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जांच हो कि एटीएस द्वारा गिरफ़्तारी से पहले कथित आतंकी कहाँ थे?

BeyondHeadlines News Desk

आर.डी. निमेष कमीशन रिपोर्ट की संस्तुतिओं के आधार पर दो युवाओं ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर आजमगढ़ के तारिक कासमी और जौनपुर के खालिद मुजाहिद की एटीएस द्वारा कचहरी बम कांड में गिरफ़्तारी सम्बंधित पूरी कहानी की जांच कराये जाने की मांग की है. प्रथम वर्ष विधि की छात्र तनया ठाकुर और उसका भाई आदित्य यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर और सामाजिक कार्यकर्ता नूतन की संतान हैं.

इन दोनों ने कहा है कि निमेष कमीशन रिपोर्ट ने कई सारे अनुत्तरित प्रश्न सामने रखे हैं. इसके कहा गया है कि कासमी 12 दिसंबर 2007 के अपने घर के पास से रानी का सराय, आज़मगढ़ से अपहृत होने की ख़बर कई समाचारपत्रों में प्रकाशित हुई थी. उनके रिश्तेदार अज़हर अली ने 14 दिसंबर को थाने में लिखित शिकायत भी की थी.

इसी प्रकार से मुजाहिद के टाटा सुमो सवार अज्ञात लोगों द्वारा उठाये जाने की बात भी कई अखबारों में आई थी, जिनमें एसटीएफ का भी जिक्र किया गया था. उसके रिश्तेदार जाहिर आलम फलाही ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य को शिकायतें भी भेजी थीं. फिर भी इन दोनों मामलों में कोई जांच नहीं की गयी और ये दोनों लोग 22 दिसंबर को बाराबंकी से गिरफ्तार दिखाए गए.

इस रिपोर्ट के आधार पर तनया और आदित्य ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि न्याय की दृष्टि से इस बात की गहराई से जांच कराई जाए कि इन दोनों व्यक्तियों के अपहरण के लिए कौन जिम्मेदार थे और इस अवधि में वे कहाँ-कहाँ रहे. उन्होंने इन सभी तथ्यों को सार्वजनिक किये जाने का भी अनुरोध किया है ताकि लोगों का प्रशासनिक व्यवस्था में विश्वास बढे.

इनके द्वारा पत्र लिखे गए पत्र को आप नीचे पढ़ सकते हैं:

सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री,
उत्तर प्रदेश, लखनऊ

विषय- मानवाधिकार से जुड़े एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रकरण विषयक

महोदय,

हम तनया ठाकुर और आदित्य ठाकुर (निवासी 5/426, विराम खंड, गोमतीनगर, लखनऊ) हैं. हमारे पिता श्री अमिताभ ठाकुर यूपी में एक आईपीएस अधिकारी हैं और माँ डॉ नूतन ठाकुर एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. हम दोनों यद्यपि युवा हैं किन्तु अपनी क्षमता के अनुसार सामाजिक कार्यों में संलग्न रहते हैं. हम अन्य कार्यों के अलावा समाज में अन्धविश्वास दूर भगाने, पारदर्शी प्रशासन तथा मानवाधिकार के क्षेत्र में भी कार्य करते हैं. मैं तनया विधि प्रथम वर्ष की छात्रा हूँ जबकि आदित्य कक्षा ग्यारह का छात्र हूँ और आगे विधि की पढ़ाई करना चाहता हूँ.

यहाँ हम एक अत्यंत गंभीर प्रकरण की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहते हैं जिसमे गहराई से जांच करते हुए जनता के सामने सत्यता सामने लाया जाना नितांत आवश्यक प्रतीत होता है. यह प्रकरण 22 दिसंबर 2007 को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दो व्यक्तियों, श्री तारिक़ कासमी और श्री खालिद मुजाहिद की बाराबंकी के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तारी विषयक है. गिरफ्तार व्यक्तियों से जिलेटिन की छड़ें, कलर डेटोनेटर, नोकिया मोबाइल, सिम कार्ड, आरडीएक्स आदि मिलने की बात कही गयी थी.

