Entertainment

डरना मना है, पर डराना जारी है…

Mohd Shahid for BeyondHeadlines

अदृश्य शक्ति, सनकी व्यक्ति, भूत-प्रेत, पिशाच, डायन, चुडैल आदि-आदि शब्दों को सुनकर शरीर में एक सिहरन सी पैदा हो जाती है और लगने लगता है कि कोई आपके आजू-बाजू ज़रूर मंडरा रहा है. इस डर के मसले को हमारे फिल्म उद्योग ने भी बखूबी समझा और फिल्मों के एक और जोनर (कहानी का मूल रस) को रच डाला, क्योंकि अभी तक तो एक्शन-रोमांस पर फिल्म बना करती थीं. अब डर पैदा करने वाले विषयों पर फिल्में बनने लगीं जिसे ‘’हॉरर जोनर’’ के नाम से जाना जाने लगा. दर्शकों ने हॉरर जोनर को हाथों हाथ लिया और डरने के लिये तैयार हो गए.

हालिया रिलीज़ फिल्म ‘एक थी डायन’ भी हॉरर जोनर की फिल्म है. फिल्म को अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं. इसमें इमरान हाश्मी एक जादुगर का किरदार निभा रहें हैं, जिसमें उनका अतीत वापस लौट-लौट कर उन्हें डराता है. फिल्म में डराने के पुराने तरीकों को ही दोहराया गया है लेकिन फिल्म में तब भी नयापन है. बाकी की कहानी आप देख कर ही समझ पाएंगे क्योंकि हम आज हॉरर फिल्मों पर एक नज़र डालने वाले हैं.

Horror films in India

2013 की शुरुआत होते ही एक साथ कई हॉरर फिल्में आईं और गईं, जिसमें से अधिकतर दर्शकों को डराने में नाक़ाम रहीं और बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुईं. इसके बाद हॉरर फिल्मों को लेकर एक बहस सी छिड़ गई थी कि डराने के लिए कुछ नए प्रयोग की ज़रूरत है, क्योंकि आज भी विश्व की हॉरर फिल्मों का प्रतिशत कुल फिल्मों में केवल 25 है और भारत में तो यह और भी कम है. 100 में से केवल 10 फिल्में हॉरर की होती हैं. एक थी डायन ने उन नए प्रयोगों को दर्शाया है.

डराने की शुरुआत

हॉरर फिल्मों का चलन भारत में फिल्म निर्माण के साथ ही नहीं शुरु हो गया. सन 1913 में भारत में फिल्में बनना शुरु हुईं. उसके बाद 1931 में बोलती फिल्मों का दौर आया. तब तक प्यार, मोहब्बत और सामाजिक मुद्दों पर खूब ज़ोर-शोर से फिल्में बन रहीं थीं, लेकिन किसी निर्माता का ध्यान भूतिया फिल्मों की ओर नहीं जा रहा था. 1949 में आई कमाल अमरोही की पहली फिल्म ‘महल’ को इसका खिताब गया. महल हॉरर विषय पर बनने वाली पहली भारतीय फिल्म थी. इस फिल्म में थे उस समय के मशहूर सुपरस्टार अशोक कुमार और मधुबाला. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपर-डुपर हिट साबित हुई, लेकिन फिल्म से भी ज़्यादा प्रसिद्धी मिली लता मंगेशकर को, क्योंकि फिल्म का गीत ‘आएगा आने वाला’ इतनी बहतरीन तरीके से जो गाया गया था.

फिर से हम आते हैं अपने भूतिया फिल्मी विषय पर. महल के आने के बाद निर्देशकों का अब ध्यान हॉरर फिल्मों कि तरफ जाने लगा. उन्होनें सोचा कि दर्शकों का डर से तो हमेशा वास्ता पड़ता ही रहता है क्यों ना उन्हें सिनेमा हॉल में बुला कर डराया जाए. यहाँ से भूत प्रेत पर आधारित फिल्मों के निर्माण में वृद्धि होनी शुरु हुई.

40 से 60 का दशक हॉरर फिल्मों को लेकर बहुत ही धीमा था, लेकिन उस समय भी कई हॉरर फिल्में बन रहीं थीं और सुपर हिट भी हो रहीं थीं, जिसमें हेमंत कुमार की 1962 में आई ‘बीस साल बाद’ 1965 में आई ‘गुमनाम’ और ‘भूत बंगला’ शामिल है. उस समय डर पैदा करने के लिए हाई साउंड का प्रयोग किया जाता था और ज़्यादतर फिल्मों में सफेद साड़ी में लिप्टी औरत के द्वारा दहशत पैदा की जाती थी. मगर उसके बाद एक अगला दौर भी आया.

