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बलात्कार की घटनाओं को दबा रहा है प्रशासन…

BeyondHeadlines News Desk

मुज़फ्फर नगर : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली समेत विभिन्न जनपदों में हुई मुस्लिम समाज के खिलाफ हिंसा को दंगा नहीं कहा जा सकता, यह सांप्रदायिक हिन्दुत्वादी तत्वों, दबंग जाटों के किसान संगठनों की प्रशासनिक मिलीभगत के साथ मुसलमानों पर की गई एक तरफा हमले की कार्यवाई है. जो कई मायनों में गुजरात 2002 से भी ज्यादा विभत्स है.

इस एकतरफा हमले के बाद मुसलमानों को इंसाफ देने के बजाए सरकार की कोशिश मारे गए मुसलमानों की संख्या को कमतर बताने और बलात्कार जैसी घटनाओं को दबाने की रही. यह बातें रिहाई मंच जांच दल के द्वारा शामली के कांधला, कैराना, मलकपुर के सांप्रदायिक हिंसा से पीडि़त मुसलमानों के रिलीफ कैंपों का दौरा करने के बाद जारी बयान में कही गई.

जांच दल में शामिल शरद जायसवाल, शाहनवाज़ आलम, लक्ष्मण प्रसाद, गुंजन सिंह और राजीव यादव ने कहा कि सरकार मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और मेरठ को मिलाकर सिर्फ 50 मौतों का झूठा आंकड़ा प्रचारित करवा रही है, जबकि मरने वालों की संख्या इससे काफी ज्यादा है. जबकि ऐसी लाशों की तादाद भी काफी ज्यादा हैं, जिनको मारने के बाद साक्ष्य मिटाने के लिए जला दिया गया. वहीं बहुत सारे लोग अब भी लापता हैं, जिनके बारे में उनके सगे सम्बंधियों और गांव वालों का मानना है कि हो सकता है कि वे लोग भी मारे जा चुके हों.

रिहाई मंच ने दावा किया कि सरकार और मीडिया का एक हिस्सा यह प्रचारित करने में लगा है कि हिंसा का दौर 7 सितम्बर को जाटों के महा पंचायत से लौटने के बाद उन पर मुसलमानों की तरफ से किये गये हमले के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप  शुरू हुई. जबकि सच्चाई इसके विपरीत है.

DSC05499मुसलमानों के खिलाफ संगठित हमलों की तैयारी पहले से थी. मुसलमानों पर संगठित हिंसा का दौर 5 सितम्बर को लिसाढ़ गांव में 7 सितम्बर की नांगला मंदोड में होने व़ाली महापंचायत की तैयारी के लिए हुई पंचायत के दौरान ही 52 गांवों के जाटों के मुखिया हरिकिशन बाबा ने मुसलमानों को सबक सिखाने का आह्वान कर शुरू कर दिया था, जिसके बाद 3-4 बजे शाम को ट्रालियों में भरकर वापस लौटते समय मुसलमानों को गालियां देते हुए जान से मारने की धमकी दी गयी.

6 सितंबर की शाम को लिसाढ़ के ही मोहम्मद मंजूर को जाट समुदाय के हिन्दुत्वादी अपराधी देवेन्द्र पुत्र चाही ग्राम लिसाढ़ ने यह कहते हुए चाकू मार दी कि मुसलमानों को यहां रहने नहीं देंगे. लिसाढ़ में जनता इंटर कालेज के पास स्थित शिवाला मंदिर में हिंदुत्वादी संगठनों के लोगों ने महीनों पहले से दस-दस रुपए की पर्ची काटकर सदस्य बनाने और लगभग पांच सौ तलवारें बांटने का काम किया गया था. जिसकी शिकायत भी गांव के मुसलमानों द्वारा पुलिस को लिखित में दी गयी थी. दूसरे दिन नंगला मदोड़ में होने वाली महापंचायत जिसे हिन्दुत्वादी संगठनों, रालोद और भारतीय किसान यूनियन का समर्थन प्राप्त था, में खुले हथियारों जैसे बंदूक, हसिया, गड़ासा, तलवार, देशी तमंचे से लैस होकर जाते हुए रास्ते में सुबह 9-10 बजे के करीब बसी गांव के करीब पलड़ा गांव की सात माह की गर्भवती रुकसाना पत्नी रहीस को मार दिया तथा दो अन्य लड़कों को घायल कर दिया तो वहीं पंचायत के दौरान लगभग 12बजे जब पंचायत में शामिल लोगों को पता चला कि उनके बीच जो बोलेरो गाड़ी किराए पर आई है, उसका ड्राइवर मुसलमान है तो ड्राइवर इंसार पुत्र वकील, गांव गढ़ी दोलत को गोलियों से छलनी कर दिया गया. इंसार के शरीर से पोस्टमार्टम में 18 गोलियां मिली हैं. इस घटना की एफआईआर कांधला थाने में दर्ज है.