इन दोनों व्यक्तियों की गिरफ्तारी के साथ ही कई सारे प्रश्न उठाये गए थे. इसका कारण यह था कि पुलिस की इस गिरफ़्तारी के कुछ ही दिन पूर्व पेशे से डॉक्टर आजमगढ़ निवासी श्री तारिक़ कासमी दिनांक 12 दिसंबर 2007 को अपने यूनानी दवाखाने से लौटते समय एक टाटा सूमो में सवार कुछ अज्ञात लोगों द्वारा उठा कर ले जाए गए थे जबकि जौनपुर के शिक्षक श्री खालिद मुजाहिद दिनांक 16 दिसंबर 2007 को ऐसी ही एक घटना में टाटा सूमो से ही उठाये गए थे. इन दोनों मामलों में अपहृत लोगों के परीजन तथा पहचानवाले काफी परेशान हुए, पुलिस थाने के चक्कर काटे, अख़बारों में उनकी गुमशुदगी खबर छपी, यहाँ तक कि इनके लिए धरने-प्रदर्शन तक हुए. दिनांक 14 दिसंबर 2007 को श्री कासमी के परिजनों ने स्थानीय थाने रानी का सराय, जनपद आजमगढ़ में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई और उन लोगों ने बीएसएनएल के मोबाइल को भी सर्विलांस पर लगाकर लोकोशन पता लगाने का आग्रह किया जबकि दिनांक 16 तथा 19 दिसंबर 2007 को श्री मुजाहिद की गिरफ्तारी के विषय में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली और डीजीपी उत्तर प्रदेश को फैक्स किया गया.

चूँकि इन दोनों की गिरफ्तारी शीघ्र ही एक बड़ा मुद्दा बन गया और इस बारे में लगातार धरना-प्रदर्शन होते रहे, अतः दिनांक 14 मार्च 2008 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी श्री विक्रम सिंह ने मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन को पत्र लिखकर न्यायिक जांच का अनुरोध किया जिसके बाद इसी दिन प्रदेश सरकार ने अधिसूचना जारी करके सेवानिवृत न्यायाधीश श्री आरडी निमेष आयोग का गठन किया. हमें प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री निमेष आयोग ने पूरे घटनाक्रम और तथ्यों की जांच कर के 31 अगस्त 2012 को जांच रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को प्रस्तुत भी कर दिया है.

हमें प्राप्त जानकारी के अनुसार निमेष आयोग की रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण अनुत्तरित प्रश्न उठाये गए हैं-

1. जब दिनांक 12 दिसम्बर 2007 को श्री तारिक़ कासमी को दोपहर 12 बजे रानी की सराय चेक पोस्ट से उसके सराय मीर धार्मिक इजतेमा में जाते समय चेक पोस्ट के समीप लखनऊ-बलिया मार्ग स्थिति ग्राम महमूदपुर से पकड़ा जाना कहा जाता है व जिसकी ख़बर भी दैनिक अखबार हिन्दुस्तान, अमर उजाला व दैनिक जागरण में भिन्न-भिन्न तिथियों में दिनांक 22 दिसम्बर 2007 तक छपी है उन खबरों को सत्यापित कर जांच क्यों नहीं की गई?

2. श्री अज़हर अली ने दिनांक 14 दिसम्बर 2007 को श्री कासमी के अपहरण की सूचना थाना रानी की सराय जिला आज़मगढ़ को दी जिसको थाने पर प्राप्त भी किया, अपनी मोहर भी लगाई. इस रिपोर्ट पर क्यों कार्यवाही नहीं की गई?

3. श्री अज़हर अली द्वारा दाखिल प्रथम सूचना रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि श्री कासमी के पास मोबाइल न. 9450047342 था जो कभी बंद हो जाता था तो कभी चालू हो जाता था उसकी लोकेशन का क्यों पता नहीं लगाया गया?

