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बेतिया मेडिकल कॉलेज : नीतिश कुमार का एक धोखा…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बेतिया मेडिकल कॉलेज में 100 एमबीबीएस छात्रों के नामांकन को मान्यता प्रदान नहीं किए जाने के बाद जहां स्थानीय लोगों में मायूसी है, वहीं यहां की डॉक्टर लॉबी में अंदरूनी खुशी है. इस लॉबी में यहां के वर्तमान सांसद डॉक्टर संजय जयसवाल का नाम भी शामिल हैं.

दूसरी तरफ हमेशा से इस कॉलेज के नाम पर राजनीति करने वाले नीतिश कुमार ने फिर से यहां के पब्लिक को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया है. उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को गुरुवार को एक पत्र लिखा है और एमसीआई द्वारा मान्यता प्रदान नहीं किए जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया है. लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि नीतिश कुमार ने कभी भी दिल से चाहा ही नहीं कि बेतिया मेडिकल कॉलेज खुल सके.

bettiah medical collegeनीतीश ने अपने पत्र में आजाद से कहा है कि प्रत्येक 50 लाख की आबादी पर एक मेडिकल कॉलेज होना चाहिए. राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार की दस करोड़ की आबादी के लिए यहां 20 मेडिकल कॉलेज की आवश्यक्ता है पर वर्तमान में मात्र सात मेडिकल कॉलेज बिहार में हैं. लेकिन नीतिश कुमार शायद यह भूल रहे हैं कि सिर्फ कागज़ी बातों से कुछ नहीं होता. जो कमियां एमसीआई ने गिनाई है, उसके बगैर किसी भी कॉलेज को मान्यता मिलना मुमकिन ही नहीं है.

एमसीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 18.51 फीसद टीचरों की कमी है, वहीं वहीं 66.7 प्रतिशत टीचरों के रहने की व्यवस्था नहीं है. लेक्चर थियेटर 2 x 120 का होना चाहिए, लेकिन फिलहाल सिर्फ 2 x 50  का ही है. सेन्ट्रल लाईब्रेरी 1600 sq. m. का होना चाहिए, लेकिन अभी सिर्फ 80 sq. mt. का ही है. लाइब्रेरी में कम से कम 1400 किताबों का होना ज़रूरी है, लेकिन फिलहाल सिर्फ और सिर्फ 110 किताबें ही लाइब्रेरी में मौजूद हैं. यहीं नहीं, छात्रों व नर्सों को रहने के लिए कोई हॉस्टल या घर मौजूद नहीं है. टीचिंग व नन टीचिंग स्टाफ के रहने के लिए भी कोई सुविधा नहीं है. इसके अलावा ऑपरेशन थियेटर की भी कमी पाई गई. ICU/ICCU और PICU/NICU के लिए कोई बेड उपलब्ध नहीं है. मेडिकल कॉलेज में कम से कम दो USG machines की ज़रूरत होती है, लेकिन फिलहाल यहां एक भी उपलब्ध नहीं है. AERB & PNDT approval की भी कोई सूचना नहीं है. Paramedical & Non Teaching staff कम से कम 101 होने चाहिए लेकिन फिलहाल सिर्फ 20 ही मौजूद है. 25 नर्सों की भी कमी है. डिपार्टमेटल लैब अभी तक नहीं बन पाए हैं. स्टाफ व स्टूडेन्ट्स के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा की कमी है. बिजली के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है. यहीं नहीं, OPD में ECG room भी नदारद है. ऐसे कई और कमियां हैं, जिनके बगैर किसी भी मेडिकल कॉलेज को खोलने की इजाज़त किसी भी हाल में एमसीआई नहीं दे सकता.

नीतिश कुमार व उनके बाबू इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं, लेकिन सिर्फ वोट की राजनीति के लिए इन कमियों को दूर करने बजाए सिर्फ व सिर्फ बेवकूफ बनाने का काम कर रहे हैं. इस काम में यहां की स्थानीय मीडिया भी इनके साथ है.

