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खाप का फरमान

Isha Fatima for BeyondHeadlines

हरियाणा के खाप पंचायत का बयान आया है कि बलात्कार जैसी संगीन अपराधों को रोकने का एक ही रास्ता है, लड़कियों की 15 वर्ष की उम्र में शादी… इससे लड़कीयां अपने घर की हो जाएंगी और ऐसे अपराधों को जन्म देने वाले तत्व भी खत्म हो जाएंगें.

आज हम जिस समाज में रह रहे है उसे विकास के मामले में काफी आगे माना जाता है. उसी 21वीं सदी के विकासशील देश में खापों के ऐसे ऐसे फरमान जारी किए जा रहे हैं, जो गले की हड्डी बन गई है. यहां तक की खाप ने कानून और संविधान का सम्मान भी न करते हुए शादी के लिए 15 वर्ष उम्र तय कर दी.

मामला यहीं खत्म नहीं होता. हद तो तब होती है जब हमारे ही समाज के सभ्य नेता खाप के इस फैसले की सराहना करते हैं. कुछ नेताओं ने तो यहां तक कह डाला कि 90 प्रतिशत बलात्कार लड़की की सहमती से होते हैं.  मैं ऐसे नेताओं से सवाल कर यह जानना चाहती हूँ कि उन्होने अपनी बहु बेटियों की शादी किस उम्र में की? यदि उनमें से किसी कि उम्र 15 वर्ष से अधिक है तो फिर जल्द ही कर देनी चाहिए, क्योंकि आपके अनुसार लड़कियां ही ऐसे अपराधों को बढ़ावा देती हैं.

खैर यह तो बेसर पैर की बात है. मगर यहां सोचने की बात यह है कि क्या लड़कियों की कम उम्र में शादी इन हादसों का समाधान है? ऐसा क्यों होता है कि हमेशा स्त्री जाति को दबाया जाता है?

हम सब जानते है कि हमारा देश पुरुष-प्रधान देश है. पुरुषों के फरमान के आधार पर ही स्त्री कर्त्तव्य पालन करती है, मगर पुरुष इसका नाजायज़ फायदा उठाए यह कहां का नियम और कानून है?

हमारे समाज में यह माना जा रहा है कि पिछले दो दशकों में स्त्री जाति ने नई-नई उपलब्धियां हासिल की हैं. ऊंचे-ऊंचे पदों पर पुरुषों के साथ काम करने में आगे आई हैं. हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है. उसकी दयनीय स्तिथि में काफी सुधार हुई है. मगर देखा जाए तो आज भी वह पुरुषों की कठपुतली बनी हुई है. आज भी वह अपने फैसले खुद नहीं ले सकती. आज भी वह पुरुषों की इजाज़त की मोहताज हैं.

यह एक ऐसा समाज है जो नाम मात्र स्त्री के अधिकारो के लिए कुछ करता है. सही अर्थो में तो आज भी हमारे देश की रीढ़ की हड्डी टूटी हुई है. क्योंकि बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है. और परिवार की रीढ़ की हड्डी उसकी मां होती है. जब खाप जैसे फरमानों के आधार पर कम उम्र में शादी कर दी जाएंगी तो वह परिवार कुबड़ा हो जाएगा.

मैंने कई अखबारों और न्यूज़ चैनलों पर देखा है तालिबानों की निंदा करते हुए. मगर क्या कभी हम में से किसी ने अपने समाज की स्थिति को कमज़ोर बनाने वालों की ओर ध्यान दिया है? जी हां, यह खाप पंचायत ही है, जो हमारे देश में तालिबान जैसा माहौल बनाने पर उतारु है.  एक तरफ पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाली 14 वर्षीय मलाला यूसुफज़ई जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है, वहीं दूसरी ओर हरियाणा की तमाम लड़कियां तालिबाना खाप के फैसलों तले घुट रही हैं.  जिन्हें बाज़ार में जाने की अनुमति नहीं. जिनका मोबाइल के प्रयोग पर रोक लगा दी गई. और जिन्हें खेलने-पढ़ने की उम्र में शादी करने का हुक्म सुना दिया गया.

सवाल यह उठता है कि लड़कियां ही क्यों? क्यों उन्हें ऐसे क्रूर फैसलों की बली चढ़ाया जा रहा है? खाप ने ऐसा फरमान जारी कर बहुत कमज़ोर और उबाऊ उदाहरण पेश किया है.  वह यह भी कर सकते थें कि ऐसे घिनौने अपराधों को अंजाम देने वालों के खिलाफ भी कोई क़दम उठा सकते थे. मगर नहीं! चूंकि स्त्री कोमल और कमज़ोर है. इसलिए पुरुष अपनी दबंगई उन्हीं पर दिखाता है. मगर यह हमारे समाज के लिए बहुत घातक है.  इससे न केवल देश की स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा बल्कि जनसंख्या और निरक्षरता जैसे भयानक कैंसर कहे जाने वासे भयानक तत्वों को बढ़ावा भी मिलेगा.

इसलिए सरकार को चाहिए कि वो खाप पंचायतों की निरंकुशता पर अंकुश लगाने के लिए कारगर कदम उठाए. इसके लिए केवल प्रशासनिक कार्रवाई पर्याप्त नहीं होगी. बल्कि सरकार को चाहिए कि इस मुद्दे पर वह अन्य सभी पार्टियों के साथ तालमेल करके गांवों में जनचेतना अभियान चलाए ताकि खाप पंचायतों को स्वत:स्फूर्त ढंग से मिलने वाला जनसमर्थन समाप्त हो. इक्कीसवीं सदी में महिलाओं को घर की चहारदीवारी के भीतर बंद करके नहीं रखा जा सकता. ऐसा करने की हर कोशिश को नाकाम करना नागरिक समाज का भी दायित्व है और राजसत्ता का भी.

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