Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
भले ही महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई में 26 नवम्बर हमले की जांच में शामिल अपराध शाखा के 46 अधिकारियों को नकद पुरस्कार देने के लिए 6.58 लाख रूपये की राशि मंजूर कर ली हो, लेकिन निष्पक्ष जांच की मांग अब भी कायम है. महाराष्ट्र सरकार की ओर से यह पुरष्कार 90 दिनों के अंदर 11 हज़ार 750 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल करने के लिए दिया जा रहा है. अब आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि इस रिपोर्ट को कितनी मेहनत से तैयार किया गया होगा. और अंदाजा इस बात का भी लगा लीजिए कि रिपोर्ट को पूरी तरह से किसने पढ़ा होगा. एक सच्चाई यह भी है कि सरकारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक किसी भी कर्मचारी को उसके कुल मासिक वेतन से अधिक नकद पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए. 26/11 के मुम्बई हमले से जुड़े कसाब को फांसी दे दी गई है लेकिन सच पर अभी पूरी तरह से पर्दा उठना बाकी है.
मुम्बई में जन्मी और वाशिंगटन में रह रही महाराष्ट्र के गृह विभाग में कार्यरत एक भारतीय सेना की बेटी ज्योति घाघ ने 26/11के मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है. वे इस सिलसिले में जल्द ही अमेरिका में भारतीय राजदूत निरूपमा राव से मिलने वाली हैं. (Demanding NIA to Reinvestigate 26/11 Mumbai Attack & Wrongful Death of ATS Chief Karkare). उधर, वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सचिव डॉ. एस.क्यू.आर. इलियास ने पिछले दिनों सूचना के अधिकार के तहत महाराष्ट्र के गृह विभाग से यह जानकारी मांगी थी कि 26/11 हमले की जांच के लिए क्या कोई जांच टीम या समिति या आयोग का गठन किया था, अगर हां, तो उस जांच दल में शामिल लोगों के नाम व पद बताएं. साथ ही अगर कोई रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है तो उसकी कॉपी उपलब्ध कराएं. साथ ही उन्होंने अपने आरटीआई में यह भी पूछा था कि पुलिस या एटीएस ने अब तक कुल कितने भारतीय को इस मामले में गिरफ्तार किया है, उनके नाम के साथ यह भी बताएं कि उन्हें किस क़ानून को तहत गिरफ्तार किया गया है. और उनसे जुड़े मामले किस अदालत में चल रहे है, और सुनवाई कहां तक पहुंची है?
आरटीआई के जवाब में महाराष्ट्र के गृह विभाग ने बताया है कि महाराष्ट्र सरकार के GAD GR No. Raasua.2008/C.R. 34/29-A के आधार पर अरूणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल व भारत सरकार के पूर्व गृह सचिव श्री आर.डी.प्रधान की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय जांच कमिटी 30 दिसम्बर 2008 को बनाई गई थी. इस कमिटी ने महाराष्ट्र सरकार को अपनी रिपोर्ट 18 अप्रैल, 2009 को ही सौंप दी थी.
यही नहीं, आरटीआई के जवाब में महाराष्ट्र के पुलिस आयुक्त कार्यालय ने यह भी बताया है कि अब तक इस मामले में तीन लोगों यानी (1) फईम अरशद मुहम्मद युयूफ अंसारी (2) सबाऊद्दीन अहमद शब्बीर अहमद शेख और (3) सय्यद ज़बीउद्दीन सय्यद जकीउद्दीन अन्सारी उर्फ अबु जिंदाल की गिरफ्तारी की गई है. इन तीनों पर 120 (ब), 302, 307, 326, 325, 364,
वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सचिव डॉ. कासिम रसूल इलियास इस रिपोर्ट की बाबत इस तथ्य पर जोर देते हैं कि राम प्रधान के नेतृत्व में बनी जांच कमेटी की रिपोर्ट न सिर्फ पेश कर दी गई है बल्कि रिपोर्ट में मुम्बई पुलिस और उसके आला अफसरों को जिम्मेदार ठहराया गया है. मुम्बई पुलिस के आतंकवादी हमले और आपात स्थिति से निपटने की योग्यता पर सीधे-सीधे सवालिया निशान लगाए गए हैं. इतना ही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर पुलिस के पास 270 एके-47 भंडार में रखी थीं, जो वहीं पड़ी रही और उनका इस्तेमाल नहीं किया गया. 26/11 की रात आतंकवादी हमला हुआ, तब मुम्बई पुलिस के आला अधिकारियों में कोई सामंजस्य नहीं था और शहर पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह विफल रहा. यही नहीं, कमेटी ने ‘आतंकवाद निरोधी दस्ते’ (एटीएस) की कार्यकुशलता पर भी सवालिया निशान लगाए और कहा है कि एटीएस ने संकट के समय आदर्श मानदंड नहीं अपनाए. तो अब सरकार बताए कि उसने इस दशा में अब तक क्या कार्रवाई की है? उन्होंने पुनः एक और आरटीआई दाखिल करके महाराष्ट्र सरकार से पूछा है कि इस कमिटी पर अब तक कितनी धन-राशि खर्च की जा चुकी है. और कमिटी के सुझाव पर अब तक क्या कार्रवाई की गई है. क्या राज्य सरकार द्वारा कोई और भी जांच के आदेश दिए गए हैं? साथ ही आरटीआई में यह भी पूछा है कि स्व. हेमंत करकरे के जैकेट के गायब होने पर जो जांच के आदेश दिए गए थे उसका क्या हुआ?
