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गांधी के सपनों को लगा कुष्ठ रोग, सरकार गंभीर नहीं

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

आज़ादी के बाद से ही भारत सरकार कुष्ठ उन्मूलन की बात लगातार करती आ रही है. लेकिन 2014 में भी कुष्ठ रोगियों से भारत को मुक्त नहीं किया जा सका है. शर्म की बात यह है कि जिस गांधीवादी विचारधारा का ढ़िंढोरा पीटकर भारत सरकार विश्व स्तर पर सम्मान पाती रही है, उसी गांधी के कुष्ठ उन्मूलन के सपने को कागज़ी बना कर छोड़ दिया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों की बात करें तो पूरे विश्व के कुल कुष्ठ रोगियों का 55 फीसद हिन्दुस्तान से ही है.

BeyondHeadlines को आरटीआई द्वारा भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय से प्राप्त महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि भारत सरकार कुष्ठ उन्मूलन की दिशा में कभी भी अधिक गंभीर नहीं रही है. इसकी मिसाल आप यहां देख सकते हैं.

2005-06 में National Leprosy Eradication Programme जैसे गंभीर कार्यक्रम के लिए सिर्फ 41.75 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन सरकारी बाबू इस बजट को भी खर्च नहीं पाए. इस वर्ष सिर्फ 23.46 करोड़ रूपये ही खर्च हो पाए यानी तकरीबन आधा बजट वैसे के वैसे ही धरा रह गया. 2006-07 में भी 42.25 करोड़ का बजट रखा गया था, लेकिन खर्च सिर्फ 34.04 करोड़ ही हो सका. 2007-08 की कहानी भी यही है. इस साल बजट घटकर 40 करोड़ हो गया, और खर्च सिर्फ 25.01 करोड़ ही हुआ.

2008-09 में सरकार थोड़ी गंभीर हुई. इस साल बजट बढ़कर 45 करोड़ हो गया और पूरा पैसा खर्च भी किया गया. 2009-10 में 44.5 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन खर्च सिर्फ 35.11 करोड़ ही हो सका. कुछ ऐसी ही कहानी 2010-11 की भी रही. इस साल 45.32 करोड़ का बजट था, पर खर्च 37.35 करोड़ ही किया गया. 2011-12 में भी 44.02 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया और खर्च 40.63 करोड़ ही हो सका.

वहीं BeyondHeadlines को प्राप्त महत्वपूर्ण दस्तावेज़ यह भी बताते हैं कि किस तरह से प्रत्येक साल कुष्ठ रोगियों की नई खेप पैदा हुई है. 2005-06 में National Leprosy Eradication Programme के तहत जहां 1,61,457 कुष्ठ-रोगियों का इलाज किया, वहीं 2006-07 में इनकी संख्या 1,39,252 रही. इसी प्रकार 2007-08 में 1,37,685, साल 2008-09 में 1,34,184, साल 2009-10 में 1,33,717, साल 2010-11 में 1,26, 800 तो वहीं 2011-12 में 1,27,073 National Leprosy Eradication Programme से लाभांवित हुए. इस पूरी प्रक्रिया में यह बात स्पष्ट होती है कि कुष्ठ रोगियों के लगातार मिलते नए मामलों में कोई खास कमी नहीं आई है.

वहीं आंकड़े यह भी बताते हैं कि इस मामले में उत्तर प्रदेश नम्बर वन पर है. 2012-13 में 24222 कुष्ठ रोग के मामले यहां दर्ज हुए. इसी दौरान बिहार में 22001 मामले, महाराष्ट्र में 18715, पश्चिम बंगाल में 11683 और गुजरात में 9010 कुष्ठ रोग के मामले दर्ज हुए.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद का यह बयान कि ‘केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय 12वीं पंचवर्षीय योजना ((2012-17)) में कुष्ठ रोग के उन्मूलन की दिशा में विशेष रूप से ध्यान केंद्रित कर रहा है.’ अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है.

इस सिलसिले में ‘स्वस्थ भारत विकसित भारत’ अभियान चला रही प्रतिभा जननी सेवा संस्थान के राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष कुमार सिंह सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि ‘राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चम्पारण में सबसे पहले कुष्ठ रोगियों के बीच में जाकर ही कार्य करना शुरू किया था. कुष्ठ रोगियों की सामाजिक व मानसिक स्थिति से गांधी पूरी तरह वाकिफ थे. इसलिए वो चाहते थे भारत जैसे देश से इस रोग का उन्मूलन हो.  लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि गांधी के नाम पर राजनीति करने वाली सरकारों ने उनके इस सपने को कब्र में दफना दिया है.’

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