Farhana Riyaz for BeyondHeadlines
मनुष्य का स्वभाविक गुण है प्रेम… प्रेम के अभाव में मनुष्य का जीवन सारहीन है. प्रेम एक अनमोल रत्न है. प्रेम का भाव हर कोई नहीं समझ सकता. भावात्मक पहलुओं से जुड़े हुए प्रेम को केवल भावुक लोग ही जान पाते हैं. जिस तरह हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है, उसी तरह भावुक लोग ही दूसरों की भावनाओं की क़द्र कर सकता है. लेकिन बाज़ारीकरण और व्यवसायीकरण के इस दौर में वैलेंटाइन वीक के रूप में आज प्रेम को बहुत ग़लत तरीक़े से प्रचारित किया जा रहा है. जिसका सबसे बुरा प्रभाव अपरिपक्व युवा वर्ग पर पड़ रहा है.
आज हर लड़के लड़कियों को हर दूसरे दिन किसी न किसी से प्रेम हो जाता है. कल ही सड़क पर चलते हुए मैंने एक लड़के को दूसरे से कहते सुना की रिक्शा में जा रही उस लड़की की सूरत बिलकुल एक एक्ट्रेस से मिलती हुई है. मुझे तो उस लड़की से प्यार हो गया है. मैं उसके लिए कुछ भी कर सकता हूँ.
इसी तरह से लड़कियां भी होती हैं, जहाँ कहीं कोई लड़का किसी एक्टर या मॉडल की सूरत में मिलता हुआ लगा, बिना सोचे समझे उस से प्यार कर कर बैठती हैं. फिर ऐसे ही धूर्त और मक्कार लोगों के झूठे प्रेम में फंसकर उनकी साज़िशों का शिकार हो जाती हैं. और अगर कोई लड़की इस तरह के प्रेम को अस्वीकार करती है तो तेज़ाब आदि के द्वारा झुलसा दिए जाने जैसी घटनाओं का शिकार होती हैं. या फिर इस तरह का युवा वर्ग प्रेम में असफल होने पर कुण्ठित युवा वर्ग आत्महत्या जैसे क़दम उठाने से भी नहीं चूकता.
युवा वर्ग के अलावा आज अच्छे खासे समझदार लोग भी झूठे प्रेम में खूब फंसते दिखाई दे रहे हैं. प्रेम त्रिकोण में हुई हत्याओं के मामले आज कल अखबारों में खूब पढ़ने को मिलते हैं.
आजकल प्रेम के इस रूप को देख कर बहुत दुःख होता है. क्या यही होता है सच्चा प्रेम? ऐसा प्रेम केवल एक शारीरिक आकर्षण होता है और कुछ समय बाद इसका खत्म हो जाना स्वभाविक है. सच्चा प्रेम क्या है शायद आज के इस दौर में बहुत कम लोग जानते हैं. सच्चा प्रेम तन की नहीं मन की सुन्दरता देखता है. इसके कई रूप हैं, कई रंग हैं, इसकी कोई सीमित परिभाषा नहीं है.
प्रेम की व्याख्या में कबीरदास जी ने एक दोहा कहा है जिसका अर्थ है – “यदि पूरी पृथ्वी को कागज़ और सातों समुद्र को स्याही बनाई जाये तो भी में प्रेम की व्याख्या नही कर सकता.” प्रेम का मतलब है आप पूरी तरह उसके प्रति समर्पित हों जिससे आप प्रेम करते हैं, इसके अलावा प्रेम की न कोई इच्छा है, न ईर्ष्या, न उपकार और न ही तिरस्कार… परन्तु आज वेलेंटाइन डे पूरे जोश खरोश क साथ मनाने वाली युवा पीढ़ी को प्रेम के सच्चे अर्थों को शायद ही समझ पाती हो, क्यूंकि इनके लिए ये एक साधन मात्र बन गया है सब कुछ पाने का.
आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में शामिल हो कर आज का युवा वर्ग प्रेम का ग़लत इस्तेमाल करते हुए दिशाहीन होते जा रहे हैं. परन्तु युवा वर्ग को समझना होगा कि उससे परिवार को, समाज को और राष्ट्र को बहुत उम्मीदें होती हैं. इसलिए आधुनिककता की इस अंधी दौड़ में शामिल न होकर परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए एक अर्थपूर्ण जीवन जीना होगा. क्योंकि युवावस्था एक ऐसा वक़्त होता है जब हम अपने आपको या तो उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा सकते हैं, या फिर गिरा सकते हैं अवनति की कीचड़युक्त गहरी खाई में…