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कब दूर होगी भारत की कूटनीतिक गरीबी..?

Irshad Ali for BeyondHeadlines

 ‘भारत’, जिसमें कौटिल्य जैसा कुटिल बुद्धि का कूटनीतिक पैदा हुआ हो.  आज वही भारत कूटनीति के क्षेत्र में पिछड़ता नज़र आ रहा है. भारत की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह शक्तिशाली अमेरिका और यहां तक कि छोटे व कमजोर मालदीव से भी कूटनीतिक मात खा जाता है? क्या हम इतने कमज़ोर हो गये है कि अपने राष्ट्रहितों को भूलकर दूसरे देशों के दबाव में आ जाते हैं.

यह बड़ी बेशर्मी तथा चिंता की बात है कि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इटली के नौसेनिकों पर समुन्द्री लुटेरों के ख़िलाफ इस्तेमाल होने वाले सेफ्टी ऑफ मेरीटाइम नेवीगेशन एंड फिक्स्ड प्लेटफार्म्स ऑन कॉन्टीनेंटल सेल्फ एक्ट (सुआ) के तहत मुक़दमा नहीं चलाने की घोषणा की है. साफ है कि भारत सरकार ने यह फैसला यूरोपीय संघ (ईयु) तथा इटली के दबाव में लिया है.

मालूम हो कि 15 फरवरी 2013 को केरल के कोच्चि तट के पास इत्तावली नौसेनिकों ने दो भारतीय बेकसूर मछुआरों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. तब से इटली व भारत के बीच विवाद शुरु हो गया. भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से कराने का आदेश दिया था.

सरकार का क़दम गैर-ज़िम्मेदाराना है, क्योंकि NIA सिर्फ सुआ और गैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम जैसे विशेष क़ानून के तहत आने वाले अपराध की जांच कर सकता है. सरकार अपने इस क़दम के पीछे आर्थिक-व्यापारिक संबंधों के महत्व का तर्क दे सकती है. क्योंकि भारत के यूरोप के साथ अच्छे संबंध हैं. यूरोपीय यूनियन के साथ भारत का काफी व्यापार होता है. ऐसे में ईयु के साथ संबंधों को बिगाड़ा नहीं जा सकता है.

सवाल यह है कि क्या भारत अपने बेगुनाह नागरिकों की हत्या होने के पश्चात यूं ही शांत बैठा रह सकता है? भारत की कूटनीतिक हार का मामला पिछले साल तब चर्चा में आया था, जब पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सैनिकों के सिर काटकर अपने साथ ले गये थे.

अमेरिका को पाकिस्तान कूटनीतिक रुप से दबा लेता है. जबकि भारत की तुलना में पाकिस्तान आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व सैनिक दृष्टि से कमज़ोर देश है. हर वर्ष पाकिस्तान यूएसए से आर्थिक सहायता के रुप में अरबों डॉलर प्राप्त करता है. फिर भी भारत कूटनीतिक क्षेत्र में असहाय नज़र आता है.

भारत की कूटनीतिक हार तो चीन द्वारा तिब्बत को हथिया लेने पर ही स्पष्ट हो गयी थी. उसके बाद, कूटनीतिक विफलता के कारण ही कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र संघ में गया. भारत की कूटनीतिक दूरदर्शिता की कमी के कारण ही 1954 में हुआ पंचशील का समझौता, 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में ध्वस्त हो गया.

शिमला समझौते के परिणामस्वरुप हमारे पास मौका था कि कश्मीर के मुद्दे को सुलझाया जा सके. लेकिन वहां भी हम नाकामयाब रहे. आख़िर क्यों?  क्या भारत के नागरिकों का कोई महत्व नहीं है? भारत किस आधार पर अमेरिकी राजनायिकों को देश में विशेष सुविधा व अधिकार देता है जबकि अमेरिका हमारे राजनायिकों का अपमान करता है.

स्वाभिमान व राष्ट्रहित भी कोई चीज़ होती है. लेकिन भारत लगातार अपनी कूटनीतिक विफलता के चलते एक ‘सॉफ्ट नेशन’ का दर्जा पा चुका है.

क्या यह भारत व उसके नागरिकों का अपमान नहीं है कि भोपाल में वर्ष 1984 में, ‘यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड’ कंपनी में हुई गैस त्रासदी का मुजरिम वारेन एंडरसन आज भी अमेरिका में खुला घूम रहा है. अपने नागरिकों की मौतों के दो दशक बाद भी भारत उसका कुछ न बिगाड़ सका. यहां तक कि अपने यहां उसे प्रत्यार्पित करके उसके ख़िलाफ मुकदमा तक न चला सका. जबकि इस गैस त्रासदी कांड में हजारों की संख्या में लोग मारे गये थे.

एक महाशक्ति बनने की इच्छा रखने वाले देश की सरकार को कूटनीतिक रुप से कुशल, परिपक्व और सशक्त होना चाहिए जैसे अमेरिका. अमेरिका ने 2 मई 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में घुसकर अपने देश के दुश्मन लादेन को मार गिराया.

भारत की यह भी कूटनीतिक हार नहीं तो और क्या है कि भारत ने अमेरिका के दबाव में ईरान-पाक-भारत गैस पाईपलाइन परियोजना ठंडे बस्ते में डाल दी.

जब तक कोई देश अपने राष्ट्रहितों की सुरक्षा के लिए दृढ़ता के साथ खड़ा नहीं हो सकता तब तक वह महाशक्ति नहीं बन सकता. हमें चीन से सीखने की ज़रुरत है. चीन ने भारत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर नियंत्रण से लेकर श्रीलंका, म्यांमार, बंग्लादेश यहां तक कि नेपाल में अपनी मजबूत पकड़ बना ली. इस तरह हम घिर गये हैं. चीन अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना हक़ जताता रहता है और वहां के नागरिकों को ललचाता रहता है. यही नहीं वह कश्मीरी नागरिकों को नत्थी बीजा तक देता है. आख़िर यह सब इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि भारत ने कभी कठोर रुख़ ही नहीं अपनाया. इसके चलते भारत एक नरम देश के रुप में विख़्यात हो गया. फलस्वरुप विश्व में भारत की कूटनीति को कमजोर करके आंका जाता है.

भारत को सख़्त रुख अपनाना पड़ेगा. अपने सम्मान और स्वाभिमान के लिए मज़बूती से आगे आना पड़ेगा तभी यह अपमान कम होगा. दुनिया की 17 फीसदी आबादी वाले देश को कूटनीति के क्षेत्र में विशेष काम करने की ज़रुरत है ताकि कोई भी भारत की ओर टेढ़ी नज़र न उठा सके.

(लेखक विदेशी मामलों के जानकार हैं. उनसे trustirshadali@gmail.com के ज़रिये संपर्क किया जा सकता है.)

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