4. कॉल डिटेल्स में 12 दिसम्बर, 2007 को अन्तिम बार लगभग 12 बजकर 23 मिनट पर कॉल की गई उस समय टावर की लोकेशन स्थित सराय रानी यूपी ईस्ट दिखाया है. उसके उपरान्त इस मोबाइल की स्थित 13 दिसम्बर, 2007 को शाम को 7 बजकर 10 मिनट विश्वास खण्ड लखनऊ उनके उपरान्त वि़जय खण्ड लखनऊ, तेलीबाग यूपी ईस्ट व पुनः 17 दिसम्बर 2007 को विश्वास खण्ड, नाका हिण्डोला, 18 दिसम्बर 2007 को नाका हिण्डोला, 19 दिसम्बर 2007 को विजय खण्ड, मेडिकल कालेज लखनऊ, टी.डी.एम. ऑफिस यूपी ईस्ट लखनऊ दिखाया है तो उपरोक्त तथ्य की भी जांच क्यों नहीं की गई?

5. एक राजनैतिक दल ने दिनांक 15, 16 तथा 20 दिसम्बर 2007 को इस सम्बन्ध में धरना-प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी आज़मगढ़ को ज्ञापन दिया गया कि श्री कासमी की मोटर साइकिल न. यूपी 50 एन/2943 के साथ उठा लिया गया व उसके मोबाइल न. 9450047342 का स्विच ऑफ है तो इस पर क्यों कार्यवाही नहीं की गई?

6. इसी तरह श्री खालिद मुजाहिद को जब 16 दिसम्बर 2007 को मन्नू चाट वाले की दुकान के पास कस्बा मड़ियाहू ज़िला जौनपुर से उठाना बताया जाता है तो इस घटना के बाद की सूचना दूसरे दिन दिनांक 17 दिसम्बर 2007 को अखबारों में छपी. श्री मुजाहिद के चाचा श्री ज़हीर आलम फलाही द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली, पुलिस महानिदेशक लखनऊ आदि को फैक्स दे कर सूचित किया गया. उपरोक्त सूचनाओं पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई और यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई कि उन्हें किस तरह और किसने उठाया?

7. दिनांक 18 दिसम्बर 2007 को अख़बार में छपा- “एस.टी.एफ. ने पूर्वांचल के जौनपुर व इलाहाबाद में छापा मारकर हूजी के दो सदस्यों को हिरासत में लिया”. दिनांक 20 दिसम्बर  को अखबार में यह छपा है कि “एस.टी.एफ. ने युवक को उठाया” और दिनांक 21 दिसम्बर को यह भी लिखा है कि “मड़ियाहूं का खालिद जा चुका है तीन बार पाक”. दैनिक अखबार हिन्दुस्तान ने दिनांक 21 दिसम्बर  को लिखा- “काफी दिनों से खुफिया निगाह में था खालिद”. दैनिक जागरण अख़बार में दिनांक 22 दिसम्बर 2007 में छपा है कि “एसटीएफ द्वारा उठाये गए खालिद को लेकर परिजन हलकान” व “खालिद पर 6 माह से थी आईबी की नज़र”. यदि खालिद पुलिस अभिरक्षा में नहीं था तो इस तरह की खबरें कहां से छपीं और यह सूचनायें गलत छपी है अथवा सत्य? इन खबरों पर भी कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया गया है और क्यों नहीं कोई कार्यवाही की गई है.

इस सम्बन्ध में निमेष आयोग ने संस्तुति की है कि उठाये जाने के बाद से पुलिस की गिरफ्तारी तक हुए सम्पूर्ण घटनाक्रम की गहराई से जांच कराई जाए और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को चिन्हित किया जाए. निमेष आयोग द्वारा उठाये गए प्रश्न और उनकी संस्तुति अत्यंत महत्व के हैं और इस तरफ इशारा करती हैं कि श्री कासमी और श्री मुजाहिद का इनके कस्बों से टाटा सुमो में उठाया जाना और उसके कुछ दिनों बाद इनका बाराबंकी में गिरफ्तार दिखाये जाने के बीच भी कुछ अन्य छिपी कहानी होने की सम्भावना है. यदि उत्तर प्रदेश सरकार अथवा पुलिस विभाग ने इन दोनों की गुमशुदगी के बाद इस सम्बन्ध में समुचित कार्यवाही की होती और पूरी जांच कर इन तथ्यों का अनावरण किया होता कि क्रमशः 12 तथा 16 दिसंबर को अपहृत होने से 22 दिसंबर को गिरफ्तार होने के बीच ये कहाँ थे, इन्हें क्यों, किसके, कब, कैसे अपहृत किया, ये इस अवधि में अपहरणकर्ताओं द्वारा कहाँ-कहाँ रखे गए और पुलिस द्वारा गिरफ्तार होने के पूर्व ये अपने अपहरणकर्ताओं से कैसे छूटे तब तो किसी को आशंका शेष नहीं रह जाती पर हमें प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक इन प्रश्नों की जांच नहीं की गयी है.

