Edit/Op-Ed

फुकुशिमा त्रासदी से भारत को सीखने की ज़रूरत

हम फुकुशिमा के लोगों को वह वापस नहीं लौटा सकते जो उन्‍होंने त्रासदी में खोया है लेकिन हम उनके साथ खड़े होकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उन्‍हें मुआवजा मिले जिसे वे याद करें

Dr. Seema Javed for BeyondHeadlines

फुकुशिमा त्रासदी इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि नाभिकीय तकनीक पर बहस सिर्फ अर्थशास्त्र से जुडे पहलुओं तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि मानवीय व पर्यावरणीय कीमत से जुडे पहलुओं और समाज पर हो रहे दुष्प्रभावों पर भी गौर करने की ज़रूरत है.

पिछले तीन वर्षों से फुकुशिमा तथा आसपास रहने वाले लोगों को सामान्‍य जीवन का आभास वापस पाने के लिये किस क़दर संघर्ष करना पड़ रहा है. अनेक इलाकों के हालात अब भी वहां लोगों को रहने की इजाज़त नहीं देते. इस कारण अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए 140000 लोग अधर में लटके हैं. वे ना तो अपने घर वापस जा सकते हैं और ना ही समुचित मुआवजे और सहयोग के अभाव के कारण अपनी जिन्‍दगी को दोबारा पटरी पर ला सकते हैं. दरअसल तो परमाणु आपदा से निपटने के लिये किसी भी तरह की तैयारी पर्याप्‍त नहीं है. यहां तक कि जापान जैसा विकसित देश भी इससे निपटने के लिये संघर्ष कर रहा है.

छह बायलिंग वाटर रियेक्टर वाले फुकुशिमा नाभिकीय उद्यान में कुल मिलाकर 4600 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की क्षमता है. फुकुशिमा की परमाणु त्रासदी से करीब 250 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है और इसके लिए जिम्‍मेदार टेप्‍को (टीईपीसीओ) दुनिया की सबसे बड़ी ऊर्जा इकाइयों में शुमार की जाती है, फिर भी वह इस नुक़सान के बोझ से बच रही है.

जापान को परमाणु आपूर्तिकर्ताओं के लिये सुस्‍पष्‍ट और दृढ़ जवाबदेही तय करनी चाहिये और मुनाफा कमाने वाले इन निगमित घरानों को वित्‍तीय तथा कानूनी दायित्‍व से मिली छूट को खत्‍म करना चाहिये. हम फुकुशिमा के लोगों को वह वापस नहीं लौटा सकते जो उन्‍होंने त्रासदी में खोया है लेकिन हम उनके साथ खड़े होकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उन्‍हें मुआवजा मिले जिसे वे याद करें.

 जापान में निजी श्रम ठेकेदारों द्वारा फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के आपदा क्षेत्र को साफ करने के लिए  बेघर लोगों को “भर्ती” कर रहे हैं. उन्हें न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान के आलावा उनके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कोई क़दम नहीं उठाया जा रहा है. इसके बावजूद इन दिनों जापान व भारत के बीच परमाणु संधि की वार्ता तेज़ हो चली है जो आगे जाकर जापान के  परमाणु प्रौद्योगिकी के निर्यात का मार्ग प्रशस्त करेगी.

दरअसल, नाभिकीय ऊर्जा न केवल ऊर्जा उत्पादन का सबसे विवादास्पद और खतरनाक रूप है बल्कि यह सबसे खर्चीले स्वरूपों में से एक भी है. किसी शहर के परमाणु परिशोषण की समस्या काफी जटिल होती है, क्योंकि इसमें कई और चीजें भी जुड़ी होती हैं. तमुरा शहर में लगभग साल भर से तेरह सौ मजदूर प्रतिदिन परिशोधन के काम में लगे हुए हैं, जो वहां के आवासीय जगहों और जंगलों से मलवे हटाने में लगे हैं.

अगर पूरे काम का आकलन करें तो वहां 228,229 स्कॉयर मीटर इमारतें, 95.6 किलोमीटर सड़कें, 1,274,021 स्कॉयर मीटर कृषि योग्य ज़मीन और 1,921,546 स्कॉयर मीटर जंगल को साफ करने की ज़रूरत है. अगर जापान को इसे करने में इतनी परेशानी हो रही है तो क्या भारत को अगर कोई हादसा होता है तो कितनी परेशानी होगी? जैतापुर नाभिकीय उद्यान में छह प्रेशराइज्ड वाटर रियेक्टर के साथ 9900 मेगावाट बिजली उत्पादन करने का प्रस्ताव किया गया है जो विश्व का सबसे बडा नाभिकीय रियेक्टर उद्यान होगा.

(लेखिका डा. सीमा जावेद एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद हैं और वर्तमान में ग्रीनपीस के साथ जुड़ी हुई हैं.)

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