कड़वी सच्चाई तो यह है कि नीतिश कुमार व उनके सरकारी बाबुओं ने कभी चाहा ही नहीं कि बेतिया में मेडिकल कॉलेज खुले. खुद इस कॉलेज के प्रिंसिपल हमसे बातचीत में यह कहकर हमें हैरान कर दिया था कि उनकी नीजी राय है कि यह कॉलेज मुज़फ्फरपूर या मोतिहारी में खुले. यही नहीं, यहां सांसद डॉक्टर संजय जयसवाल भी अंदरूनी तौर इसके खिलाफ रहे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने खुद एमसीआई की टीम को यह प्रस्ताव दिया कि कॉलेज भले ही बेतिया में खुले लेकिन  पढ़ाई श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल, मुजफ्फरपुर में होगी. यह कितनी हैरान कर देने वाली बात है, इसका अंदाज़ा आप खुद ही लगा लीजिए. इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि पूर्व में पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज, धनबाद में इस तरह की व्यवस्था की गयी थी. लेकिन इस पर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की कार्य-समिति के पूर्व सदस्य डॉ. अजय कुमार ने बताया कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल की स्थापना के लिए 300 बेडों का अस्पताल होना चाहिए. अस्पताल व कॉलेज के दो स्थानों पर संचालित करने के लिए 15 किलोमीटर की परिधि में ही संभव है. पूर्व में क्या हुआ उसे वर्तमान में स्थापित होने वाले मेडिकल कॉलेजों से तुलना नहीं की जा सकती है.

यही नहीं, इस मेडिकल कॉलेज के नाम पर बिहार सरकार ने घोटाले भी खुब किए. सुत्रों के मुताबिक अब तक इस कॉलेज के नाम लगभग 800 करोड़ रूपये जारी किए जा चुके हैं. यह 800 करोड़ रूपये कहां खर्च किए किसी को पता नहीं. यहां तक इसकी जानकारी बिहार सरकार मेरे द्वारा डाले गए आरटीआई में भी नहीं दे रही है. हमने अपने आरटीआई में पूछा था कि “बेतिया मेडिकल कॉलेज के लिए अब तक कितनी धन-राशि खर्च की जा चुकी है. संपुर्ण खर्चों का ब्यौरा उपलब्ध कराएं, साथ ही यह भी बताएं कि अब तक कितने लोगों की बहाली इस संदर्भ में किया जा चुका है और इस कार्य पर कितना खर्च आया है.” लेकिन मेरे इस प्रश्न का उत्तर अभी तक बिहार सरकार नहीं दे सकी है.

bettiah medical collegeयही नहीं, बिहार सरकार ने एमसीआई की टीम को लेकर भी हमेशा भ्रम फैलाने का काम किया. मीडिया के खबरों के मुताबिक इस कॉलेज को देखने एमसीआई की टीम 6 बार आ चुकी है. और हर बार एमसीआई के टीम के नाम वीरान पड़े भवनों की रंगाई-पुताई की जाती रही. स्थानीय अखबारों में नेताओं व अधिकारियों के बयान छपते रहे और स्थानीय लोगों में एमसीआई के प्रति नफरत भरने का काम किया जाता रहा.  लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि एमसीआई की टीम पहली बार 02-3 मई को बेतिया आई थी. एमसीआई की डिप्टी सेकेट्री व जन सूचना अधिकारी डॉक्टर रीना नैय्यर ने मेरे आरटीआई के जवाब में  खुद बताया है कि एमसीआई की टीम सिर्फ 2-3 मई, 2013 को ही बेतिया गई थी. इस टीम में डॉक्टर के.एस. अशोक कुमार, डॉक्टर शेखर और डॉक्टर श्रीकांत श्रीवास्तव के नाम शामिल हैं.

यही नहीं, बार बार डॉक्टरों की बहाली व तबादले की खबरें भी लगातार आती रहीं. और इसके नाम पर पैसों का खूब वारे-न्यारे किए गए. दूसरे मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की कमी रही लेकिन बेतिया मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर हमेशा तैनात रहे. लेकिन अफसोस कि एमसीआई के टीम के आने के समय यह कम कैसे पड़ गए.

