India

एक सच को छुपाने मे कई झूठ बोलने पड़ते हैं

Rakshpal Abrol for BeyondHeadlines

टाटा पावर के पास 1907, 1919, 1921 एंव 1953 से मुंबई मे विद्युत वितरण के चार लाईसेंस दिये गये थे. यह लाईसेंस के बावजूद टाटा को 1 दिसम्बर 1998 के पूर्व पूरे मुंबई नगर में प्रत्येक उपभोक्ता को विद्युत वितरण करने की मनाही थी, आखिर क्यों? फिर 1 दिसम्बर 1998 से उन्हें यह इजाजत कैसे दी गयी? यह सच्चाई कोई भी बताना नहीं चाहता.

टाटा की विद्युत बेचने की दर दूसरे विद्युत वितरण करने वाली इकाईयों से काफी कम है. जिसकी वजह से राज्य सरकार की विद्युत शुल्क की आमदनी मे कमी आ रही है. सरकार तथा मर्क टाटा से बार-बार कीमत बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं. परन्तु टाटा कीमत बढ़ाने मे कोई रुचि नहीं रखता. यह सरकार को पसंद नही है. इसीलिये 3 जुलाई 2003 को टाटा पर विद्युत वितरण पर रोक लगाई गई.

availability of Electricity from TATA at cheaper rates. Photo Courtesy: Livemint

ट्रिब्युनल ने भी गलत फैसला दिया, जिसका निदान 8 जुलाई 2008 मे सर्वोच्चय न्यायालय ने दिया, तथा मर्क व ट्रिब्यूनल को फटकार लगाई कि उन्होंने गलत फैसला लिया, जिसका अधिकार उनके पास नहीं है. क्या बिना वितरण के तार बिछाये कोई विद्युत वितरण कर सकता है. सरकार ने विद्युत शुल्क गरीब उपभोक्ता पर बढ़ा दिया, ताकि महंगाई का ठीकरा वितरण कम्पनी पर डाल दिया  जाए. इस सच को छुपाने के लिए राज्य सरकार अलग-अलग ढंग के झूठों का सहारा ले रही हैं. टाटा के पांच पारेशण की व्यवस्था 2600 मेगावाट विद्युत को मुम्बई में वितरण करने की है.

सारी की सारी वितरण प्रणाली की कीमत 30 लाख उपभोक्ता वितरण के लाइसेंसदारियों को विद्युत की प्रमाणित तालिका द्वारा भुगतान कर चुके हैं. वह चाहे बैस्ट हो या रिलायंस… टाटा को तार बिछाने से रोका गया. बार-बार उपभोक्ताओं के अधिकृत प्रतिनिधियों  ने इसका विरोध किया.

सरकार के आगे कोई कुछ नहीं कर सकता. सरकार एक सच को छुपाने के लिये हजारों झूठ बोलती है. राज्य में विद्युत की कमी नहीं है. टाटा दाम कम करने की कोशिश में है. रिलायंस भी विद्युत की वितरण में कम करने की तलाश कर रही है. परन्तु सरकार नहीं चाहती. उनको नुकसान होने वाला है. यह एक हकीकत हैं.

पिछले तीन वर्षों मे वितरण की तालिका में किसी भी लाईसेंसधारी ने किसी भी उपभोक्ता से एक पैसा अधिक वसूल नहीं किया है. सर्वोच्चय न्यायलय ने सिविल अपील 3101 के अन्तगर्त जो 2006 मे दायर की गयी थी उस पर 11 अगस्त 2010 को उपभोक्ताओं से नुक़सान लेने पर रोक लगा दी. इस प्रकार रिलायंस अपने नुक़सान को उपभोक्ताओं से वसूल नहीं कर सकता है.

परन्तु वह एक नये नाम से उसे वसूल करने की योजना बना रहा है. इसे वह रेगुलेटरी एस्ट या किसी दूसरे नाम से 28 लाख उपभोक्ताओं से वसूल करने मे गलत ढंग से कामयाब हो जायगा. राजनेता तथा सरकारी अधिकारी उनके साथ हैं.

बैस्ट ने गलत ढंग से 10 लाख उपभोक्ताओं पर वाहन सर्विस के नुक़सान का अधिकार सर्वोच्चय न्यायलय से सिविल अपील 848 के अन्तगर्त लेने का साहस इसलिए किया क्योंकि वह राजनैतिक ढंग से चल रही है. सभी अधिकारीगण उनके साथ हैं. वहां भी झूठ का सहारा लिया गया है. सच को छुपाने के लिए… लेखक अकेला था विरोध करने वाला. उसे सर्वोच्चय न्यायलय में नहीं बुलाया गया. जिसकी लाठी उसकी भैंस… कोई कुछ नहीं कर सका.

वहां भी केवल झूठ बयान दाखिल किया गया. इसइका कहीं जिक्र नहीं है. अब उपभोक्ताओं को विचार करना होगा कि सच क्या है? वितरण में उपयोग वाली तारों का कौन मालिक है? सरकार, लाइसेंसधारी, मनपा या आम उपभोक्ता? टाटा भी अब उपभोक्ताओं से सिक्यूरिटी डिपोजिट तथा अग्रिम रक़म वसूलने का काम कर रहीहै. यह 28 दिसम्बर 2012 से नये कानून के अन्तगर्त शुरु कर दिया गया है.

इसका विरोध किसी ने नहीं किया. इसकी जानकारी आम उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचाई गयी. ऐसा विरोध लिखित रुप में किया गया. यह मर्क ने अपने 28 दिसम्बर 2012 के सभी आदेशों मे निहित किया है.

(लेखक  भारतीय उद्यमी एंव उपभोक्ता संघ  के अध्यक्ष हैं.)  

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