हम सभी यह जानते हैं कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 57 के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी व्यक्ति को चौबीस घन्टों से अधिक अवधि के लिए बिना न्यायिक आदेश के अपनी पुलिस अभिरक्षा में नहीं रख सकता है. इसके विपरीत हम यह भी जानते हैं कि पुलिस अकसर इस क़ानून का उल्लंघन करते देखी जाती है. इस उल्लंघन के कई कारण हैं जिनमे कई बार पुलिस की व्यावहारिक परेशानियां और समस्याएं भी शामिल हैं. एक पुलिस अधिकारी की संतान होने के नाते हम अच्छी तरह जानते हैं कि कई बार पुलिस बड़े अपराधियों से गहराई से पूछ-ताछ करने तथा पर्याप्त साक्ष्य इकठ्ठा करने की दृष्टि से चौबीस घंटे के इस नियम का व्यतिक्रम कर दिया करती है. कभी-कभी तो पुलिस किसी शातिर अपराधी को एक थाने से दूसरे थाने में कई-कई दिनों तक रख कर पूछ-ताछ करती रहती है. यद्यपि यह विधि के विरुद्ध होता है पर बहुधा आम जन भी इसे बुरा नहीं मानते क्योंकि उन्हें लगता है कि पुलिस अच्छी नीयत से काम कर रही है और ऐसे में यदि विधि के किसी प्रावधान का तकनीकी रूप से उल्लंघन भी किया जा रहा है, तब भी वह क्षम्य है. कृपया यहाँ हम इन अवैध कार्यों का पक्ष नहीं ले रहे, मात्र व्यावहारिक स्थितियां प्रस्तुत कर रहे हैं. इसके विपरीत यदि किसी मामले में किसी निर्दोष व्यक्ति को पुलिस पकड़ लेती है और कई-कई दिन थाने में रखे रहती है तो इसका भारी विरोध होता है और ऐसे में कभी-कभी थाने-चौकी पर हमले, तोड़-फोड, आगजनी तक देखे गए हैं.

निमेष आयोग ने स्पष्ट रूप से इस विषय पर निष्कर्षतः कोई अंतिम टिप्पणी नहीं की है कि ये दोनों व्यक्ति वास्तव में वैसे अपराधी हैं जैसा पुलिस आरोपित कर रही है अथवा पुलिस ने उन्हें अन्य कारणों से फर्जी फंसाया है. वैसे भी यह प्रकरण अभी मा० न्यायालय में विचाराधीन है, अतः उस पर हमारी ओर से कोई भी टिप्पणी करना उचित नहीं होगा.