सच बात तो यह है कि इस मेडिकल कॉलेज के नाम पर आरंभ से ही ठगने का काम किया गया. नीतिश कुमार कभी रिमोट कंट्रोल तो कभी स्टेडियम में इसका शिलन्यास करते रहे. इसके निर्माण स्थल को लेकर आरंभ से ही विवाद बना रहा. प्रस्तावित स्थल पर अतिक्रमणकारियों का कब्ज़ा है. तमाम अतिक्रमणकारी खुद को बेतिया राज किरायादार बताते हैं जबकि मेडिकल कॉलेज निर्माण संघर्ष समिति के संयोजक ठाकुर प्रसाद त्यागी इस भूखंड पर बेतिया राज की दावे को खारीज करते हैं.

1980 में ठाकुर प्रसाद त्यागी ने ‘महारानी जानकी कुंअर मेडिकल कॉलेज निर्माण संघर्ष समिति’ का गठन किया था. तब से लेकर आज तक उनका यह संघर्ष जारी है. इस बीच सैकड़ों बार धरना-प्रदर्शन किए तथा मेडिकल  कॉलेज की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए मुक़दमा लड़ते रहे. कॉलेज की स्थापना के लिए वर्ष 2004 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसमें सरकार व बेतिया राज को पार्टी बनाया.

वो बताते हैं कि बेतिया मेडिकल कॉलेज का सपना सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि चंद्रशेखर व जार्ज फर्नाडिस भी चाहते थे कि बेतिया में मेडिकल कॉलेज खुले. वो उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि 1970 में जब वो कर्पूरी ठाकूर एवं रामानंद तिवारी के नेतृत्व में भूमि आंदोलन कर रहे थे, तब शिवानंद तिवारी के पिता रामानंद तिवारी मझौलिया मिल के लालगढ़ फार्म पर गंभीर रूप से घायल हो गए. उस समय बेतिया अस्पताल में दाखिल कराया गया. सुविधा न होने की वजह से उन्हें पटना रेफर कर दिया गया. जिसकी वजह से पूरा आंदोलन प्रभावित हुआ था.

वो बताते हैं कि कितनी अजीब बात है कि यहां मरीजों को दिल्ली-पटना रेफर किया जाता है. बेचारे मरीज़ रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. जबकि बेतिया मेडिकल कॉलेज के लिए पहले से ही पर्याप्त धन व ज़मीन मौजूद है. खुद बेतिया रानी अपने राज में बेतिया में मेडिकल कॉलेज खुलवाना चाहती थी, बल्कि इसके लिए उन्होंने 1947 में ही ज़मीन और 30 लाख रूपये का अनुदान  भी दिया था, जो सरकारी खज़ाने में जमा है.

आगे वो बताते हैं कि दरअसल समस्या घर में ही है, क्योंकि यहां के विधायक व सांसद व यहां के डॉक्टर ही नहीं चाहते हैं कि बेतिया में मेडिकल कॉलेज खुले, क्योंकि मेडिकल कॉलेज के खुल जाने से सांसद जो खुद डॉक्टर हैं और यहां के डॉक्टरों की दुकानदारी  बंद हो जाएगी. हालांकि वो बताते हैं कि बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री चंद्रमोहन राय व पूर्णमासी राम (सांसद, गोपालगंज) उनके साथ हैं. और सबसे ज़्यादा खुशी उन्हें इस बात की है कि सम्पूर्ण चम्पारण की जनता उनके साथ है. आगे भी उनका संघर्ष जारी रहेगा.

स्पष्ट रहे कि किंग एडवर्ड हॉस्पीटल के नाम से 6,49,000 तथा डरफिन अस्पताल के नाम से 9,50,000 रूपये क्रमश: 1916 और 1935 में बेतिया राज द्वारा प्रिस्ट फंड बनाकर स्टेट बैंक, मुज़फ्फरपुर में जमा किये गये थे.

ठाकुर प्रसाद त्यागी कहते हैं कि दरअसल मैं अंधों के शहर में चश्मा बेच रहा हूं. जनता सिर्फ नीतिश के बिकाउ मीडिया को ही सच मानने लगी है, जबकि सच्चाई यह है कि बेतिया मेडिकल कॉलेज के सबसे बड़े दुश्मन यहां के विधायक, सांसद व बिहार सरकार ही है.

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