Ashutosh Kumar Singh for BeyondHeadlines
महाराष्ट्र में दवा-डॉक्टर व दुकानदार की मिलीभगत चरम पर है… आज खुद हम इसके शिकार हो गए… आज सुबह जब बिस्तर से उठा तो मेरे गले में चुभन सा महसूस हुआ. गले से बलगम निकला तो उसमें खून का कुछ अंश था… एक घंटे के अंदर चार-पांच बार खून युक्त बलगम निकलने के बाद हम स्थानीय सिद्धार्थ म.न.पा रुग्णालय, गोरेगांव (प.), मुंबई, में खुद के चेकअप के लिए चला गए.
10 रुपये की रशीद कटाने के बाद 101 न. के ओपीडी के सामने लंबी लाइन में खड़ा होकर अपनी बारी का इंतजार करता रहा. आखिर में मेरी बारी आई और डॉक्टर के सामने पहुँचा. मेरे हाथ की पर्ची को लेकर डॉक्टर ने दवा लिखना शुरू कर दिया… मैं अपनी पूरी बात और अपनी मेडिकल हिस्ट्री बताने का प्रयास कर रहा था, लेकिन डॉक्टर साहब सुनने को तैयार नहीं थे. उनका कहना था यहां रोज़ सैकड़ों मरीज़ आते हैं हम सब जानते हैं. मेरे पास मेरे खूनयुक्त बलग की तस्वीर थी, जिसे मैं डॉक्टर को दिखाना चाह रहा था लेकिन वह कहां सुनने वाला था.
डॉक्टर के इस प्रिस्किप्सन को आप लोग ध्यान से देखिए पहले वह तीन दवाई इस पर लिखा था पीसीएम, सीपीए व रैन्टैक. और नीचे जो छोटी पर्ची दिख रही है उस पर उसने लिखा क्रिमॉक्स एजी-625 व रीयल डीएसआर और छोटी पर्ची वाली दवा को बाहर से लेने के लिए कहा.
मैं इस दवा को बाहर लेने गया तो मालूम चला की ये दोनों दवा एक ही कंपनी की है… पहली दवा जो एंटीबायोटिक्स थी, उसकी कीमत 21 रुपये प्रति कैप्सुल तथा दूसरी दवा उसकी कीमत 65 रुपये की 10 कैप्सुल. यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि डॉक्टर ने जो दवा लिखा है, उसमें से न तो हमें सीपीएम की ज़रूरत है और न ही पीसीएम की ज़रूरत है, साथ ही दूसरी जो दवा हैं वो बोमेटिंग इंटेशन के लिए हैं, जिसकी ज़रूरत तो बिल्कुल ही नहीं है.
सबसे चौंकाने वाली बात तो तब सामने आई जब मैं पुनः डॉक्टर के पास गया और कहा कि आज जो एंटीबायोटिक्स लिखे हैं, उसका सब्ट्च्यूट कोई सस्ती दवा लिख दीजिए… वह भड़क गया बोला कि मुझे दूसरी दवा के बारे में नहीं जानकारी है. इस पर मुझे गुस्सा आया और सिद्धार्थ अस्पताल के चीफ मेडिकल ऑफिसर को उनके मोबाइल न.09930468563 पर फोन किया.
उन्होंने डॉक्टर का नाम पूछा- मैंने कहां कि मुझे डॉक्टर का नाम मालूम नहीं है, पूछ कर बताता हूं. जब मैं डॉक्टर का नाम पूछने गया तो डॉक्टर ने नाम बताने से मना कर दिया… हमने कहा कि आप जो दवा छोटी पर्ची पर लिखे थे उसको तो इस बड़ी पर्ची पर लिख दीजिए. उसने झट से बड़ी पर्ची पर मॉक्स व आगुमेंट्रिन लिख दिया…
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि छोटी पर्ची पर उसने दूसरी कंपनी की महंगी दवा लिखा था, और इस पर्ची पर उसने रियल डीएसआर प्रिसक्राइब नहीं किया… इस वाक़्या के बाद मैं तीन-चार बार सीएमओ को फोन कर चुका हूं, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहे हैं.
फिर वहां से निकलकर मैं सीधे महाराष्ट्र एफडीए के दफ्तर जा पहुंचा. एफडीए कमीश्नर डॉ. महेश झगड़े से इसकी शिकायत करने पर उन्होंने सुझाव दिया कि मेडिकल कांसिल ऑफ इंडिया के महाराष्ट्र इकाई में लिखित शिकायत करूं ताकि उस डॉक्टर का लाइसेंस रद्द हो जाए.
यही थी सुबह 9 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक की यह कहानी हैं… आगे मैं अपने अपने दफ्तर आ चुका हूं और डॉक्टर की शिकायत लिख रहा हूं… आगे की कहानी जल्द ही BeyondHeadlines पर लिखूंगा… कहीं और लिख भी नहीं सकता, क्योंकि इस तरह की कहानी सिर्फ यही वेबसाइट प्रकाशित कर सकती है…