लेकिन तमाम अन्य लोगों की तरह हम भी इस बारे में जानने को अवश्य ही इच्छुक हैं कि 12 तथा 16 दिसंबर को अपहृत होने से 22 दिसंबर को गिरफ्तार होने के बीच ये दोनों कहाँ थे, इन्हें क्यों, किसके, कब, कैसे अपहृत किया, ये इस अवधि में अपहरणकर्ताओं द्वारा कहाँ-कहाँ रखे गए और पुलिस द्वारा गिरफ्तार होने के पूर्व ये अपने अपहरणकर्ताओं से कैसे छूटे. निमेष आयोग भी इस बात की संस्तुति करती है और न्याय का तकाजा भी यही कहता है. जैसा हम दोनों ने ऊपर कहा, हम यह नहीं कह रहे कि ये दोनों व्यक्ति निश्चित रूप से पुलिस/एसटीएफ द्वारा भी उठाये गए अथवा इस अवधि में वे इन्ही लोगों की अभिरक्षा में रहे. हम यह भी नहीं कह रहे कि इस पूरी अवधि में ये दोनों व्यक्ति निरंतर पुलिस की अवैध अभिरक्षा में रहे हों. यदि ये दोनों व्यक्ति गंभीर अपराधी थे जो देशद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त थे और बम-ब्लास्ट जैसी जघन्य घटनाओं को कारित करने में इनकी भूमिका थी, जैसा पुलिस द्वारा आरोपित किया गया है तो पुलिस को उनसे पूछताछ करने का पूरा अधिकार था. यदि इस पूछताछ तथा साक्ष्यों के संकलन में विधि के प्रावधानों का उल्लंघन भी हो जाता है, तब भी बहुत सारे लोग उसे अनुचित नहीं ठहराएंगे तथा इसे पुलिस की विधिक मजबूरी के रूप में स्वीकार कर लेंगे. इन अभियुक्तों के वास्तव में अपराधी होने के सम्बन्ध में आज नहीं तो कल अदालत द्वारा सत्यता सामने आ जायेगी. अतः वर्तमान में जो प्रश्न तत्काल महत्व का दिखता है, वह है श्री कासमी तथा श्री मुजाहिद के क्रमशः 12 तथा 16 दिसंबर को अपहृत होने से 22 दिसंबर को गिरफ्तार होने के बीच इनकी स्थिति के बारे में सत्यता सामने आना. यह प्रश्न उत्तर प्रदेश सरकार के लिए अत्यंत महत्व का प्रश्न है और आम जनता के लिए भी.

हम इस मामले में बिना कोई सत्यता जाने किसी के भी खिलाफ किसी क़ानूनी कार्यवाही की बात नहीं कह रहे. हम यह भी नहीं कह रहे कि यदि पुलिस ने ही इन दोनों को इनके घरों से उठाया और इनसे इस पूरी अवधि में अलग-अलग स्थानों पर, अलग-अलग समय समय में पूछताछ करते रहे तो वे गलत अथवा अपराधी थे. यदि पुलिस ने वास्तव में अपराधियों को उठाया होगा और यह बात मा० न्यायालयों द्वारा भी प्रमाणित कर दी जाती है तो ये पुलिसवाले स्वतः ही देश हित में कार्य करने हेतु बधाई के पात्र हो जायेंगे.

लेकिन इतना अवश्य बनता है कि इन दोनों व्यक्तियों के क्रमशः इनके घरों से उठाने से ले कर इनकी पुलिस की गिरफ्तारी तक की सारी बातों की गहराई से जाँच हो और इस जांच में प्राप्त सभी तथ्य जनता के सामने लाये जाएँ. यह बात इसीलिए आवश्यक है कि जैसा हमें क़ानून में पढ़ाया जा रहा है न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए. यदि इस मामले में इन दोनों व्यक्तियों के अज्ञात लोगों द्वारा उठाये जाने से लेकर इनकी पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी तक की समस्त बातों की जांच हो कर जनता के सामने आ जाती हैं तो इससे निश्चित रूप से एक बहुत बड़े वर्ग को संतोष होगा और लोगों में क़ानून के राज के प्रति विश्वास और अधिक बढ़ेगा.

अतः हम दोनों आपसे यह प्रार्थना करते हैं कि श्री तारिक़ कासमी के दिनांक 12 दिसंबर तथा श्री खालिद मुजाहिद के दिनांक 16 दिसंबर को टाटा सूमो सवार अज्ञात लोगों द्वारा उठा कर ले जाने पर उनकी 22 दिसंबर 2007 को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बाराबंकी के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तारी तक के बीच की समस्त स्थितियों/तथ्यों/घटनाक्रम की विधिवत जांच कराते हुए उनमें से ऐसे समस्त तथ्य, जो देश की एकता और अखंडता, सुरक्षा और संरक्षा के विरुद्ध नहीं जाते हों, को आम जन के बीच सार्वजनिक करने की कृपा करें.

भवदीय,

(तनया ठाकुर) (आदित्य ठाकुर)

5/426, विराम खंड,
गोमतीनगर, लखनऊ

प्रतिलिपि-

1. प्रमुख सचिव, गृह, उत्तर प्रदेश को कृपया आवश्यक कार्यवाही हेतु
2. पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को कृपया आवश्यक कार्यवाही हेतु

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