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भाजपा का घोषणापत्रः फासीवादी दस्तावेज़

Anil Yadav for BeyondHeadlines

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जो अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है, वह भारत जैसे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए घातक ही नहीं, बल्कि उसके संवैधानिक मूल्यों के भी विपरीत है.

नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का दंभ भरने वाली भाजपा का घोषणापत्र भारत के संविधान की धज्जियां उड़ाता नज़र आता है. भाजपा द्वारा जारी किए गए घोषणा-पत्र को गंभीरता से देखें तो हम आसानी से समझ सकते हैं कि विकास का झुनझुना बजाने वाले मोदी और उनके सिपहसलारों का उद्देश्य कुछ दूसरा ही है.

घोषणा-पत्र के मुख्य पृष्ठ पर ही ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का स्लोगन भाजपा की मानसिकता की तरफ इशारा करता नज़र आता है. वस्तुतः जब भी हमारे मस्तिष्क में ’एक’ की प्रस्तुति होती है, त्यों ही हम दो के अस्तित्व को स्वीकार कर लेते हैं.

एक भारत कहने का अर्थ साफ है कि भाजपा का घोषणा-पत्र बनाने वाली समिति किसी ‘दूसरे’ भारत के बारे में जानती है, अर्थात वह भारत को एक नहीं मानती है. भाजपा का ‘एक’ भारत कैसा होगा? कहीं यह हिन्दू राष्ट्र की तरफ इशारा तो नहीं है? क्या भाजपा पुराने संघी अवधरणा की तरफ इशारा करती नज़र नहीं आ रही है कि भारत के भीतर कई पाकिस्तान हैं.

मोदी ने अपने पूर्वोत्तर की एक रैली में कहा था कि जहां भी हिन्दुओं पर अत्याचार होगा, उसके लिए भारत सुरक्षित जगह होगी. वह भारत ही लौटकर आएंगे. अब 2014 के भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र ने इसे बिल्कुल साफ कर दिया है.

भाजपा के घोषणा-पत्र में स्पष्ट लिखा है कि अपनी ज़मीन से उजाड़े गए हिन्दुओं के लिए भारत सदैव प्राकृतिक गृह रहेगा और यहां आश्रय लेने के लिए उनका स्वागत है. इससे साफ है कि भाजपा भारत को हिन्दू राष्ट्र के तौर पर ही देखती है.

एक अप्रैल 2014 को नेपाल में भाजपा के अनुषांगी संगठन विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल नें विराट नगर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि यदि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो नेपाल को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित कर दिया जाएगा. एक तरफ भारतीय संविधान जहां किसी भी देश के खिलाफ षडयंत्र न रचने और मैत्रीपूर्ण संबंधों की वकालत करता है, वहीं दूसरी तरफ सत्ता का ख्वाब सजा रही  भाजपा और उससे जुड़े हुए नेताओं का विचार बेहद घातक है, जो सिर्फ भारत के लोकतंत्र के लिए ही नहीं, बल्कि पड़ोसी मुल्को के लोकतंत्र के लिए भी घातक है.

ऐतिहासिक तथ्य है कि शुरू से ही भाजपा और संघ परिवार के लिए नेपाल बहुत ही महत्वपूर्ण राष्ट्र रहा है. सावरकर जैसे हिन्दूवादी दार्शनिक ने तो यहां तक घोषणा की थी कि भारत आजाद होगा तो उसे नेपाल में विलय कर दिया जाएगा. नेपाल नरेश को सावरकर ने विश्व हिन्दू सम्राट की उपाधि भी प्रदान की थी. जब नेपाल के लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्षरत थे, तो 2006 में गोरखपुर में आयोजित हिन्दू महा सम्मेलन में ‘राजनीति का हिन्दुत्व करण और हिन्दुओं का सैन्यकरण’ का नारा बुलंद किया गया था.

इसी क्रम में 23 से 25 अप्रैल 2008 में देवीपाटन मंदिर बलरामपुर में विश्व हिंदू महासंघ की कार्यकारिणी की बैठक में साफ कहा गया था कि नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की बहाली होकर रहेगी, चाहे हमें हिंसा का सहारा ही क्यों न लेना पड़े. परन्तु, हिन्दुत्ववादियों को इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई.

भाजपा के 2009 के घोषणा-पत्र को देखा जाए तो इसमें साफ लिखा है कि यदि वो सत्ता में आएं तो नेपाल के प्रति नीति की समीक्षा करेंगे. आखिर यह इशारा क्या था? भाजपा का दुर्भाग्य था और नेपाली लोकतंत्र का सौभाग्य कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार पीएम इन वेटिंग ही रह गए.

यदि हम भाजपा के 2014 के घोषणा-पत्र के प्रस्तावना को ध्यान से देखें तो साफ जाहिर हो जाता है कि भाजपा हिन्दुत्व और विदेश नीति को लेकर क्या सोचती है. भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में उल्लेख किया है कि कोई भी राष्ट्र अपने आप को, अपने इतिहास को, अपनी जड़ों को, अपनी शक्तियों और सफलता को ध्यान में रखे बिना अपने विदेश नीति को तय नहीं कर सकता है.

वस्तुतः भाजपा अपने घिसे पिटे तर्कों के आधार पर भारत को प्राचीन में एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखती है. वह अपनी जड़ों को नेपाल की हिन्दू राजशाही से भी जोड़कर देखना चाहती है.

नेपाल से जुड़े पूर्वाचल में हिन्दुत्व के पैरोकार योगी आदित्यनाथ ने तो भारत के हिन्दू राष्ट्र होने का खाका भी तैयार कर लिया है. योगी आदित्यनाथ के लोग पूर्वांचल में खुले मंचों से मुसलमानों से उनके वोट देने के वैधानिक अधिकार को छीनने की बात करते नज़र आते है.

आदित्यनाथ के लोग न सिर्फ भारत के आंतरिक संप्रभुता के विरुद्ध हैं, बल्कि नेपाल जैसे संप्रभु राष्ट्र की संप्रभुता के लिए भी घातक हैं. ज्ञातव्य हो कि मालेगांव बम विस्फोट के बाद एटीएस चार्जशीट में गोडसे की बेटी और सावरकर की बहू हिमानी सावरकर ने स्वीकार किया है कि भारत में सैन्य विद्रोह के लिए नेपाल से मदद ली जाएगी और ‘बाहर’ से ही भारत की सरकार को चलाया जाएगा. इसके साथ ही साथ नेपाल में भी कई आतंकवादी घटनाओं में योगी आदित्यनाथ का नाम भी आया है.

भारत पर अध्ययन के लिए अपना पूरा जीवन लगा देने वाले पॉल ब्राश नामक विद्वान ने ‘द पॉलिटिक्स आफ इंडिया सिंस इन्डिपेंन्डेन्स’ में लिखा है कि हमें यह समझ लेना चाहिए कि भारतीय समाज और राजनीति बहुत सारे उन पूर्व- फासिस्ट समय के हिंसक लक्षणों को प्रदर्शित कर रही है, जिन्होंने अनगिनत शहरों में स्थानीय रूप से अपने ’क्रिस्टलनाख्त’(हिटलर के समय नाजी ठिकाने, जो यहूदियों पर हमला करने के लिए बनाए गए थे) बना लिए हैं.

भाजपा ने ऐसे असंवैधानिक मुद्दों को अपने घोषणा-पत्र में शामिल करके सत्ता में आना चाहती है, ताकि जब वह सत्ता में आए तो उसके पास यह तर्क हो कि भारत की जनता ने उसके घोषणा-पत्र को स्वीकार किया है.

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