Latest News

यूनिवर्सिटी का वाइस-चांसलर ही फर्जी, छात्रों का भविष्य क्या होगा?

अफ़रोज़ आलम साहिल

नया शिक्षा-सत्र शुरु होने के साथ ही एक बार फिर विश्वविद्यालयों में दाखिले का धंधा उफान पर है. बोर्ड एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में कम नंबर लाने वाले छात्र भी सबसे बेहतर कॉलेजों में एडमीशन की ख्वाहिश रखते हैं. बेहतर कॉलेज में एडमीशन की इस ख्वाहिश ने ही फर्जी मार्कशीटों और दाखिले के गोरखधंधे को जन्म दिया है. अखबार फर्जी मार्कशीट बनाने वाले और मुन्नाभाई स्टाइल में प्रतियोगी परीक्षा पास कराने वाले गैंगों की खबरों से भरे पड़े हैं. इसलिए इस बार दिल्ली विश्वविद्यालय ने फर्जी मार्क्‍सशीट के सहारे दाखिला लेने की चाह रखने वालों की धरपकड़ के लिए कड़े इंतजाम किए हैं. कोई कॉलेज दो स्तरीय जांच प्रक्रिया अंजाम दे रही है तो किसी ने तीन मोर्चो पर दस्तावेजों की पड़ताल का फैसला किया है.

कॉलेज और यूनीवर्सिटी प्रशासन हर स्तर पर सतर्कता बरतने का दावा भले ही कर रहे हैं लेकिन इन सब के बावजूद देश में फर्जी डिग्री धारकों की कोई कमी नहीं है. फर्जी दस्तावेजों और पैसे के बल पर ऐसे छात्र एडमीशन पाने में भी कामयाब हो ही जाते हैं. हमारी शिक्षा व्यवस्था का स्तर इतना गिर चुका है कि अब हर भारतीय की शैक्षणिक डिग्रियों को शक की निगाह से देखा जा रहा है.

महाराष्ट्र के तो उपमुख्यमंत्री की शैक्षणिक डिग्रियां भी शक के दायरे में हैं. पिछले दिनों महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार अपनी शैक्षणिक योग्यता को लेकर कानूनी विवादों में फंसे हुए पाए गए. यह विवाद उनकी कार की कंपनी व नंबर से भी जुड़ा हुआ है. इसके संबंध में बारामती निवासी अनिल काले ने बांबे हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है.

याचिका के मुताबिक बीते विधानसभा चुनाव के दौरान पवार की ओर से दायर किए गए हलफनामे में उनकी शैक्षणिक योग्यता एस.एस.सी. (10वीं) दिखाई गई है. जबकि राज्य सरकार की वेबसाइट में उनकी योग्यता बीकॉम (स्नातक) दिखाई गई है. इसमें सही क्या है? किसी ने इसे सत्यापित नहीं किया है.

ऐसा नहीं है कि नेताओं के फर्जी डिग्री रखने का मामला कोई नया है, बल्कि इससे पूर्व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक पर फर्जी डिग्री रखने का आरोप लगा था.  पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के सैयद आरिफ हुसैन की डाक्टरेट की डिग्री भी फर्जी पाई गई. आरिफ हुसैन खुद को आल इंडिया चेयरमैन फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज में केंद्रीय मंत्री बताते थे. जांच के बाद पता चला कि विभाग में इस नाम के किसी भी व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया. इसके अलावा यह भी पता चला कि आरिफ की पीएचडी की डिग्री भी फर्जी है और उन्होंने केवल एम.फिल किया है.

भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइ.सी.एफ.आर.ई.) के पूर्व महानिदेशक व तमिलनाडु कैडर के आइ.एफ.एस. जीएस रावत की भी पीएचडी डिग्री को अवैध पाया गया गया.

बाबा रामदेव के दाहिने हाथ यानी आचार्य बालकृष्ण महाराज के खिलाफ भी फर्जी डिग्री रखने का आरोप है, जिस पर सीबीआई जांच चल रही है. बालकृष्ण महाराज बाबा रामदेव के नेतृत्व वाले पतंजलि योगपीठ द्वारा स्थापित पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति भी है. सवाल यह है कि जिस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर पर ही फर्जी डिग्री रखने का आरोप हो, उसके छात्रों का भविष्य क्या होगा?

मामला सिर्फ हिन्दुस्तान का ही नहीं है. पिछले दिनों इस बात का भी खुलासा हुआ कि पाकिस्तान में भी संसद और प्रांतीय असेम्बली के 67 सदस्यों के पास फर्जी डिग्री है. यही नहीं, पिछले वर्ष जर्मनी के रक्षा मंत्री कार्ल थियोडोर जू गुटेनबर्ग की डॉक्टरेट की डिग्री छीन ली गई. उन पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने रिसर्च पेपर में और लोगों के शोध का इस्तेमाल किया था.

उत्तर प्रदेश और बिहार का शिक्षा माफिया तो गारंटी लेकर बारहवीं परीक्षा पास करवाता है. यहां बकायदा ऐसे स्कूल और कॉलेज हैं जिनमें एडमीशन लेने वाले बच्चे कभी क्लास का तो मुंह नहीं देखते लेकिन नंबर हमेशा उनके टॉप आते हैं. बहरहाल, ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब दबंग नेताओं ने मुन्नाभाइयों को बैठाकर अपने परिवार के लोगों को बड़ी बड़ी डिग्रियां दिलाई हैं. कहने का अर्थ है कि जबरदस्ती और निर्लज्जा की कहानी केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं है. वह समाज के दूसरे क्षेत्रों में भी तेजी से फैल रही है. प्रश्न यह है कि समाज कब तक इस अन्याय को बर्दाश्त करेगा? जबकि देश के कई उच्च न्यायालयों ने फर्जी डिग्री देने वालों को सजा न मिल पाने को आपराधिक न्याय एवं अन्वेषण सिस्टम के लिए शर्मनाक करार देते हुए कहा है कि न केवल फर्जी डिग्री का लाभ उठाने वाले दंडित हों वरन इस फर्जीवाड़े में शामिल कर्मचारी भी दंडित किए जाएं. बावजूद इसके फर्जी डिग्री बांटने और लेने वाले दोनों इस देश में फल-फूल रहे हैं.

फर्जी डिग्री हासिल करने वाले आसानी से सरकारी नौकरियां भी पा रहे हैं. अब बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि जब पैसे के सहारे पूरी शिक्षा व्यवस्था ही माफिया की जेब में है तब देश में अच्छे लोगों के सरकारी विभागों में आने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]