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‘कुत्ते’ पुलिसवालों को पट्टा बांधें या इंसानियत का पाठ पढ़ाएं?

Dilnawaz Pasha for BeyondHeadlines

फेसबुक हमें बाकी देश प्रदेश की उन घटनाओं से भी अवगत करा देता है जो स्थानीय अख़बार हमें नहीं बता पाते. पिछले एक हफ्ते में फेसबुक के ज़रिये देश के अलग-अलग हिस्सों की तीन तस्वीरों देखीं. इन तस्वीरों ने न सिर्फ मानवीय चेतना को झकझोर दिया बल्कि एक खौफ़ भी पैदा किया.

एक तस्वीर में दो वर्दीधारी एक युवक के सीने पर बाइक चढ़ा रहे हैं. युवक का दोष सिर्फ इतना था कि उसने अपनी मेहनत की कमाई में से 50 रूपये पुलिसवालों को देने से इंकार कर दिया. एक कमजोर बेबस फेरीवालों की ‘ना’ ने पुलिसवालों की मर्दानगी को ऐसा ललकारा कि देश के तमाम कानूनों को ताक पर रखकर उन्होंने उसके सीने पर पुलिसिया जुर्म की मुहर लगा दी. मामला इलाहाबाद का है.

यह तस्वीर किसी पेशेवर फोटोग्रॉफर ने नहीं बल्कि एक राहगीर ने ली जो बाद में मीडिया में प्रकाशित हुई. इस तस्वीर के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिस पर प्रदेश के डीजीपी और इलाहाबाद के पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी किया गया. ख़बर है कि दोनों सिपाहियों को निलंबित कर दिया गया है.

दूसरी तस्वीर मध्य प्रदेश की है. यहां एक मां का सिर पुलिस अधिकारी के पैरों में झुका हुआ है. मां अपने बेटे की जान की दुहाई दे रही है. उसके बेटे पर हमला हुआ. घायल बेटे को लेकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने पहुंचे तो रिपोर्ट तो दर्ज नहीं हुई लेकिन नौजवान बेटे ने दम ज़रूर तोड़ दिया. इस मामले में भी संबंधित थानाध्यक्ष को निलंबित किया गया है.

और तीसरी तस्वीर रांची की है. प्रदेश सरकार की ज़मीन अधिग्रहण नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों में से एक सड़क पर गिर गया. वो गिरा तो पुलिस ने उसे दोबारा जिंदा उठने का मौका नहीं दिया. पुलिस के उपद्रव नियंत्रण वाहन ने न सिर्फ उसे आगे से कुचला बल्कि दोबारा पीछे मुड़कर ड्राइवर ने एक बार वाहन उसके ऊपर चढ़ा दिया. इस व्यक्ति ने भी मौके पर ही दम तोड़ दिया.

ये तीन तस्वीरों यूं तो भारत के अलग-अलग प्रदेशों से हैं लेकिन ये वो हकीकत बयां कर रही हैं जिसे हम रोज़ नजरअंदाज कर रहे हैं. हर दिन अखबार पुलिसिया जुर्म की कहानियों से भरे होते हैं. किसी ज़माने में इलाके के गुंडे हफ्ता वसूलते थे. अब उनकी जगह पुलिस वालों ने ले ली है. पुलिस का काम तो जनता को सुरक्षित माहौल देना है लेकिन यह तस्वीरें देखकर पुलिस का खौफ ही ज्यादा पैदा होता है.

नौजवान के सीने पर पुलिस की बाइक, अफसर के पैरों में एक बेबस मां का सिर और सड़क पर गिरे को पुलिस की गाड़ी के नीचे कुचले जाते हुए देखकर एक सामान्य नागरिक पुलिस के बारे में क्या सोचता होगा? शायद पहली प्रतिक्रिया यही हो कि पुलिसवाले ‘कुत्ते’ हो गये हैं. अब जब आपने पुलिस को कुत्ता मान ही लिया है तो कुछ देर सोचकर यह भी बता दीजिये की ज़रूरत इन ‘कुत्तों’ के गले में पट्टा बांधने की है या फिर इन्हें इंसानियत का पाठ पढ़ाने की.

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