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देश में बढ़ रहे एड्स के मरीज़

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

हर साल अखबार के पन्ने बताते हैं कि देश में एड्स पर काबू पाने की बढ़ती उम्मीदों के साथ इसके मरीज़ों की संख्या घट रही है. लेकिन नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन से आरटीआई के ज़रिए हासिल अहम दस्तावेज़ बताते हैं कि मरीज़ों की संख्या में लगातार इज़ाफा हो रहा है. पिछले साल यानी 2012 तक 15.29 लाख लोगों को एचआईवी से चिन्हित किया गया और इनमें से मार्च-2012 तक 5.16 लाख लोग एड्स से ग्रसित पाए गए. वहीं इस साल यह आंकड़े बढ़कर 6.32 लाख हो चुका है.

यानी, साल 2004 से लेकर मार्च, 2013 तक देश में चलने वाले विभिन्न Anti Retroviral Therapy (ART) सेन्टर्स में एचआईवी से ग्रसित 18.13 लाख लोगों का इलाज किया गया. मार्च 2013 में 6.32 लाख मरीज़ों का इलाज़ चल रहा है, यानी यह सारे लोग एचआईवी से ग्रसित हैं.

यही नहीं, सरकारी आंकड़ें यह भी बताते हैं कि पिछले एक दशक में भारत में एड्स महामारी की तरह फैला है. जितनी तेज़ी से एड्स फैल रहा है, उतनी ही रफ्तार से एड्स रोक-थाम कार्यक्रमों का खर्च भी बढ़ता जा रहा है.

BeyondHeadlines को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के द्वारा आरटीआई से मिले दस्तावेज़ों के मुताबिक:

  • साल 2004 से लेकर मार्च, 2013 तक 18.13 लाख एड्स मरीज़ों का इलाज Anti Retroviral Therapy (ART) सेन्टर्स में किया गया.
  • मार्च 2013 में 6.32 लाख मरीज़ प्रथम श्रेणी ART ट्रीटमेंट और 5,503 मरीज़ द्वितीय श्रेणी ART ट्रीटमेंट ले रहे थे.
  • एड्स की रोक-थाम के लिए सरकार सालाना करोड़ों रूपये के कंडोम भी बांटती है. उद्धाहरण के तौर नाको ने  2007-08 में 26.20 करोड़ और 2008-09 में 19.84 करोड़ रूपये कंडोम पर खर्च किए.
  • वर्ष 2005-06 में 533.50 करोड़ का बजट रखा गया और 520.82 करोड़ रूपये खर्च किए गए.
  • वर्ष 2006-07 में 705.67 करोड़ का बजट रखा गया और 669.49 करोड़ रूपये खर्च किए गए.
  • वर्ष 2007-08 में 815 करोड़ का बजट रखा गया और 917.56 करोड़ रूपये खर्च किए गए.
  • वर्ष 2008-09 में भी 1100 करोड़ का बजट रखा गया और 1032.37 करोड़ रूपये खर्च किया गया.
  • वर्ष 2009-10 में भी 1100 करोड़ का बजट रखा गया और 938.05 करोड़ रूपये खर्च किया गया.
  • वर्ष 2010-11 में 1435 करोड़ का बजट रखा गया और 1167.21 करोड़ रूपये खर्च किए गए.
  • वर्ष 2011-12 में बजट को बढ़ाकर 1700 करोड़ कर दिया गया और खर्च भी बढ़कर 1304.96 (Provisional*) करोड़ रूपये हो गया. (*यह खर्च ज़्यादा भी हो सकता है.)

कल यानी 01 दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस के मौके पर सरकारी और गैर-सरकारी संगठन एड्स के प्रति जागरूकता के  लिए तमाम तरह के कार्यक्रम और संगोष्ठियां करेंगे. लाल फीता एक बार फिर छाया रहेगा. सरकारी फंड विज्ञापनों में खर्च हो जाएंगे. विज्ञापन सिर्फ रौशनाई से नहीं छपते, इनमें देश के लोगों की गाढ़ी कमाई भी होती है. सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि एड्स रोक-थाम एवं जागरूकता कार्यक्रम के बढ़ते बजट के बावजूद एड्स के मरीज़ों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है.

अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो गैर-सरकारी संगठनों के जागरूकता कार्यक्रम मात्र फंड खर्च करने का ज़रिया ही साबित हुए हैं. नतीजा अब तक शुन्य ही है. जब तक हमें यह अहसास नहीं होगा कि एड्स के नाम पर खर्च होने वाले हज़ारों करोड़ हमारे जेब से ही जाते हैं, तब तक शायद सकारात्मक नतीजे न आ पाए.

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