India

लीक से हटकर सोच रहा है बनारस का अल्पसंख्यक

Bhaskar Niyogi for BeyondHeadlines

वाराणसी : इलेक्शन है, वो पूछने आये हैं क्या हाल है? क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सबके साथ रोजी-रोटी का सवाल है. सुरक्षा, भष्ट्राचार, रोजी, रोटी, रोज़गार इन सवालों को लेकर बनारस का अल्पसंख्यक समुदाय इस बार काफी संजिदा है. भावनात्मक मुद्दों से परे हटकर रोज़र्मरा के जिदंगी के सवालों पर अल्पसंख्यक समाज वोट देने का मन बना रहा है.

होने वाले लोकसभा चुनावों में बड़े नामों के बीच वो ऐसा प्रत्याशी तलाश रहा है जो भरोसेमंद होने के साथ-साथ शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को बरक़रार रखते हुए शहर को लेकर वफादार हो.

इस सवाल पर जब हंकार टोला के रहने वाले बुर्जुग अल्पसंख्यकों से बाचतीच कर उनसे पूछा ऐसे कौन से तीन मुद्दे हैं, जिस पर वो वोट डालना चाहेंगे तो जवाब मिला सुरक्षा, रोज़गार और बनारस का विकास…

हमारे ये पूछने पर क्या दंगे सियासत में वोट का रास्ता खोलते हैं. इस पर जवाब मिला दिमागी बीमार लोग इस तरह की फिजा बनाते हैं. आम आदमी को तो रोज़ कुआं खोदना और पानी पीना है.

ढोलक बनाकर गुज़र-बसर करने वाले हंकार टोला के मुख्तार अहमद के लिए रोज़गार में बेहतरी, बिजली, पानी, सड़क मुद्दा है. उनका कहना है, वोट उसे देंगे जो हाल-चाल ले, निष्पक्ष होकर सभी के लिए सोचे.

गुलाम रसूल कहते है कि वोट तो वो महंगाई, भष्ट्राचार, बिजली के मुददे पर ही देंगे. उनकी माने तो इंसानियत सबसे उपर है, इसलिए ऐसे प्रत्याशी को वोट देगें जो सबकों एक सा देखे, भेद न करे.

उनका कहना है, मज़हब के नाम पर वोट नहीं देना चाहिए. मोहम्मद हसन कुरैशी के लिए सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई और भष्ट्राचार है. वो कहते है, शहर बेहाल है और सुनने वाला कोई नहीं. न तो सड़के ठीक है और न तो बिजली, पानी का हाल… ऐसे में उनका वोट इन्हें पटरी पर लाने वाले को ही जायेगा.

सियासत और दंगे के सवाल पर उनका कहना है कि सबकों एक साथ रहना है. हमारा कारोबार भी साझे का है. ऐसे में चोली-दामन का साथ बना रहे सबके लिए यही बेहतर है.

रिटार्यड शिक्षक सदरुल वारा का कहना है कि पहले देश है, बाद में मज़हब… चुनाव में मज़हब को मुद्दा बनाया जाना ही फिजूल हैं. मास्टर साहब के लिए सुरक्षा, रोजी-भष्ट्राचार ही मुद्दा है.

वो कहते है बड़ा नाम नहीं काम ऐसा होना चाहिए जिसपर सभी को गर्व हो, सभी की बेहतरी हो. शाहीद हाशमी का कहना है, इमोशन पर वोट नहीं डालेंगे. आम आदमी की जिदंगी से जुड़े सवाल ही चुनाव का मुद्दा होना चाहिए. भष्ट्राचार, शिक्षा, रोज़गार उनके लिए अहम मुद्दा है. दंगो की राजनीति पर वो बेबाकी से कहते है, ऐसा करने वाले दिमागी बीमार होते हैं. आवाम उन्हें बाहर का रास्ता दिखाये, यही बेहतर होगा.

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