अमित कर्ण
देश में दवाइयों के उत्पादन पर सरकार बेख़बर है. उसे नहीं मालूम कि कम्पनियां कौन सी दवाई कितनी मात्रा में बना रहीं है. हैरत की बात यह है कि साधारण से लेकर गंभीर बीमारियों के इलाज में काम आने वाली कुछ दवाईयों के उत्पादन का डाटा सरकार के पास पिछले तीन बरसों से नहीं है. राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण की वेबसाइट पर विटामिन, सेडेटिव्स, सल्फा ड्रग्स, एंटीपायरेटिक समेत ज्यादातर श्रेणियों की दवाइयों की कुछ दवाओं का उत्पादन डाटा नहीं है.
दवाइयों में मुनाफाखोरी के खिलाफ ‘कंट्रोल एम.एम.आर.पी.’ अभियान चला रही गैर सरकारी संस्था ‘प्रतिभा जननी सेवा संस्थान’ के राष्ट्रीय समन्वयक आशुतोष कुमार सिंह के मुताबिक, स्थिति दयनीय है. फौलिक एसिड, जेंटामायसिन, विटामिन बी सीरिज की बी 1, बी 12, बी 2, 6, डी 3 का डाटा उपलब्ध नहीं है. गौरतलब है कि फॉलिक एसिड प्रेग्नेंट या गर्भवती महिलाओं को दी जाती है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को दी जाने वाली यह सबसे महत्वपूर्ण दवा है. इससे, ज़च्चा-बच्चा का पोषण होता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर कदम बढ़ाने का दंभ भरने वाला भारत अपनी जननी की ही सुरक्षा करने में नाकाम साबित हो रहा है. देश में गरीबी, कुपोषण और कुप्रबंधन के कारण मां बनने के दौरान हर दस मिनट में एक महिला काल का ग्रास बन रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वर्ष 2010 में मां बनने के दौरान 57 हजार महिलाओं की मृत्यु हुई. इस दौरान भारत की मातृत्व मृत्यु दर पूरी दुनिया में हुई माताओं की मौतों का करीब 20 फीसदी रही. मौजूदा समय में भारत में प्रति एक लाख जन्म पर मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) 212 है. जबकि भारत को सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य (एमडीजी) के तहत वर्ष 2015 तक इन आंकड़ों को घटाकर 109 तक लाना है.
फौलिक एसिड ऐसी दवा है, जो सस्ती और सुलभ है. उत्पादन डाटा न होने के चलते इनकी मांग और आपूर्ति का पता नहीं चल पता और कंपनियां इनकी कीमतों पर मनमानी करती हैं. यही हाल जेंटामायसिन, विटामिन बी सीरिज की दवाइयों का है. इस मामले में जब राष्ट्रीय औषध मूल्य नियंत्रण प्राधिकरण के चेयरमैन सी.पी. सिंह से बात करने की कोशिश की तो स्पष्ट जवाब नहीं मिला.
(लेखक मुम्बई में दैनिक जागरण से जुड़े हैं.)