Exclusive

कांडा की अय्याशी की कीमत बताने से दिल्ली पुलिस क्यों डर रही है?

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

नई दिल्ली. 5 अगस्त 2012 को एक खूबसूरत एयरहोस्टेस ने मौत को गला लगा लिया. हरियाणा के ताक़तवर मंत्री गोपाल गोयल कांडा पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा. एफआईआर दर्ज होने के हफ्तों बाद भी दिल्ली पुलिस कांडा को गिरफ्तार नहीं कर सकी. मीडिया और समाज का दवाब बना तो दिल्ली पुलिस की टीमों ने यहां-वहां कांडा की तलाश की. उसका दफ्तर, घर, रिश्तेदारों के घर और हर संभावित ठिकाने पर पुलिस ने छापेमारी की. पुलिस इधर-उधर हाथ पैर मारती रही, पेट्रोल फूंकती रही, हवाई यात्राएं करती रही, लेकिन कांडा हाथ नहीं आया.

कांडा की अय्याशी की किस्से इस बीच अख़बारों और समाचार वेबसाइटों की सुर्खियां बनते रहे. अय्याश कांडा अपनी आरामगाह में छुपा रहा और दिल्ली पुलिस जनता के पैसे से इधर-उधर हाथ-पैर मारती रही. BeyondHeadlines ने 14 अगस्त को दिल्ली पुलिस को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन देकर गीतिका शर्मा मामले में कुछ अहम जानकारियां मांगी और फिर 18 अगस्त को गोपाल गोयल कांडा अपने बिल से बाहर निकलकर दिल्ली पुलिस के अशोक विहार थाने पहुंच गया. यहां उसने डीसीपी के सामने आत्मसमर्पण किया जिसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. कांडा फिलहाल जेल में बंद है.

6 अक्टूबर 2012 को दिल्ली पुलिस ने गोपाल गोयल कांडा के खिलाफ़ चार्जशीट अदालत में दायर की. एक हजार पन्नों की चार्जशीट में गोपाल गोयल कांडा को मुख्य अभियुक्त बनाया गया. उसके खिलाफ़ आत्महत्या के लिए उकसाने, सबूत नष्ट करने, मानसिक प्रताड़ना देने, फर्जी दस्तावेज तैयार करवाने के आरोपों के साथ-साथ आईटी एक्ट की धाराओं के तहत भी आरोप तय किए गए हैं. सह-अभियुक्त अरुणा चड्डा के खिलाफ़ दिल्ली पुलिस जल्द ही पूरक चार्जशीट न्यायालय में पेश करेगी.

एयर होस्टेस गीतिका शर्मा की खुदकुशी हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े करती है. पूरे मामले का सबसे संगीन पहलू यह है कि राज्य के गृहमंत्री ने अपनी राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का उपयोग करके एक लड़की का न सिर्फ यौन शोषण किया बल्कि उसे आत्महत्या के लिए मजबूर भी किया.

कांडा फिलहाल जेल में बंद है. लेकिन यह बात भी किसी से नहीं छुपी है कि गीतिका की मौत के 13 दिन बाद तक दिल्ली पुलिस कांडा को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. या ये कहें कि दिल्ली पुलिस कांडा तक पहुंचने में पूरी तरह नाकाम रही थी. दिल्ली पुलिस की कई टीमों ने हरियाणा, गोवा और दिल्ली के कई ठिकानों पर छापेमारी की कार्रवाई ज़रूर की थी.

गीतिका शर्मा का मामला हमारी राजनीतिक व्यवस्था और बदलते समाज का आईना है जिसमें हम व्यवस्था की झलक देख सकते हैं. मामलों को बेहतर ढंग से समझने के लिए BeyondHeadlines ने सूचना का अधिकार के ज़रिए दिल्ली पुलिस से कुछ सवाल पूछे थे.

BeyondHeadlines ने दिल्ली पुलिस से गीतिका शर्मा मामले की एफआईआर और गीतिका शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी मांगी थी. यही नहीं हमने दिल्ली पुलिस द्वारा कांडा के ठिकानों पर मारे गये छापों का ब्यौरा और उन पर होने वाले खर्च की जानकारी मांगी थी. हमने दिल्ली पुलिस से यह भी पूछा था कि कांडा को गिरफ्तार करने की पूरी प्रक्रिया में कितना सरकारी पैसा खर्च हुआ. गीतिका आत्महत्या और कांडा की गिरफ्तारी के संबंध में दिल्ली पुलिस और हिरयाणा पुलिस के बीच हुए पत्राचार की भी जानकारी हमने मांगी थी.

