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युक्रेन बनेगा सीरिया..?

Irshad Ali for BeyondHeadlines

युक्रेन एक ऐसा देश है जो 1991 में सोवियत संघ रुस के विघटन होने तक उसका अभिन्न अंग था. गौरतलब है कि युक्रेन सोवियत संघ रुस से अलग होने वाला सबसे बड़ा राज्य था जो बाद में एक स्वतंत्र राष्ट्र बना. युक्रेन सीआईएस (कामनवेल्थ इंडिपेंडेंट स्टेटस) का भी सदस्य है.

युक्रेन में बीते नवंबर से राजनीतिक संकट बना हुआ है. यूरोप की बिगड़ती हालात को युक्रेन बयां कर रहा है. युक्रेन की हालत सीरिया जैसी होती जा रही है क्योंकि युक्रेन का इंडिपेंडेंस स्कवायर अब प्रदर्शनकारियों का गढ़ बन चुका है. जहां से प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के इस्तीफे की मांग लगातार कर रहे हैं.

युक्रेन में राजनीतिक संकट की मुख्य वजह है कि राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच रुस के साथ संबंधों को वरीयता देते हुए यूरोपीय संघ (ईयु) के साथ समझौतों को ख़ारिज कर चुके हैं. राष्ट्रपति विक्टर का कहना है कि रुस हमारा पड़ोसी और अच्छा मित्र राष्ट्र है. उसके साथ हमारे पुराने संबंध हैं. उन्हें नकारा नहीं जा सकता है. जबकि विपक्ष का मानना है कि सरकार यूरोपीय संघ के साथ संबंध बढ़ाए. इसी को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने है.

युक्रेन की मौजूदा हालत बिगड़ती जा रही है. अब तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक रुप धारण कर चुके हैं. दो दिनों के अंदर 96 लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों घायल हो गये हैं. महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है और न ही कोई स्थायी मित्र. इसी तथ्य पर प्रत्येक देश की विदेश नीति काम करती है कि जहां पर उसके राष्ट्रीय हित सधते हैं, वहीं पर वह राष्ट्र अपने संबंधों को वरीयता देता है. यह बात भी युक्रेन के विपक्ष प्रदर्शनकारियों को समझनी चाहिए.

वैसे भी 1990 के बाद से युक्रेन का यूरोपीय संघ के प्रति ज्यादा झुकाव रहा है. युक्रेन उस तरह ही सोवियत संघ से निकला है जिस तरह भारत से पाकिस्तान निकला था. लेकिन भारत व पाकिस्तान का मुद्दा दूसरा है. देखना यह महत्वपूर्ण होगा कि वैश्विक शक्तियां युक्रेन के गृहयुद्ध की तरफ बढ़ते हुए कदमों को कैसे रोकती है. हालांकि ब्रिटेन ने इस मामले को लेकर युक्रेन के राजदूत को तलब किया है. वही अमेरिका ने युक्रेन के 20 वरिष्ठ अधिकारियों पर मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है.

दरअसल यह विवाद युक्रेन का आंतरिक विवाद है और अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक युक्रेन की सरकार को प्रदर्शनकारियों पर गोली नहीं चलानी चाहिए. दूसरी तरफ प्रदर्शनकारी भी इंडिपेंडेंस स्क्वायर पर पैट्रोल बम बना रहे हैं और उनका इस्तेमाल पुलिस के ख़िलाफ कर रहे हैं. एक तरह से यह देश द्रोह का मामला बनता है.

युक्रेन के दोनों पक्षों को हिंसा छोड़कर बातचीत की टेबल पर आना चाहिए. इसी में युक्रेन की भलाई है. विपक्ष की मांग भी सही है कि यूरोपीय संघ के साथ संबंध मजबूत किये जाए. आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो यूरोपीय संघ से संबंध रखना, युक्रेन के ज्यादा हित में हैं क्योंकि इसमें 28 सदस्य देश शामिल हैं और उसके माध्यम से व्यापार की व्यापक संभावनाएं हैं.

जबकि रुस का अपना अलग महत्व है. लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों को प्राचीन रिश्तों की विरासत पर नहीं ढोया जा सकता. जैसे 1990 तक भारत व रुस के संबंध आर्थिक व कूटनीतिक रुप से ज्यादा मजबूत थे. रुस आज भी भारत का एक परम्परागत मित्र राष्ट्र है तथा भारत के रुस के साथ आर्थिक, व्यापारिक, कूटनीतिक तथा सामरिक संबंध बेहतर स्थिति में हैं. लेकिन 2003 में भारत ने अमेरिका के साथ 123 परमाणु समझौते के बाद अपना ध्यान अमेरिका से अपने संबंध व्यापक बनाने पर लगाया है.

अतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में न तो कोई स्थायी दुश्मन होता है और न ही कोई स्थायी मित्र होता है. इसलिए युक्रेन को किसी देश विशेष या संगठन विशेष के साथ संबंध स्थापित करने के स्थान पर अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति का संचालन करना चाहिए. अन्यथा युक्रेन के हालात सीरिया जैसे भी हो सकते हैं.

(लेखन इन दिनों प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे हैं. उनसे  trustirshadali@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

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