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बलात्कारी की आवाज़…

Anita Gautam for BeyondHeadlines

यूं तो बॉलीवुड से लेकर भोजपुरी गानों में अश्लीलता कूट-कूट कर भरी हुई है, और लोग भी ऐसे उत्तेजक गानें जिनमें गायिका मदहोश आवाज़ में गाती है, लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. शायद बॉलीवुड को जनता की ज़रूरत या टेस्ट का बखुबी पता है, इसलिए ऐसे गानें, ऐसी फिल्में यहां तक की ऐसे विज्ञापनों की भरमार है जो साधारण इंसान को उत्तेजित कर सकते हैं. अब तो शायद ऐसे गाने, प्रचार और फिल्म सैक्स पावर बढ़ाएं जैसी दवा बेच रही कंपनियों को भी फेल कर चुकी होगी.

वो ज़माना गया जब भोजपुरी फिल्मों में गायक बोला करता था- सांची कहे तोहरे आवन से भौजी, अंगना में आई बहार भौजी…और अब गायक गाता है अरे गंगा पार से उड़ी टिटहरी, गुलर के डार बैठी… बॉलीवुड में पहले चोली के पीछे क्या है यह जानने की उत्सुकता थी पर अब भोजपुरी गानों में- धीरे-धीरे खोला राजा चोलिया के हुक हो, चोलिया में बाटे रसमलाई, चिखबा तो मजा आई… न जाने ऐसे कितने गाने जो रोज़ न चाहते हुए भी कहीं न कहीं सुनने पड़ते हैं, अब शायद ही कोई बच्चा गाता होगा मेरा देश मेरा मुल्क मेरा ये वतन… अब तो बच्चा तुतलाकर बोलता है मैं शराबी मैं शराबी… और गलती से बच्चे से पूछ लिया कि वट्स यूअर नेम तो उत्तर आता है माई नेम इस शीला… शीला की जवानी…..

किन्तु हद की भी हद तो तब पार हो गई जब हनी सिंह ने ऐसा गाना गाया, जिसे शायद कोई शरीफ इंसान इस गाने का पहला बोल ही न सुन पाए बजाय वो कानों पर हाथ रख लेगा. जहां तक मेरी समझ का सवाल है जहां समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में दामिनी के साथ हुइ एक-एक घटना की चर्चा हो रही थी, उस समय वहां मौजूद ये बलात्कारी उसके घटना पर शोक व्यक्त करना तो कोसों दूर इस घटना से प्रेरित हो नये गाने बना कर गाना गा रहा था, पूरे गाने के बोल न जाने क्यों दामिनी के हादसे से मिलते जुलते से लग रहे हैं.

आज ऐसे तमाम गाने हैं जिस पर लोग चिंता तो जताते है किन्तु कोई आवाज़ तक नहीं उठाता. इतने के बावजूद वो गाना सीधा-सीधा महिलाओं को लोगों की बुरी नज़रों से देखने को मजबुर करता हैं. गलती से किसी साधारण परिवार का भाई, बाप यहां तक की पति ऐसा गाना सुन ले तो शायद यह उसकी बरदाश्त से बाहर होगा और जी करेगा उस बलात्कारी को मैं फांसी पर लटका दूं, चाहे मुझे कितने साल की जेल ही क्यों न हो. कैसे होंगे इसके मां-बाप, भाई-बहन जो अपने कुपुत्र पर लगाम तक नहीं लगा सकते. उनको इस बात का गर्व है कि उनका बेटा अपने गाने के हुनर से महिलाओं का सरे आम बलात्कार कर रहा है. खुले आम महिलाओं के शरीर के अंगों के बारे में इस हद तक बुरा बोल रहा है कि वो स्वयं भूल गया कि उसे पैदा करने वाली एक औरत ही है. आम लड़की के शरीर के अंग हूबहू उसकी बहन जैसे ही होंगे!

सहने की भी एक क्षमता होती है. जल के ऊर में ज्वाला भी सोती है. आखिरकार किसी ने पहल की. एक ऐसा आदमी जो वास्तव में पुरूष होने के साथ अपने आप को किसी का भाई-बेटा-पिता-पति अथवा पुत्र समझता है. वो हैं श्री अमिताभ ठाकुर… अमिताभ जी लखनऊ में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं. उन्होंने इसका विरोध करते हुए लखनऊ में मुक़दमा दर्ज कराया और सोशल साईट्स के माध्यम से ट्विटर पर उसके खिलाफ़ ऑनलाइन मुहिम छेड़ी. परिणामस्वरूप गायक, हनी सिंह द्वारा न्यू ईयर पर गुड़गांव में होने वाली नोटंकी भी कैंसल करनी पड़ी.

