रहीसुद्दीन ‘रिहान’
राजधानी दिल्ली की लाइफ लाइन बन चुकी दिल्ली मेट्रो रेल ने जब से अपनी एक लाइन को दो महीने के लिए बंद करने की घोषणा की है तब से दिल्ली की जनता की लाइफ में खलबली मच गई है. नई दिल्ली-एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाईन को बंद करने को लेकर लिये गए फैसले के बारे में यात्रियों की सुरक्षा की दलील दी गई है. इन दलीलों को सुनने के बाद रोजाना एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पर आरामदायक सफ़र का लुत्फ उठाने वाले लोग एक ओर डीएमआरसी को कोसते हुए नहीं थक रहे तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग अपने आप को खुशकिस्मत मानकर खु़दा का शुक्रिया भी अदा कर रहे हैं.
दिल्ली मेट्रो की इस लाइन को चलाने वाली कंपनी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने इस लाइन के खंभों और गार्डरों को जोड़ने वाली 2100 बीयर रिंगों में से 250 में दरार होने की जानकारी डीएमआरसी को दी है. जिस वजह से इस लाइन पर मेट्रों के पहियों की स्पीड बढ़ते ही पिलारों में कंपन होती थी. इसके बाद से रिलायंस और डीएमआरसी ने इस रूट को बंद करने का फैसला लिया है जो जनता की सुरक्षा की दृष्टि से जाय़ज है.
लेकिन इस रूट को बंद करने की घोषणा के साथ ही रिलायंस और डीएमआरसी पर कई सवाल उठते है कि क्या 24 फरवरी 2001 को चालू हुई इस लाइन की जांच-पड़ताल करें बिना ही दोनों कंपनियों ने इस रूट पर मेट्रो के परिचालन की अनुमति दे दी थी? इसके अलावा लाइन में होने वाली कंपन को ढूढनें में 16 महीनें का इतना लंबा समय क्यों लगा? जबकि डीएमआरसी के पूर्व प्रबंध निदेशक ई. श्रीधरन ने इस लाइन को कमजोर बताया था. इसके अलावा मेट्रों रेल के दौड़ने के लिए बिछी पटरियों के आसपास रहने वाले लोगों की शिकायत पर गौर क्यों नहीं किया. जिसकी शिकायत उन्होंने डीएमआरसी से पिछले साल ही की थी कि मेट्रों के गुज़रने के दौरान उनके घरों में कंपन होती है.
देश की राजधानी दिल्ली में 24 दिसम्बर 2002 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने हाथों से नारियल फोड़कर मेट्रो के ‘रेड लाइन‘, शाहदरा से पुल बंगश (अब दिलशाद गार्डन से रिठाला) के रूट पर मेट्रो रेल के परिचालन को हरी झंडी दिखाई थी. तब के शाहदरा से रफ्तार पकड़े मेट्रो के पहिये 11 साल में आधी दिल्ली में घूमने के बाद एनसीआर के गुड़गाव, नोएडा होते हुए आज गाजियाबाद में पहुंच गई है. तब गिनती के छह-सात मेट्रो स्टेशन थे जिनकी संख्या आज 35 अंडरग्राउंड सहित कुल 142 हो गई है. इसके अलावा ‘रेड लाइन‘ से शुरू हुई लाइन, पीली, नीली, हरी होती हुई आज-एयरपोर्ट एक्सप्रेस के साथ 6 लाइनों तक पहुंच गई है. चार लाइनों पर यात्रियों की बढ़ी संख्या के बाद उन लाइनों पर अब छह कोचों की मेट्रो रेल में बैठकर यात्री आरामदायक सफर कर रहे हैं. मौजूदा समय में 189 किलोमीटर लंबी बिछी पटरियों पर मेट्रो दौड़ रही है.
दिल्ली में 2002 में जब मेट्रों के पहियों ने गति पकड़ी थी तब हरेक राजनीतिक पार्टी के नेता ने गर्व से अपना सीना चैड़ा किया और मेट्रो रेल को भारत के विकास का उदाहरण बताया. लोगों ने देश के कोने-कोने से आकर एक बार मेट्रों की सवारी करने के लिए कई किलोमीटर लंबी लाईनों में लगकर प्लास्टिक का टिकट लिया. मेट्रों में बैठने के उत्साह के कारण कई लोगों ने टिकट की लाईनों को तोड़ा तो मेट्रो में सफर की बजाय पुलिस की गालियां और डंडे भी खाए.
खैर, ये सब ‘मेट्रो‘ के लिए उस जनता का दीवानापन था जो पुलिस की गालियां और डंडे खाने के बाद भी अपने आप को मेट्रो में सफर करने के बाद सौभाग्यशाली समझ रही थी. शायद देश की जनता मेट्रो के सफर के दौरान जापान में अपने होने का एहसास कर रही थी.
लेकिन अब सवाल यह उठता है कि मेट्रो में इतनी बड़ी खामी होने के बावजूद रिलायंस और डीएमआरसी ने मौत के पिलरों पर लोगों को ‘आरामदायक’ सफ़र कराना जारी क्यों रखा. दिल्ली मेट्रो की इतनी बड़ी गलती के बाद भी जनता चुप है, लेकिन क्यों? मेट्रो लाइन में इतनी बड़ी खामी के दिखाई देने के बाद भी सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता भी बिल्कुल शांत बैठे है तो क्यों? अपनी राजनीतिक रोटियां को सेकनें के लिए साप्रदायिक हिंसा, दंगा-फसाद कराने वाले नेताओं के मन में ये सवाल क्यों नहीं उठ रहा है कि यदि कोई हादसा हो गया होता तो? खैर खुदा का शुक्र है कि बिना कीमत चुकाए ही लापरवाहियां सामने आ गई हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होना चाहिए की जिसने गलती की है उसे सजा न मिले. दिल्ली मेट्रो को इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच करवाकर दोषियों को सजा देनी ही चाहिए.
जांच का सबसे बड़ा कारण दिल्ली मेट्रो में देश की जनता का विश्वास भी है. मेट्रो भारत में ईमानदारी, पारदर्शी एवं स्वस्थ व्यवस्था और सुचारु संचालन का प्रतीक है. यदि मेट्रो पर उठे सवालों का जवाब नहीं मिला तो फिर देश में ईमानदारी और कार्यनिपुणता की मिसाल देने के लिए कोई उपमा नहीं बचेगी. मेट्रो को अपनी खुशकिस्मती समझते हुए इस पूरे प्रकरण से उठे सवालों के जवाब जल्द से जल्द देने चाहिए.
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