएं को पाने के लिए सूचना विभागों में आवेदन करते हैं. कई बार जवाब आसानी से मिल जाता है तो कई बार जवाब के नाम पर सिर्फ कागजों का पुलिंदा पकड़ा दिया जाता है जिसमें गोलमोल जवाब के अलावा कुछ नहीं होता. बाहुबलवाद व गुंडाराज यहां भी चलता है जिसके कारण कई बार आवेदन करने वाले को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है.
हाल ही में पूर्वोत्तर के प्रमुख आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई पर गुवाहाटी में डंडों व अन्य धारदार हथियारों से हमला हुआ. गोगोई बाढ़ की स्थिति का जायजा लेने धर्मपुर जिले के पुन्नी गांव में गए थे. उन्होंने नलबाड़ी पुलिस स्टेशन में एफ.आई.आर. दर्ज कर आरोप लगाया है कि उन्हें छह युवा कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने असम के कृषि और संसदीय मामलों के मंत्री नीलमणि सेन डेका के कहने पर पीटा है. डेका धर्मपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. गंभीर रूप से घायल गोगोई अस्पताल में भर्ती हैं. अखिल गोगोई टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य भी है.
यह पहली बार नहीं हुआ कि किसी आरटीआई कार्यकर्ता के साथ बदसलूकी व मारपीट का मामला सामने आया हो. हर हफ्ते ऐसे कोई न कोई घटना खबर बनती है और फिर गुम हो जाती है. कई आरटीआई कार्यकर्ता तो सूचना की कीमत अपनी जान गंवाकर चुका चुके हैं.
एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स (एसीएचआर) की रिपोर्ट ‘आरटीआई एक्टिविस्ट : सिटिंग डक्स ऑफ इंडिया’ में कहा गया है कि जनवरी 2010 से लेकर अगस्त 2011 तक शेहला मसूद सहित कम से कम 12 कार्यकर्ता मारे गए हैं. इन सब की महज इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि ये सभी देश में ‘पारदर्शिता को बढ़ावा और प्रत्येक सरकारी प्राधिकरण के कामकाज में विश्वसनीयता’ के बारे में जानकारी चाहते थे.
मध्यप्रदेश की शेहला मसूद, अहमदाबाद के आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा, पुणे के सतीश शेट्टी,महाराष्ट्र के ही दत्ता पाटिल, विट्ठल गीते और अरुण सावंत, आंध्र प्रदेश के सोला रंगाराव, बिहार के बेगूसराय के शशिधर मिश्र, एरानापल्यता के आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश, विजय बहादुर, सत्येन्द्र दुबे, एस. मंजूनाथन,अमरनाथ पाण्डे ने सूचना पाने की कीमत अपनी जान देकर चुकाई है. ये लोग इस बात की मिसाल बन गये कि यदि देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार या बाहुबलियों के खिलाफ आवाज़ उठाओगे तो आपकी आवाज को बेरहमी से कुचल दिया जाएगा. ऐसी बहुत सी खबरें हैं जो इस बात की ओर संकेत करती हैं कि पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से बनाए गए इस अधिकार का उपयोग हो तो रहा है लेकिन कहीं न कहीं इस पर एक लगाम कस रखी है.
ऐसी बहुत सी खबरें आईं जिन्होने इस ओर साफ संकेत दिए कि सूचना पाने के लिए अपनी जान को खतरे में डालना पड़ेगा. भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने वाली शेहला मसूद को भोपाल के कोह-ए-फिजा इलाके में उनके घर के बाहर ही उनके गले में गोली मार कर हत्या कर दी थी. उनकी हत्या से समूचा मध्य प्रदेश और देशभर के आरटीआई कार्यकर्ताओं को एक बड़ा झटका लगा था. झारखंड के लातेहार ज़िले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना यानि मनरेगा को लागू करने के लिए काम कर रहे एक आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई थी.
नियामत अंसारी नाम के इस कार्यकर्ता को घर से निकालने के बाद पीटा गया जिसके बाद घायल नियामत की अस्पताल में मौत हो गई. कहा जाता है कि अंसारी और ड्रेज़ ने मिलकर लातेहार के रांकीकाला इलाक़े में मनेरगा में धांधली का पर्दाफ़ाश किया था जिसके बाद मेनिका के पूर्व बीडीओ कैलाश साहू से कथित तौर पर दो लाख रुपए बरामद किए गए थे. ड्रेज़ उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने मनेरगा का खाका तैयार किया था.
आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी की 2010 में तलेगांव दाभाडे स्थित उनके घर के पास धारदार हथियार से वार कर हत्या कर दी गई थी. उन्होंने सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) का इस्तेमाल करके ज़मीन से संबंधित बहुत से घोटालों का पर्दाफाश किया था. गुजरात में भी एक आरटीआई कार्यकर्ता नदीम अहमद सैयद की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. नदीम अहमद सैयद जुझारू आरटीआई कार्यकर्ता तो थे ही, साथ ही 2002 में गुजरात में हुए नरोदा पटिया दंगे के अहम गवाह भी थे.
सूचना के बदले मौत का खेल एक आम कार्यकर्ता के साथ ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े अधिकारियों के साथ भी खेला गया है. महाराष्ट्र स्थित मालेगांव के अपर जिलाधिकारी यशवंत सोनवाणो को तेल माफिया ने दिनदहाड़े जिंदा जला दिया. राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी के परियोजना निदेशक सत्येंद्र दुबे की बिहार में गया के निकट गोली मार हत्या कर दी गयी. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर शणमुगम मंजूनाथ को यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में गोली मार दी गयी थी.
विजय बहादुर सिंह ने वित्त मंत्रालय में उच्च अधिकारियों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश की थी. अपने काम में विजय कामयाब भी हुए. भ्रष्टाचार के खिलाफ विजय के कदम से इस मामले में संलिप्त अधिकारी नाराज हो गये जिसका परिणाम विजय बहादुर को अपनी नौकरी गंवा कर देना पड़ा. इसके बाद एक और मामला सामने आया. सत्येंद्र दुबे नामक व्यक्ति ने सड़क योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिख कर इसकी सूचना दी. सत्येंद्र के इस कदम से भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों ने मिल कर इन्हें मरवा दिया.
देश में ऐसे हजारों आरटीआई कार्यकर्ता हैं जिन्हें सुरक्षा प्राप्त नहीं है फिर भी वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं. जब आरटीआई कार्यकर्ता अपनी सुरक्षा की मांग करते हैं तो सरकार हर बार की तरह उन्हें आश्वासन का झुनझुना थमा देती है. आरटीआई कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार साथ इसलिए नहीं दे रही है क्योंकि ज्यादातर भ्रष्टाचार के मामलों में अधिकारी ही संलिप्त होते हैं. सूचना साझा होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई तो होती ही है, सरकार की भी खूब किरकिरी होती है.
भारत में ऐसे हर आरटीआई कार्यकर्ता की मौत के बाद आरटीआई एक्ट में संशोधन का थोड़ा हो-हल्ला मचाया जाता है. कुछ दिनों बाद सारा मामला शांत हो जाता है और यह कानून ठंड़े बस्ते में चला जाता है.
भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों की सुरक्षा के लिए कानून सिर्फ चार लोकतांत्रिक देशों में ही बने हैं. अमेरिका पहला देश है जिसने इस कानून को 1989 में ही लागू कर दिया था. इसके बाद इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने भी ऐसे ही कानून को अपने देश में पारित किया. हमारे देश की संसद में पिछले कई सालों से यह विचाराधीन पड़ा है. सोनिया गांधी की अध्यक्षता में चल रही नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के आरटीआई एक्ट संशोधन को लेकर लगातार बयान आते रहे हैं. अपनी ही सरकार द्वारा बनाए गये कानून कभी किसी को पसंद नहीं आते तो कभी किसी के लिए आपत्ति का कारण बन जाते हैं. हर बार इस कानून के पारित होने में कोई न कोई समस्या सामने आ खड़ी होती है. यदि भारत में इस कानून को लागू कर दिया जाए तो वो दिन दूर नहीं जब देश का कोई भी नागरिक निडरता से देश में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने का साहस कर सकेगा.
(यह लेखक के अपने विचार हैं. BeyondHeadlines आपके विचार भी आमंत्रित करती है. अगर आप भी किसी विषय पर लिखना चाहते हैं तो हमें beyondheadlinesnews@gmail.comपर ईमेल कर सकते हैं.)