पंचायत के बाद लौटते हुए शाम को चार बजे नंगला बुर्ज गांव में गांव के ही असगर पुत्र अल्ला बंदा को घायल किया गया, वहीं 5 बजे तेवड़ा गांव के निवासी फरीद पुत्र दोस्त मोहम्मद को तलवार से हमला करके घायल किया. 6 बजे तेवड़ा के ही सलमान पुत्र अमीर हसन की हत्या तेवड़ा गांव में कर दी गई उसके बाद खेड़ी फिरोजाबाद गांव में लताफत पुत्र मुस्तफा की हत्या हुई, इसी गांव के नज़र मोहम्मद पुत्र मूसा की भी हत्या कर दी गई. इन घटनाओं से साफ है कि मुसलामानों के खिलाफ संगठित हिंसा महापंचायत में जाते वक्त, पंचायत के दौरान और पंचायत से लौटते वक्त शुरु हो गई थी.

जांच दल ने पाया कि कुटबा, कुटबी गांव में ‘संघ शक्ति’ नाम का संगठन पिछले एक साल से अधिक समय से सक्रिय था. इस संगठन के एजेंडे में जाटों के नेतृत्व मे कमजोर हिन्दू जातियों खासकर झिम्मर (कश्यप) और दलितों को इकट्ठा करना और मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलना था. माथे पर ‘ऊं’ निशान वाला सफेद पट्टी बांधने वाले ‘संघ शक्ति’ के लोगों ने महापंचायत से 15 दिन पहले से दिन में एक बार के बजाए दिन में तीन-तीन बार बैठकें करनी शुरू कर दी थीं. जिसका नेतृत्व जाट जाति का प्रधान देवेंद्र करता है. इस गांव में कई मुसलमान मारे गए और गांव के सारे मुसलमान कांधला, कैराना, मलकपुर समेत विभिन्न पीडि़त शिविरों में रहने को मजबूर हैं.

रिहाई मंच जांच दल का आरोप है कि सपा सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त मुसलमानों को न्याय देने के बजाए पूरे मामले की लीपापोती करने में ही पूरी ऊर्जा लगा दी और सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया कि पीडितों के लिए बने शिविर सरकार संचालित कर रही है जो बिल्कुल झूठ है. सारे राहत शिविर खुद मुस्लिम समाज व उनकी तंजीमें चला रही हैं.

जांच दल को कैराना राहत शिविर के पीडि़तों ने बताया कि एक दिन प्रशासन के लोग छुपकर दूध बाटंकर कोटा पूर्ती करने की कोशिश की जिसे उन लोगों ने लेने से इंकार कर दिया. इसी तरह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में झूठ बोला कि सरकार ने कैराना कैम्प में 2700 मुसलमानों की व्यवस्था की है. जबकि हलफनामा देते वक्त इस कैम्प में कुल 9771 लोग थे. कैम्प के संचालक अज़मतुल्ला खान ने बताया कि पूरा खर्च स्थानीय मुसलमानों और उनके संगठन उठा रहे हैं.

करैना से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मलकपुर राहत शिविर के हालात काफी खराब हैं. हजारों की संख्या में लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं, बरसात के वक्त वहां के हालात काफी खराब हो जाते हैं. सपा नेताओं द्वारा जो दौरे किए जा रहे हैं वो महज़ कोटा पूर्ती और मीडिया मैनेजमेंट की कोशिश है. जिसकी तस्दीक इससे भी होती है कि कल 23 सितंबर को कांधला राहत शिविर में सपा कुनबे के नेता शिवपाल यादव ने वहां इकट्ठा पीडि़तों से सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा.

वहीं कांधला कैंप के लोगों ने ही बताया कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी मुस्लिम विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए कांधला कैंप में अपनी हिफाजत और इंसाफ के लिए शोर मचा रहे लोगों को यह कहकर शांत कराने की कोशिश की कि आप लोगों ने भी तो हमारी ट्रालियों को तबाह किया है. पीडि़तों का कहना है जब मुख्यमंत्री ही अपने को हिंदू मानकर बात करेंगे तो बात कैसे बनेगी?

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम व राजीव यादव ने कहा कि पिछले तीन दिन से चल रहे दौरे में पाया गया कि विभिन्न गांवों के जो लोग राहत शिविरों में हैं, उनसे उनके परिवार के लोग आज हफ्तों बाद भी बिछड़े हुए हैं. इनमें बच्चों व महिलाओं की संख्या काफी है. पीडि़तों ने यह भी बताया कि जगह-जगह छोटे-छोटे बच्चों व महिलाओं को निशाना बनाया गया है. ऐसे में यह सुनिश्चित नहीं हैं कि वो जिंदा भी हैं. जिस तरह महिलाओं के साथ अभद्रता व उनको कई-कई दिनों तक बंधक बनाने की खबरें सामने आ रही हैं.

ऐसे में स्पष्ट है कि दंगाईयों ने बलात्कार भी किए हैं, पर जिस तरीके से जाट समुदाय की दहशत है और दूसरी तरफ प्रदेश सरकार इन मामलों को स्थानीय सपा के नेताओं के ज़रिए दबाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में महिलाओं से जुड़े इस गंभीर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले. इन मामलों में राज्य महिला आयोग की आपराधिक चुप्पी को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग को तत्काल अपनी तरफ से जांच दल भेजना चाहिए.

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