Lead

जिसने गुजरात में दूध की गंगा बहाई, उसे मोदी ने खून के आंसू रुलाया

Sanjeev Kumar (Antim) for BeyondHeadlines

मोदी जी यह कहते थकते ही नहीं कि भारत का हर नागरिक गुजरात में उत्पादित दूध या दूध से बनी चाय पीते है. पर क्या गुजरात की दुग्ध क्रांति, अमूल, आनन्द, आदि सभी नरेन्द्र भाई मोदी जी के नाम से जुड़े हुए है?

जिस वर्गिस कुरियन को भारत के दुग्ध क्रांति, अमूल, आनन्द आदि का जनक माना जाता है, उस कुरियन को इसी मोदी ने गुजरात में उनके उसी के बनाये चमन से बेइज्ज़त कर निष्काषित कर दिया था. कुरियन का क़सूर सिर्फ इतना था कि वो अमूल को प्राइवेट क्षेत्र के हाथों बेचने या उनके किसी हस्तक्षेप का विरोध कर रहे थे. वो अमूल पर पूर्ण रूप से किसानों के अधिकार को बरक़रार रखना चाहते थे.

Untitled

जिस गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन को उन्होंने अपने हांथो से बोया, सींचा और बड़ा किया, उन्हें वहीं से धक्के देकर बाहर निकाल दिया गया. उनके एक विरोधी भरवाड़ ने तो सभा में यहां तक कह दिया कि वो हर कोशिश करेंगे कि कुरियन दुबारा GCMMF में न आ पाएं.

उनके विरोधियों का उससे भी मन नहीं भरा तो अभी कुरियन को इंडियन रूरल मैनेजमेंट अकादमी गए कुछ ही दिन हुए थे कि कुरियन के सबसे चहेते निजी सलाहकार जोसफ को कुरियन से छीन कर, कहीं और तबादला कर दिया, जबकि जोसफ ने भी इसका विरोध किया. लेकिन भारत के इस महानायक कुरियन कि परवाह ही किसे थी. इतना ही नहीं उन पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाकर उनसे IRMA से इस्तीफा देने की भी मांग कर बैठे.

जब अक्टूबर 2005 में GCMMF के चैयरमेन के चुनाव में कुरियन जीत गए, तो उन्हें रास्ते से हटाने के लिए फरवरी 2006 में कुरियन के नेशनल कोआपरेटिव डेरी फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के नॉमिनेशन को जान बुझ के रद्द कर दिया गया, क्योंकि उद्योगपतियों और नेताओं को ये डर लग गया था कि कहीं कुरियन किसानों के अधिकारों के लिए उनके नाक में दमन कर दे.

इतना ही नहीं, उनके पांच अन्य समर्थकों के नॉमिनेशन को भी रद्द कर दिया गया, ताकि कुरियन GCMMF के चेयरमेन के चुनाव में फिर से न जीत जाये. 19 मार्च 2006 को उन्होंने उनके इस अपमान के विरोध में अपने कलेजे के टुकड़े GCMMF के पद से अपना इस्तीफा दे दिया और पीड़ित स्वर में बस इतना ही कह पाएं कि “मेरे पास और कोई विकल्प छोड़ा नहीं गया है.”

हमें याद करना चाहिए उस कुरियन को भी जिसके भैंस के दूध से दूध पाउडर बनाने के दावे पर पूरी दुनिया ने उनका मजाक उड़ाया था, लेकिन जब कुरियन ने अपने कथनी को करनी में बदल कर भैंस के दूध से दूध पाउडर बना दिया तो पूरी दुनिया ने उन्हें सलाम किया था. उस समय न्यूज़ीलैण्ड और ऑस्ट्रेलिया जैसे अग्रिम दुग्ध उत्पादक देशों से विशेषज्ञ हमारे भारत में कुरियन से दुग्ध उत्त्पादन के गुर सिखाने आने लगे.

मोदी अपने आप को सरदार पटेल के उत्तराधिकारी मानते हैं, लेकिन उन्हें क्या पता कि उसी लौहपुरुष पटेल ने कुरियन को किसानों के लिए कोआपरेटिव खड़ा करने के लिए उत्साहित भी किया और हर तरह की मदद भी की. या यूं कहे कि पटेल ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई थी. भाई, इसमें चौंकने की क्या बात? मोदी जी के इतिहास ज्ञान के बारे में अब तो हर कोई जानने लगा है.

