Edit/Op-Ed

कैसा होगा बीजेपी का सांस्कृतिक विकास ?

भारत के अगले पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद भवन के केंद्रीय हॉल में दाखिल होने से पहले जब अपना माथा चौखट से लगाया तो भारतीय संसदीय संस्कृति में एक नया अध्याय जुड़ गया. अब तक संसद को ‘लोकतंत्र का मंदिर’ कहा जाता रहा था, आज एक भावी पीएम ने वहां मत्था भी टेक दिया.

संसद के सेंट्रल हॉल में बीजेपी नेताओं के भाषण प्रतीकों से भरे रहे. भावुक हुए लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने आंसुओं की महत्ता पर जोर दिया. अगले पीएम नरेंद्र मोदी भी अपने भाषण में कई बार भावुक हुए. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने उनके भाषण की तुलना इसी सेंट्रल हॉल में 1947 से दिए पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के भाषण से की.

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने खास कर कहा कि अब सिर्फ आर्थिक विकास नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विकास भी होगा. उत्सुकता भारतीय जनमानस, खासकर शहरी मध्य वर्ग और पढ़े लिखे नौजवानों में इस बात को लेकर है कि सांस्कृतिक विकास कैसे होगा?

क्या भारतीय जनता पार्टी के ‘सांस्कृतिक विकास’ के तहत आरएसएस के उस एजेंडे को लागू किया जाएगा, जिसमें समलैंगिकता के लिए जगह नहीं है. लिविंग रिलेशनशिप अपराध है और शादी से पहले यौन संबंध अक्षम्य अपराध है.

भारतीय संस्कृति में महिलाओं को हमेशा ही विशेष महत्व दिया जाता रहा है. उन्हें सम्माननीय और पूजनीय माना गया. तो क्या इस नए सांस्कृतिक विकास के एजेंडे के तहत पत्नियों को छोड़ देना या दूसरी स्त्रियों के नज़दीक जाना भी अपराध होगा. संभवत: महिलाओं को विशेष अधिकार देते हुए उनकी जासूसी कराना भी अपराध घोषित हो जाएगा. साथ ही क्या ‘सांस्कृतिक विकास’ के तहत भारत की जो हजारों अलग-अलग संस्कृतियों के अलग-अलग रूप और परंपराएं हैं, उनका एकीकरण करने के प्रयास किए जाएंगे. या बीजेपी संघ के एजेंडे पर चलते हुए भारतीय संस्कृति को हिन्दू संस्कृति घोषित कर देगी.

स्कूलों में सूर्य नमस्कार किया जाएगा और जैसा कि योग गुरू बाबा रामदेव, जो बीजेपी के अघोषित गुरू बन गए हैं, ने कहा है कि ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड, कैंब्रिज जैसे विश्वविद्यालय की पद्धति के बजाय गुरुकुल पद्धति के शिक्षण संस्थान शुरू किए जाएंगे. क्या इस सांस्कृतिक विकास में भारत की उस संस्कृति को लागू किया जाएगा, जिसमें समाज एक सुगठित वर्ण व्यवस्था में बंटा है और हर वर्ग की भूमिका निश्चित हैं?

राजनाथ सिंह अपने कई भाषणों में ‘सांस्कृतिक विकास’ का मुद्दा उठा चुके हैं. लेकिन वैश्वीकरण के इस दौर में जहां विश्व की संस्कृतियां मिश्रित हो रही हैं, नई संस्कृतियां अस्तित्व में आ रही हैं, तब एक ‘सांस्कृतिक कट्टरपंथ’ की ओर लौटना क्या उस ‘विकास’ के रास्ते का रोड़ा नहीं होगा, जिसके झंडाबरदार स्वंय नए वजीर-ए-आज़म नरेन्द्र मोदी हैं.

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