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सपा को सबक़ सिखाएंगे मुसलमान

BeyondHeadlines News Desk

“मौजूदा सपा सरकार के आठ महीने के शासन में 10 बड़े दंगे होना कोई मामूली बात नहीं, बल्कि एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है.”

ये आरोप इंडियन नेशनल लीग के अध्यक्ष मो. सुलेमान ने अखिलेश सरकार पर लगाए. उन्होंने कहा कि इस मुस्लिम विरोधी साजिश का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आतंकवाद के नाम पर बंद दो युवाओं की गिरफ्तारी पर उठे सवाल की जाँच के लिए गठित निमेष आयोग की रिपोर्ट सरकार के पास पड़ी हुई है. सरकार उसे सार्वजनिक करने से बच रही है.

मो. सुलेमान, लीग द्वारा यूपी प्रेस क्लब में आयोजित सेमिनार ‘हिन्दुस्तानी मुसलमान आजादी से पहले व आजादी से बाद’ विषयक सेमिनार में बोल रहे थे. सुलेमान ने  फैजाबाद के दंगों के लिए कथित सेक्यूलर सरकार की कारगुजारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि मुलायम का कुनबा फैजाबाद की हिंसा के पीड़ितों का हाल जानने भी नहीं पहुँचा.

उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार में मुस्लिम अधिकारियों के शून्य प्रतिनिधित्व पर मो. सुलेमान ने सवाल भी खड़ा किया और मुसलमानों के उत्पीड़न पर एक न्यायिक आयोग भी बनाने की माँग की. उन्होने दावा किया कि 2014 के संसदीय चुनावों में मुसलमान सपा को सबक सिखाएंगे.

सेमिनार को संबोधित करते हुए पूर्व आईपीएस अधिकारी एस. आर. दारापुरी  ने कहा कि ‘इसमें कोई शक नहीं कि आजादी के बाद मुसलमानों की स्थिति में चिंताजनक गिरावट आई है. इसका कारण सत्ता से मुसलमान तबके का दूर होना रहा. सांप्रदायिक दंगों के जरिए राज्य ने मुसलमानों को बदनाम किया जबकि हकीकत में दंगों की बड़ी कीमत सिर्फ मुसलमानों को चुकानी पड़ी.

दारापुरी ने दावा किया कि इसमें पुलिस की भी खास भूमिका रही है. क्योंकि निजी राजनीतिक फायदे के लिए पुलिस ने सत्ता तंत्र के इशारों पर दंगे भड़काने का काम किया है. अब मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर उत्पीड़ित किया जा रहा है. राज्य की भूमिका बहुत ही सांप्रदायिक और संवेदनशील हो गई है. इनके खिलाफ मुहिम चलाने की वकालत करते हुए आगे कहा की संवेधानिक अधिकारों के लिए यह बेहद जरूरी है कि बड़े पैमाने पर लोग इसके लिए आगे आए.

सेमिनार को संबोधित करते हुए अधिवक्ता मो. शुएब ने कहा कि ‘आजादी से पहले सरकारी नौकरियों मे मुसलमानों की हालत बेहतर थी. और मुसलमानों ने सेकुलर हिन्दुस्तान में रहना तय किया था क्योंकि उन्हें सांप्रदायिक सामजस्य का भरोसा था’. मुसलमानों को दहशतगर्त साबित करने वाले लोग आखिर  कौन हैं? देश को इस बात का पता चलना चाहिए. शुऐब ने आगे कहा कि आजादी के बाद सिर्फ कुछ वक्त छोड़कर मुसलमान हमेशा कांग्रेस के साथ रहा. लेकिन कांग्रेस के साथ ही तमाम दूसरे धर्मनिरपेक्ष दलों ने जनसंघ, भाजपा का भय दिखा कर मुसलमानों को बरगलाया, ताकि सत्ता के दलाल अमेरिकी पूंजी परस्त कार्पोरेटों के लिए भारत में लूटपाट के लिए माहौल तैयार कर सकें.

उन्होने कहा कि आतंकवाद और इस्लाम के खिलाफ जंग का अमेरिकी प्रचार दरअसल मुसलमानों को उलझाकर साम्राज्यवाद की नीतियों को आगे बढ़ाने की साजिश है. दुर्भाग्य से उनकी मुहिम में अपने को राष्ट्रभक्त घोषित करने वाले सांप्रदायिक दल भी शामिल हैं. मो. शुऐब ने कहा कि मुसलमानों को साम्राज्यवादियों की साजिश को समझते हुए समाज की दूसरी क़ौमों के साथ आगे आना होगा. मुसलमान अपने किरदार से साबित करेंगे कि वे दहशतगर्द नहीं हैं. इसके लिए पूंजीवादी गिरोहों के मंसूबे को भी ध्वस्त करना होगा.

मैगसेसे पुरस्कार विजेता संदीप पाण्डेय ने  कहा कि ‘भारतीय मुसलमानों की स्थिति कमोबेश अमेरिका में रहने वाले अश्वेतों की तरह है. शैक्षणिक संथानों, नौकरियों, व्यवसाय आदि में उनकी भागीदारी नहीं है. दूसरी ओर आबादी के अनुपात में सबसे ज्यादा लोग इसी समुदाय से हैं जो जेलों में बंद हैं. सपा सरकार पर चुटकी लेते हुए कहा कि ‘शासन करने वाली धर्मनिरपेक्ष पार्टियां भी इसका हल नहीं ढूंढ पा रही हैं’. ईमानदारी से मुसलमानों की हालत को सुधारने के लिए विभिन्न कमेटेयों की सिफ़ारिशे लागू की जानी चाहिए.

सेमिनार को प्रमुखता से संबोधित करने वालों में इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय सचिव रामजी यादव, ताहिरा हसन, शाहनवाज आलम, ज़ियाउल्ला रफ़ीक, डी.एम. खान, रफी अहमद आदि भी शामिल रहें. कार्यक्रम की अध्यक्षता नेशनल लीग के प्रदेश अध्यक्ष जनाब मोहम्मद समी ने किया, जबकि संचालन कमरूद्दीन कमर ने किया.

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