महान कुरियन का काम सिर्फ दुग्ध उत्पादन तक सीमित नहीं था, याद कीजये! AMUL के जीवन पर आधारित उस मंथन फ़िल्म को और फ़िल्म के उस गाने को जो एक समय दूरदर्शन पर छाया रहता था (मारो घर आंगन लक्ष्मी के बाजे).

श्याम बेनेगल की इस फ़िल्म को बनाने के लिए सभी ने पैसे देने से मना कर दिया तो इसी कुरियन ने गुजरात के 5 लाख किसानों से दो-दो रूपये जमा करवाया और उस फ़िल्म को बनवाया. फ़िल्म के बनने के बाद जब कोई सिनेमा घर उस फ़िल्म को लगाने को तैयार नहीं था तो एक बार फिर इसी महानायक कुरियन ने पहल की और गुजरात के गावों से किसानों को इस फ़िल्म को देखने के लिए प्रेरित किया.

मेरे दोस्तों इस फ़िल्म को देखने के लिए किसानों से भारी बैलगाड़ियों कि गुजरात के शहरों में वो भीड़ जुटी कि पूरा देश देखता ही रह गया, और जब फ़िल्म एक बार रिलीज़ हुई तो इस देश ने क्या पूरी दुनिया ने इस फ़िल्म और कुरियन को सर-आँखों पर रखा. इस फ़िल्म को उस वर्ष के राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के ख़िताब से नवाजा गया और इतना ही नहीं इस फ़िल्म को संयुक्त राष्ट्र संघ में दिखाया गया.

जिस कुरियन को पूरे गुजरात के किसान पूजते थे और पूजते रहेंगे उसी कुरियन को वहां के किसानों से रुसवा कर दिया गया. ये सब हुआ गुजरात के गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर…

आखिर कुरियन के बाद GCMMF को हथियाने वाले पार्टी भटोल (जिसे गुजरात में ही कोई नहीं जनता था) शाह के करीबी जो थे. इसके बाद भी अगर मोदी जी गुजरात के दुग्ध उत्त्पदन की असीम क्षमता का श्रेय अपने आप को देना चाहते हैं, तो उन्हें सुनाने और पढ़ने वाले इस इसका फैसला ले.

लेकिन गुजरात में दुग्ध उत्तपादन की क्षमता से सम्बंधित एक अन्य तथ्य जो मैं यहां उजागर करना चाहता हूं. वह है महानायक कुरियन की वह आशंका और दर जो गुजरात में आज सच हो रहा है.

कुरियन ने गुजरात सरकार का सिर्फ इसलिए विरोध किया था क्यूंकि वो नहीं चाहते थे की गुजरात के सहकारी दुग्ध उत्त्पदन के स्वामित्व को किसानों से छिनकर उद्योगपतियों के हाथों में दे दिया जाय. पर कुरियन के लाख कोशिश के बावजूद जब गुजरात के दुग्ध उत्त्पादन पर पूंजीपतियों का वर्चस्व कायम हो ही गया, तो पिछले दस वर्षो में गुजरात में दुग्ध उपभोग का घटता स्तर लाजमी ही था.

2009-10 NSSO के रिपोर्ट के अनुसार दूध के प्रति व्यक्ति उपभोग के मामले में गुजरात की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में काफी ख़राब है. गुजरात में प्रति व्यक्ति दूध का उपभोग ग्रामीण और शहरी इलाके में क्रमशः 6.18 और 6.75 लीटर है. इसकी तुलना में दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड, चंडीगड़, और राजस्थान में प्रति व्यक्ति दूध का उपभोग अधिक है जबकि ये राज्य प्रति व्यक्ति दुग्ध उत्त्पदन क्षमता के मामले में गुजरात से कहीं पीछे है.

(लेखक जेएनयू के छात्र के साथ-साथ एक थियेटर एक्टिविस्ट और जागृति नाट्य मंच के संस्थापक सदस्य हैं. इनसे Subaltern1987@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है. )

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]