ये दौर था 70 के दशक का और राम्से ब्रदर्स का. हॉरर फिल्मों के लिए ही राम्से ब्रदर्स को याद किया जाता है, क्योंकि उन्होनें ही हॉरर फिल्मों को एक अलग अंदाज़ में पेश किया. ज़ोम्बीस (लाशें) और सेक्स की चाशनी में लपेट कर जो उन्होने दर्शकों को परोसा उसे हाथों हाथ लिया गया. राम्से ब्रदर्स ने अपनी पहली फिल्म 1972 में बनाई जिसका नाम था ‘दो गज़ ज़मीन के नीचे’. इसके बाद राम्से ब्रदर्स दरवाज़ा, पुराना मंदिर, वीराना और बंद दरवाज़ा जैसी एक के बाद एक हॉरर फिल्में देते ही चले गए जिसे दर्शकों ने भी खूब पसंद किया गया.

राम्से ब्रदर्स के अलावा भी बहुत से निर्देशक प्रायोगिक फिल्में बना रहे थे जो भूतिया या अदृश्य शक्तियों पर आधारित थी. इसमें राजकुमार कोहली की ‘नागिन’ खास है. यह फिल्म एक इच्छाधारी नागिन की कहानी है जिसे भी खासा पसंद किया गया. 1979 में ‘जानी दुश्मन’ आई यह फिल्म सितारों से भरी पड़ी थी जिसे अब तक की बॉलिवुड की सबसे बड़ी हिट हॉरर फिल्म का खिताब प्राप्त है.

उस वक़्त तक कोई बड़ा और नामी कलाकार इन फिल्मों में काम नहीं किया करता था, लेकिन राजेश खन्ना ने इस किंवदति को तोड़ा. उन्होंने 1980 में आई ‘रेड रोज़’ में साइको व्यक्ति का किरदार निभाया. इसी के साथ ही राम्से ब्रदर्स की सामरी, तह्खाना, शैतानी इलाक़ा जैसी फिल्में भी आती रहीं.

डराने के लिए नए-नए प्रयोग किए जाने लगे. कभी खिलौनों को ही भूत बना दिया जाने लगा या कभी खून चूसने वाले किसी वेम्पायेर को पैदा कर दिया गया. दर्शक अब केवल बोल्ड सीन देखने के लिए ही सिनेमा हाल में जाते थे. राम्से ब्रदर्स 90 आते-आते एक दम गायब ही हो गए और साथ ही भूतिया फिल्में भी.

नई सदी और नया हॉरर सिनेमा    

90 का दशक और साल 2000 आते-आते दर्शक हॉरर फिल्मों का रस ही भूल गए. उनके आगे केवल मार-धाड़ और प्यार के गीतों से भरी फिल्में ही चलती थीं. हॉरर फिल्में तब एक आध ही बन रहीं थीं. मौके की नज़ाकत को देखते हुए सफल निर्देशक राम गोपाल वर्मा हॉरर फिल्मों के बिज़्नेस में कूद पड़े. उन्होंने ‘रात’ और 2003 में ‘भूत’ बनाई जिसे मिली जुली प्रतिक्रिया प्राप्त हुई. लेकिन इसके बाद ‘डरना मना है’ और ‘डरना ज़रूरी है’ जैसी फिल्में भी उन्होंने बनाई जिसे दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दिया. मगर उनका हॉरर फिल्मों के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ और वह फिल्में बनाते गए.

हॉरर फिल्मों के मामले में हम भट्ट कैम्प को अधिक समझदार कहेंगे, क्योंकि उन्होंने दर्शकों की रुचि को समझते हुए फिल्मों का निर्माण किया. राज़, राज़-2, राज़-3, हॉन्टेड, हॉन्टेड-2 जैसी फिल्में उनकी सफलता की कहानी कहते हैं. एकता कपूर ने भी हॉरर फिल्मों में हाथ आज़माया और ‘रागिनि एम.एम.एस’ फिल्म बनाई जो हिट हुई. हालिया ’एक थी डायन’ भी उन्हीं की फिल्म है.

सन 2000 के बाद शुरु हुआ हॉरर फिल्मों का सफर निरंतर आगे की ओर बढ़ रहा. साल 2013 में अब तक आत्मा, 3-जी और एक थी डायन जैसी हॉरर फिल्में आ चुकी हैं और गो गोआ गोन, राईज़ ऑफ दी ज़ोम्बी जैसी फिल्में आना बाकी हैं.

40 के दशक से शुरु हुआ सफर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है. डराने के तरीकों में बहुत बद्लाव आया है. रोज़ नई-नई तकनीक के आने से ध्वनि और चित्रों के माध्यम से अधिक डर पैदा किया जा रहा है. वास्तविक जीवन के यह भूतिया फिल्में कितने करीब हैं यह आगे के लिए बहस का विषय है.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]