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दवा दुकानदारों को हड़ताल पर जाने की हठ छोड़ देनी चाहिए

Ashutosh Kumar Singh for BeyondHeadlines

दवा दुकानदार कल से तीन दिनों के लिए हड़ताल पर जा रहे हैं. यह ख़बर बहुत दुखद है. दरअसल, फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफ.डी.ए.) इन दिनों दवा-दुकानदारों के यहां छापामारी करके दवा दुकानदारों की अनियमितताओं को उजागर कर रही है. साथ एफ.डी.ए. ने हर दवा दुकान पर एक फार्मासिस्ट को अनिवार्य रूप से रहने की भी बात कही है. जबकि दवा दुकानदारों का कहना है कि एफडीए कानून की आड़ में उन्हें परेशान कर रही है, जिसे वो किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेंगे. इसलिए उन्होंने अगले 3 दिनों के लिए हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है.

अब सवाल यह उठता है कि अगर एफ.डी.ए दवा दुकान पर फार्मासिस्ट को अनिवार्य रूप से रहने की बात कह रहा है तो इसमें गलत क्या है? इतने सालों से दवा दुकानदारों ने अपने मन की ही तो की है, और अब अगर सरकार पर दबाव बना है और वो अपने बीमार सिस्टम को दुरूस्त करने का काम शुरू कर रही है तो जनहित में केमिस्टों को सरकार के इस पहल के साथ जाना चाहिए. अरे भाइयों! आपका राष्ट्र स्वस्थ होगा तो आप भी स्वस्थ रहेंगे. आप लोग क्या चाहते हैं कि आपका पड़ोसी बीमार रहे? ऐसे में क्या आप चैन से सो सकते हो? नहीं न! तो आइए न! भटक क्यों रहे हैं? स्वस्थ भारत के निर्माण में अपना योगदान सुनिश्चित करें. आपलोगों पर भारत को स्वस्थ रखने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है’.

अब आप ही देखिए ना. भारतीय फार्मा का कुल बाजार (2005-06 से 2009-10) यानी पांच सालों में 54051 (चौवन हजार एकावन करोड़) करोड़ से बढ़कर 104209 (एक लाख चार हजार दो सौ 9 करोड़) करोड़ का हो गया है, जिसमें केवल भारत का घरेलु बाजार 31935 (एकतिस हजार नौ सौ पैंतीस करोड़) करोड़ रूपये से बढ़कर 62055 (बासठ हजार पचपन करोड़) करोड़ का हो गया है. यानी पांच सालों में डबल… इससे आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत कितनी तेजी से बीमार हो रहा है. तो क्या कोई बीमार राष्ट्र विकसित हो सकता है! हमारे दवा-दुकानदार भाईयों को इस ओर भी सोचना चाहिए. आप बराए मेहरबानी इस बार जनहित में हड़ताल पर जाने की अपनी हठ को छोड़ दें. प्रशासन से बातचीत करें. लोगों को सुविधा देना आपका परम कर्तव्य है. अपने कर्तव्य-पथ से भटके नहीं.

(लेखक कंट्रोल एम.एम.आर.पी कैंपेन चला रही प्रतिभा जननी सेवा संस्थान के राष्ट्रीय को-आर्डिनेटर व युवा पत्रकार हैं)

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