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अल्पसंख्यक कल्याण : खोखले प्रचार के सिवा कुछ नहीं…

Afroz Alam Sahil

चुनावी साल में केन्द्र में सत्ताधीन कांग्रेस पार्टी अपने हर मंच से अल्पसंख्यक कल्याण के दावे को दोहरा रही  है. यहां तक कि चुनावी अभियान का चेहरा भी एक अल्पसंख्यक छात्रा को बनाया गया है, लेकिन कांग्रेस के यह दावे ज़मीनी हक़ीक़त के सामने खोखले साबित होते हैं.

BeyondHeadlines को प्राप्त दस्तावेज़ बताते हैं कि यही सरकार अल्पसंख्यक कल्याण के लिए नए योजनाओं को लागू कर चुनावी फायदा लेने की होड़ में अपने पुराने वादों व योजनाओं को पूरी तरह से भूल चुकी है.

अल्पसंख्यक समुदाय में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विदेशों में तालीम के लिए शिक्षा ऋण दिलाने का वादा किया गया. साथ ही यह भी वादा किया गया कि इस ऋण का ब्याज सरकार खुद अदा करेगी.

लेकिन जब आरटीआई एक्टिविस्ट सैय्यद अनवर कैफी आरटीआई के माध्यम से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय से सवाल पूछा कि ‘विदेश शिक्षा ऋण के तहत आपके मंत्रालय द्वारा पिछले पांच सालों में ऋण कुल कितने विद्यार्थियों को दिया गया? लाभार्थियों की सूची व आवंटित धन की जानकारी उपलब्ध कराएं’ तो मंत्रालय का स्पष्ट जवाब था कि ‘यह मंत्रालय विदेश शिक्षा ऋण नहीं देता है. अतः पिछले पांच वर्षों में लाभार्थियों की सूचना शुन्य है.’

जबकि BeyondHeadlines को आरटीआई से ही हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि ‘Interest subsidy on Educational Loan for Overseas’ के तहत मंत्रालय द्वारा साल 2010-11 में दो करोड़ का बजट रखा गया था और इस बजट में से दो लाख रूपये आवंटित भी किया गया. लेकिन जब खर्च की बात आई तो यह शुन्य रहा. यही हाल 2012-13 का भी रहा. इस साल भी दो करोड़ का बजट रखा गया था. दो लाख आवंटित भी हुए लेकिन खर्च शुन्य बटा ज़ीरो.

आरटीआई एक्टिविस्ट सैय्यद अनवर कैफी ने अपने आरटीआई के आवेदन में यह भी जानकारी मांगी थी कि ‘प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु पिछले पांच वर्षों में कुल कितनी धन राशि खर्च की गई. किन-किन राज्यों में यूपीएससी, एसएससी व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग स्थापित किया गया है.’

मंत्रालय इसका भी जवाब टाल गया. जवाब में बताया गया कि वेबसाइट से जानकारी हासिल की जा सकती है. पर वेबसाईट पर कोचिंग सेन्टर की कोई लिस्ट उपलब्ध नहीं है.

लेकिन BeyondHeadlines को आरटीआई से  प्राप्त महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि सिविल सेवा परिक्षाओं में बैठने वाले छात्रों की मदद के लिए भी सरकार ने बजट निर्धारित किया गया है. Support for students clearing Prelims conducted by UPSC, SSC, State Public Services Commission etc. के लिए साल 2012-13 में 4 करोड़ का बजट रखा गया, लेकिन इसके नाम पर महज़ 2 लाख रूपये रिलीज़ किए गए. और यह दो लाख रूपये भी खर्च नहीं किए जा सके.

अनवर कैफी ने अपने आरटीआई के आखिरी सवाल में यह भी पूछा था कि मंत्रालय द्वारा प्रचार-प्रसार पर अब तक  कितनी धन-राशि खर्च की गई. इस प्रश्न के जवाब में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अनुसंधान, मीडिया एवं नेतृत्व (आरएम एंड एल) प्रभाग ने बताया है कि सूचना ‘शून्य’ है.

लेकिन BeyondHeadlines को आरटीआई से  प्राप्त महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि सबसे ज़्यादा ध्यान मंत्रालय ने प्रचार-प्रसार पर ही दिया है. साल 2008-09 में Research/Studies, Monitoring & Evaluation of Development Schemes for Minorities  including Publicity के लिए 5 करोड़ रूपये का बजट रखा गया था. लेकिन रिलीज 8.95 करोड़ रूपये किया गया और खर्च भी 7.97 करोड़ रूपये रहा.

साल 2009-10 में बजट को बढ़ाकर 13 करोड़ रूपये कर दिया गया. 13 करोड़ रूपये रिलीज भी हुआ और इसमें से 11.97 करोड़ रूपये खर्च भी किया गया. साल 2010-11 में बजट को और बढ़ाकर 22 करोड़ रूपये कर दिया गया. 22 करोड़ रूपये रिलीज भी हुआ और इसमें से 19.63 करोड़ रूपये खर्च भी किया गया.

साल 2011-12 में यह बजट बढ़कर 36 करोड़ हो गया. 36 करोड़ रूपये रिलीज भी हुआ और इसमें से 24.48 करोड़ रूपये खर्च भी किया गया. साल 2012-13 में बजट को और बढ़ाकर 40 करोड़ रूपये कर दिया गया. 33.30 करोड़ रूपये रिलीज भी हुए और इसमें से 33.29 करोड़ रूपये खर्च भी किया गया.

अब सवाल यह उठता है कि जब मूल योजनाओं का पैसा ही रिलीज नहीं किया गया तो उनके अध्ययन पर यह पैसा कैसे खर्च कर दिया गया?

चुनावी मौसम में अल्पसंख्यक कल्याण सरकार के प्रचार की प्रमुख थीम है. टीवी, रेडियो और अखबार देखने पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि केन्द्र सरकार ने सबसे ज़्यादा काम अल्पसंख्यक कल्याण के क्षेत्र में किया है. लेकिन शर्मनाक हक़ीक़त यह है कि जितने विज्ञापनों में मॉडल दिखते हैं, उतनी संख्या में कुल लाभार्थी भी नहीं है. देश के मुसलमानों को तय करना होगा कि वो टोपी पहन कर मुस्कुराते मॉडल को देखकर वोट देंगे या हक़ीक़त को जानने की कोशिश करेंगे?

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