BeyondHeadlines ने गीतिका की आत्महत्या के मामले में कुल सात सवाल दिल्ली पुलिस से पूछे थे. 14 अगस्त को दायर की गई हमारी आरटीआई के जवाब में दिल्ली पुलिस ने कहा है कि मामला अभी विचाराधीन है इसलिए सूचना के अधिकार की धारा 8(1)(h) के तहत जानकारी नहीं दी जा सकती. हालांकि सूचना के अधिकार की धारा 8(1)(h) के तहत वह सूचना जिससे अपराधियों के अन्वेषण, पकड़े जाने या अभियोजन की क्रिया में अड़चन पड़ेगी प्रकट नहीं की जा सकती. दिल्ली पुलिस द्वारा यह जवाब 19 सितंबर को तैयार किया गया जो हमे 8 अक्टूबर को प्राप्त हुआ. यानि आरटीआई के जवाब के रूप में दो महीने बाद दिल्ली पुलिस की ‘बेबसी’ हम तक पहुंची.

दिल्ली पुलिस का तर्क है कि एफआईआर और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी देने से जांच में बाधा उतपन्न होगी. यह तर्क समझ से परे है. मामले की चार्जशीट दायर की जा चुकी है. साथ ही हमने गोपाल गोयल कांडा के ठिकानों पर हुई छापेमारी और गिरफ्तार किए जाने की प्रक्रिया पर हुए सरकारी खर्च का ब्यौरा मांगा था. यह समझ से परे ही कि इस खर्च के सार्वजनिक होने से जांच में क्या बाधा उत्पन्न हो सकती है?

क्या इन सीधे सवालों का जवाब न देकर दिल्ली पुलिस अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ रही है? क्या सवाल न देने से यह तथ्य मिट जाएगा कि दो हफ्ते तक दिल्ली पुलिस की टीमें इधर-उधर मटरगश्ती करती रहीं और कांडा ठीक उनकी नाक के नीचे दिल्ली में ही बैठा था. क्या यह तथ्य भी मिट जाएगा कि कांडा को गिरफ्तार करने से दिल्ली पुलिस बच रही थी क्योंकि कांडा लगातार अपने निजी मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहा था. यहां तक कि दिल्ली पुलिस जब गोवा की हसीन वादियों में कांडा की तलाश कर रही थी तब वह दिल्ली में बैठा पत्रकारों को साक्षात्कार दे रहा था. क्या दिल्ली पुलिस एबीपी के दीपक चौरसिया से साक्षात्कार के स्थान के बारे में पूछती तो वो नहीं बताते?

BeyondHeadlines ने दिल्ली पुलिस से यह सवाल सिर्फ इसलिए पूछे थे ताकि पुलिस जांच का दूसरा पहलू सामने आ सके और जनता को यह पता चल सके कि नेताओं की अय्य़ाशी की कीमत वो कितनी चुकाती है. कांडा अपनी हवस मिटाता रहा, एक लड़की का गैरकानूनी तरीके से गर्भपात करवाता रहा और फिर उसे जान देने पर मजबूर कर दिया. कांडा को इन अपराधों की सजा दिलवाने पर पैसा तो राज्य सरकार का ही खर्च हो रहा है. क्या जनता यह जानने का अधिकार नहीं रखती कि कांडा कि अय्याशी की कीमत वो कितना चुका रही है?

और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हमने गीतिका शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मांगी थी. क्या गीतिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक होने से जांच पर कुछ असर होगा? स्वयं दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में यह कहा है कि गीतिका शर्मा का गर्भपात कराया गया था. लेकिन क्या दिल्ली पुलिस ने यह कहा है कि गीतिका का गर्भपात गैर-कानूनी तरीके से कराया गया था?

कांडा फिलहाल जेल में है, दिल्ली पुलिस ने भारी भरकम चार्जशीट दायर करके यह भी दिखाने की कोशिश की है कि वो मामले की जांच में कोताही नहीं बरत रही है. लेकिन क्या होता अगर यह मामला मीडिया में न आया होता?

BeyondHeadlines ने फिलहाल दिल्ली पुलिस द्वारा सूचना के अधिकार की धारा 8(1)(h) के तहत जानकारी प्रकट न करने के खिलाफ प्रथम अपील दायर कर दी है. हम जनता को यह बताकर रहेंगे की कांडा कि अय्याशी पर जनता का कितना पैसा खर्च हुआ.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]