Ilyaskhan Pathan for BeyondHeadlines
कहा जाता है कि दुनिया की सबसे पहली साईकिल स्कॉटलैंड के कर्कमेट्रिक मैकमिलन ने सन् 1839 में बनाई थी. जाहिर सी बात है कि वो साईकिल मौजूदा दौर की साईकिल से बिलकुल अलग थी. और शुरूआती साईकिलों का आकार भी अजीब था, जिसमें एक पहिया छोटा तो दूसरा इतना बड़ा की साईकिल पर संतुलन बनाना भी मुश्किल हो. हांलाकि उसके बाद साईकिल की रचना से लेकर आकार में कई बदलाव आते रहे. लेकिन साईकिल चलाने की मूल प्रणाली में इतना फर्क देखने को नहीं मिला. यह सच है की रेंजर, स्पोर्ट्स तथा गियर और जम्पर्स वाली साईकिल के मॉडल भी भारत में निर्मित हो चुके हैं और शायद अब ऐसे मॉडल पुराने भी हो गए हैं.
यूं तो बाजार में बैट्री की उर्जा से चलने वाली इलेक्ट्रिक बाईसिकल भी है, पर उसकी कीमतें इतनी ऊँची हैं कि सामान्य परिवार का बजट वहां तक नहीं पहुंच पाता. और यही कारण है कि इलेक्ट्रिक बाईसिकल का चलन उतना नहीं हुआ, जितना कि सामान्य साईकिलो का है. हाल ही में जर्मनी के मार्टिन क्रेईस ने “वेरी बाइक” के नाम से पैर और हाथ से चलने वाली अत्याधुनिक साईकिल बनाई, जिसकी कीमत 4000 डॉलर यानी करीब दो लाख चव्वालिस हजार भारतीय रुपये रखी गई है.
पर क्या कभी ऐसा भी हो सकता है कि बिना किसी इंधन के सामान्य साईकिल मोपेड बाइक की गति से सडको पर दौड़े. शायद हाँ! गुजरात के छोटे से शहर वांकानेर के एक साईकिल रिपेयर सद्दाम खान उर्फ़ अब्दुल्लाह ने अपनी सामान्य रेंजर साईकिल में सरल पर नई तकनीक का संशोधन कर ऐसी साईकिल का निर्माण किया है, जो न केवल मामूली खर्च में बनी है, बल्कि साईकिल की गति भी इतनी है जो आम मोपेड बाइक की होती है.
सिर्फ 9वीं कक्षा तक अभ्यास करने वाले 22 वर्षीय सद्दाम खान इतने ज्यादा पढ़े-लिखे तो नहीं हैं, पर इस क्षेत्र में तजुर्बे की वजह उन्होंने ये कारनामा कर दिखाया है. वांकानेर में सद्दाम खान के पिता की साईकिल की दुकान है. सद्दाम तब से यहाँ पर साईकिल का काम कर रहे हैं. सद्दाम के दादा और दादा के पिता भी इसी व्यवसाय से जुड़े थे. कुल मिलाकर सद्दाम 50 साल से भी ज्यादा पुरानी इस दुकान में चौथी पीढ़ी पर है.
सद्दाम ने अपनी रेंजर साईकिल में 500-600 रु. के मामूली खर्च से अगले पहिये तथा हैंडल में सामान्य बदलाव के साथ इस नयी साईकिल का निर्माण किया है. साथ ही इसमें मोटर साईकिल हैंडल बार ज्वाइंट, मीटर चैन, और एक्सीलेरेटर वायर जैसे कुछ पुर्जे भी उपयोग किये गए हैं. इस नई तकनीक की साईकिल में उर्जा का मूल स्त्रोत दोनों हाथो के दबाव पर आधारित है. इसलिए शोधकर्ता सद्दाम ने अपने इस अविष्कार का नाम भी “हेंड पावर प्लस” रखा है.
सद्दाम अपनी नवरचित साईकिल के बारे में BeyondHeadlines से बात करते हुए बताते है कि “इस साईकिल के अगले पहिये में सामान्य साईकिल का फ्री व्हील, चैन तथा चैन व्हील को फिट किया गया है और उसे हैंडल बार से इस तरह जोड़ा गया है कि हैंडल बार पर हाथों का हल्का दबाव देने से अगला पहिया चलने लगता है और उसकी गति को बढ़ाने के लिए हैंडल बार को विशेष रूप से एक्स्ट्रा लोंग बनाया गया है. साथ ही इस साईकिल की एक खासियत ये भी है कि साईकिल के हैंडल बार को इस मज़बूती के साथ मुख्य ज्वाइंट से फिट किया गया है कि हैंडल बार को उपर-नीचे मूवमेंट करने के बावजूद आप साईकिल पर बड़ी आसानी से संतुलन बना सकते हैं.”
इस नए आविष्कार की गति के बारे में सद्दाम का कहना है कि “शरुआत में सामान्य साईकिल की तरह पैरों से पैडल लगाकर इस साईकिल को सामान्य गति में लाने के बाद हैंडल बार को दोनों हाथो से अप-डाउन करने से अपने आप साईकिल इतनी रफ़्तार पकड़ लेती है कि फिर आपको पैरों से पैडल लगाने की ज़रुरत नहीं रहती और सिर्फ हाथों के दबाव से ही साईकिल चलने लगती है. इसके बाद अगर आप पैडल की उर्जा को उपयोग में लाते हैं तो साईकिल की गतिशीलता और बढ़ जाएगी. यहाँ तक की बिना किसी इंधन के यह साईकिल आम मोपेड बाइक की गति से दौड़ने लगती है.”
आज भी भारत में ऐसे हजारों बल्कि उससे भी ज्यादा परिवार हैं, जिनका मुख्य दुपहिया वाहन साईकिल ही है. और वैसे भी कहा जाता है कि बदलाव की शरुआत आम आदमी से ही होती है. भले ही एक छोटे से शहर से ही सही, पर शायद ये भी हो सकता है की सद्दाम खान का ये आविष्कार आने वाले दिनों में साईकिल युग में क्रान्ति का सबब बने.
नोट: सद्दाम ने अपनी हैंड पावर प्लस साईकिल का प्रायोगिक वीडियो यु-ट्यूब पर भी अपलोड किया है जिसे http://www.youtube.com/watch?v=yV0K6pQ216Q&feature=youtu.be पर देखा जा सकता है.