Health

ये मौत के अस्पताल हैं…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

आमतौर पर अस्पताल ज़िन्दगी देते हैं. पर अब यहां मौत बांटी जा रही है… और वो भी थोक के भाव में.  मुम्बई के तीन सरकारी अस्पतालों में दस साल के अंदर एक लाख से अधिक मरीज़ों की मौत हुई. सूचना के अधिकार के ज़रिए हासिल महत्वपूर्ण आंकड़े सबका दिल दहला देता है, कंपा देता है, सबको हिला कर रख देता है और मुंबई वासियों के रगो के खून को जमा देता है.

हम किसी प्राईवेट अस्पताल की बात नहीं कर रहे हैं. यह कहानी मुम्बई के सिर्फ तीन सरकारी अस्पतालों की है, जो सरकार के पैसों पर मासूम ज़िन्दगानियों की जान से खेल रहा है. यह तीन सरकारी अस्पताल हैं –सायन हॉस्पीटल, गाटकोपर का राजावाड़ी हॉस्पीटल और मुम्बई सेन्ट्रल का नायर हॉस्पीटल….

आरटीआई कार्यकर्ता आनन्द पारगावंकर को सूचना के अधिकार के ज़रिए हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि 2001 से 2013 के बीच गाटकोपर के राजावाड़ी हॉस्पीटल में 16,014 मरीज़ों की मौत इलाज के दरम्यान हुई. मुम्बई सेन्ट्रल के नायर हॉस्पीटल में मौत का यह आंकड़ा 29,650 रहा तो वहीं सायन हॉस्पीटल में मौत का आंकड़ा लोगों को हैरत में डाल देने वाला है. इस अस्पताल में 2001 से 2013 के दौरान 63,313 मरीज़ों की मौत हुई. बाकी के सरकारी अस्पतालों के आंकड़े और भी गंभीर हो सकते हैं.

यह कहानी सिर्फ मुम्बई की ही नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली की कहानी भी कुछ ऐसा ही है. पूर्वी दिल्ली के खिचड़ीपूर स्थित लाल बहादूर शास्त्री अस्पताल में पिछले पांच सालों के दरम्यान मौत का आंकड़ा चार हज़ार के पार रहा.

इस सरकारी अस्पताल से आरटीआई के ज़रिए हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि यहां  आईसीयू वार्ड में पिछले पांच सालों में 788 मरीज़ों की मौत हुई तो वहीं अन्य वार्डों में इलाज के दौरान मरने वाले मरीज़ों की कुल संख्या 3513 थी.

दो महीने पूर्व आरटीआई के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों से यह बात सामने आई कि दिल्ली के दीनदयाल उपाध्‍याय अस्‍पताल में साल 2007 से 2012 के अक्टूबर तक यानी पिछले 6 साल में  4100 से ज्यादा मासूम बच्चों की मौत हुई है. सिर्फ इतना ही नहीं, आरटीआई के मुताबिक इस अस्पताल में बच्चों पर क्लीनिकल ट्रायल भी होते हैं.

कुछ ऐसे ही आंकड़े पूर्वी दिल्‍ली के चाचा नेहरू बाल चिकित्‍सालय के भी हैं. आरटीआई से मिले महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों के मुताबिक चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में 6 साल में 4400 मासूम बच्चों की मौत हुई है.

हालांकि यह आंकड़े दिल्ली व मुंबई के सिर्फ छः अस्पतालों के ही हैं, लेकिन मौत के अस्पताल तो सरकार के सरपरस्ती में और सरकारी निगहबानी में दिल्ली से लेकर मुम्बई तक जगह-जगह फैले हुए हैं. अब ज़रा सोचिए कि जब देश की राजधानी व आर्थिक राजधानी में मौत का आंकड़ा सीमाएं तोड़ रहा है तो गांवों-देहातों में सरकारी अस्पतालों के फंदे में हो रही मौतों का आंकड़ा क्या होगा? क्या कोई सरकार, कोई एनजीओ या हमारे देश की कोई मीडिया इस भयानक सच पर अपनी चुप्पी तोड़ेगा?

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]