गौरतलब रहे कि हमले के दौरान एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, एक आईपीएस अधिकारी अशोक काम्टे और एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर एक साथ एक ही पुलिस वाहन में शहीद हो गए थे. इसके बाद अलग-अलग स्थानों पर आतंकवादियों के साथ चली मुठभेड़ में मुम्बई पुलिस के कुल 17 जवान शहीद हुए थे और कुल 170 से अधिक लोगों की जान गई थी. राम प्रधान समिति की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मुंबई पर समुद्री मार्ग से आतंकवादी हमलों की संभावना की छह चेतावनियां दी गई थीं पर तट-सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में सरकार और प्रशासन ने महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं की. कई खुफिया रिपोर्टें थीं कि लश्कर-ए-तैयबा समुद्री रास्ते से (कमांडो आतंकवादी) मुंबई में भिजवाने की तैयारियां कर रहा है पर सुरक्षा बढ़ाने या तट-रक्षक बल से नियमित संवाद की दिशा में कोई क़दम नहीं उठाया गया. आखिर ऐसा क्यों?
सवाल यह भी उठता है कि देश के सबसे बड़े आतंकी हमले के मामले में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर हसन गफूर ने भी अपने बयान में कहा था कि 26/11 की रात मुंबई के कुछ बड़े पुलिस अधिकारियों को उन्होंने आतंकियों से लोहा लेने को कहा था, लेकिन कुछ पुलिस अधिकारियों ने मौका-ए-वारदात पर जाने से अनिच्छा दिखाई. गफूर के मुताबिक ये पुलिस अधिकारी एल प्रसाद, देवेन भारती, वेंकटेशम और परमबीर सिंह हैं. तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
पर हैरानी ती बात तो यह है कि जिन अधिकारियों पर गफूर ने आरोप लगाए थे, उनमें से तीनों की पदोन्नति हो चुकी है. के.एल. प्रसाद को राज्य की खुफिया सेवा का मुखिया बनाया गया है. जबकि परमवीर सिंह को कोंकण क्षेत्र का आईजी बना दिया गया है, जो पूरा का पूरा समुद्र से ही घिरा है. यह नहीं, रामप्रधान समिति ने अपनी रिपोर्ट में मुंबई पुलिस की असफलता का सारा ठीकरा तत्कालीन पुलिस आयुक्त हसन गफूर के सिर फोड़ा था. उसके बाद ही गफूर को पुलिस आयुक्त पद से हटा कर पुलिस महानिदेशक गृह निर्माण बना दिया गया था.
इतना ही नहीं, अभी भी अनेक सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है. शहीद एडिशनल कमिश्नर अशोक काम्टे की विधवा विनीता काम्टे ने भी इस रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल खड़ा किया था. विनीता के अनुसार इस उच्च स्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट से 26 नवम्बर की रात मुम्बई पुलिस कंट्रोल रूम से की गई दस मिनट की फोन कॉल का रिकार्ड गायब कर दिया गया है. उन्होंने आरटीआई के ज़रिए अपने पति का मोबाइल विवरण मांगा था. हालांकि इस रिपोर्ट में भी मोबाइल पर उस रात हुई वार्तालाप का विवरण भी नहीं है. विनीता ने यह भी कहा था कि रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की आतंकी घटना से कोई पुलिस नहीं निपट सकती. ऐसे में लोगों का विश्वास पुलिस पर क्यों बरक़रार रहेगा. जब पुलिस अपने ही महक़मे की रक्षा नहीं कर पा रही है तो आम आदमी की रक्षा क्या करेगी?
यह शिकायत सिर्फ विधवा विनीता काम्टे की ही नहीं है, बल्कि हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने अपने पति के शरीर से जैकेट के लापता होने के कारणों को जानना चाहा था, लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिला था. अन्ततः उन्हें सूचना के अधिकार को आजमाना पड़ा तभी उन्हें आधिकारिक तौर पर बताया गया कि जैकेट गायब है. अब जबकि इस मसले पर काफी शोरगुल हुआ तो अपनी लाज बचाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने इस बात की जांच के आदेश दिए हैं कि आखिर जैकेट का क्या हुआ ? लेकिन आज तक इसकी कोई जांच रिपोर्ट नहीं आई है.
प्रधान कमिटी की रिपोर्ट यह भी बताती है कि मुम्बई शहर में करीब 40 हज़ार पुलिसकर्मी बहाल हैं. जिनमें से 16 या 17 हज़ार पुलिसकर्मी स्पेशल ड्यूटी पर लगे हैं. सिर्फ 24 हज़ार पुलिसकर्मी थानों के लिए बचते हैं, जो दो शिफ्ट में काम करते हैं, यानी सिर्फ 12 हज़ार पुलिस वाले एक समय में शहर के लॉ एंड ऑर्डर संभालने के लिए मौजूद होते हैं. उनमें से भी 2 हजार पुलिस वाले एक समय में छूट्टी पर होते हैं. अब मुम्बई जैसे शहर के सुरक्षा का हिसाब-किताब आप खुद ही लगा सकते हैं. ऐसे में इस पूरे मामले में एक निष्पक्ष जांच अति आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसी घटना पुनः न दोहराई जा सके.