आखिरकार, वो बलात्कारी नामक गीत गाने वाला हनी सिंह अब लोगों के घेरे में आ गया और शायद अब लोगों को भी समझ आ रहा है कि ऐसे ओछे गीत समाज और परिवार की महिलाओं के लिए कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं.

अमिताभ ठाकुर ने हनी सिंह के खिलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा (आईपीसी) 292, 293 और 294 के तहत लखनऊ में मुक़दमा दर्ज कराया है. उनका मानना है कि ऐसे गाने, वो बलात्कारी या ऐसे तमाम द्विअर्थी गाने जिसे हनी सिंह को गाकर आनंद की अनुभूति होती है, अत्यंत अश्लील, उत्तेजक और अभद्र हैं और समाज में महिलाओं के प्रति असम्मान और गंभीर अपराध बढ़ाने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं.

आप स्वयं सोचिए! जब ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी याद करो कुर्बानी जैसे गाने एकाएक हमारी आंखों में आंसू ला सकते हैं तो फिर क्या ऐसे गाने किसी अच्छे खासे व्यक्ति के अंदर का जानवर नहीं जगा सकते. जब भगवान के गाने सुनने के बाद इंसान को मुरत में देवता दिख सकता है तो क्या ऐसे अभद्र गाने सुनने के बाद उसी इंसान को औरत में सैक्स की पूर्ति करने वाला एक ज़रिया नहीं दिख सकता?

दिल्ली में जहां गैंगरेप पीडि़ता की मौत पर शोक मनाया जा रहा था, महिलाओं के खिलाफ़ अपराध पर आक्रोश व्यक्त किया जा रहा था. लोग हाथ में मोमबत्ती लिये क़दम से क़दम मिलाए इंसाफ की मांग कर रहे थे, तब यही हनी सिंह हाथ में माइक लिये, अपने क़दमों को इधर-उधर हिलाते हुए ऐसे तमाम गाने ऐना वि ना डोप शोम मारिया करो, दूजे मुंडियानू न ऐसे ताडि़या करो… आजमा के वेख नी तू नशे सारे…. बन के तू रह गई है नशे की दुकान ….जैसे अनेक अभद्र गानों पर नाच रहा था. वो लड़की जो जिंदगी और मौत की बीच जंग लड़ रही थी, उसी घटना को गाने के रूप में पेश कर रहा था.

जब एक आदमी खुले आम बोलता है वो बलात्कारी तो सरकार उसे क्यों खुला छोड़ती है. अरे कोई मुजरिम जुर्म को गा-गा कर सुना रहा है और सरकार के नुमाइंदे यहां तक की औरतों की रक्षा के लिए हेल्पलाईन नम्बर जारी करने वाली देश की राजधानी की मुख्यमंत्री भी उसके गानों पर ढुमके लगा रही होती हैं. बहुत ही आश्चर्य और शर्म की बात है, जो महिला आम महिलाओं की सुरक्षा गारंटी देती है वो दूसरी तरफ ऐसे बलात्कारी के सामने आम औरतों को पेश कर रही है कि आओ और खुल्लेआम इनके साथ बलात्कार करो.

आप भी सोचिए गानों के माध्यम से महिलाओं के साथ बलात्कार करने वाले का वास्तविक जीवन भी किसी बलात्कारी से कम नहीं होगा. 28 साल के इस बलात्कारी ने पंजाबी, अंग्रेजी गानों से शुरूवात की और अब बॉलीवुड में अपना पांव टिकाने वाला, एक गाने के 70 लाख रूपये तक की फीस लेता है और सपना माइकल जैक्सन बनने का देखता है. शायद ही कोई शादी या पार्टी हो जहां इसके डोप शोप, हाई हिल्स, मैं शराबी, लांग ड्राइव पे चल, हुक्का बार जैसे तमाम गाने न चल रहे हों.

क्योंकि शुरूआती दौर में लोगों ने इसका विरोध नहीं किया इसलिए आज यह आदमी बलात्कारी के रूप में समाज में खुला घुम रहा है. और सरकार जो ऐसे गानों पर प्रतिबंध नहीं लगाती, वह भी वो खुले आम अपने गानों में बोलता है कानून को दी है सुपारी, क्योंकि वो बलात्कारी…

किन्तु समाज को आज भी ज़रूरत है बदलाव की, वो चाहे सोच हो या ज़रूरतें. जब तक देश का आम नागरिक भी ऐसे लोगों का, ऐसे मनोरंजन के साधनों का बहिष्कार नहीं करेंगे तब तक रोज़ दिन-दहाड़े आपके सामने आपके घरों में बलात्कार होगा और फिर उस बलात्कार का दोष आप किस-किस पर डालेंगे ज़रा सोंचिए? और क्या हम भी अमिताभ ठाकुर जैसे देश के जिम्मेदार नागरिक नहीं हो सकते?

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