Edit/Op-Ed

मृत देह से बलात्कार सबने किया, बार-बार

ख़ून से लथपथ महिला की नंगी लाश देख आप उस पर पहले कपड़ा डालेंगे या तस्वीर खींचेंगे? ये सवाल बेमानी है. क्योंकि अगर आप पत्रकार हैं तो शायद तस्वीर ही पहले खींचे, कपड़ा बाद में डालें.

ये सवाल बेमानी इसलिए हैं क्योंकि अब पत्रकारिता में उसूल और सिद्धांत भी बेमानी हो गए हैं. संपादकों ने सिद्धांतों की तिलांजलि को विशेषाधिकार मान लिया है. शर्म और ज़िम्मेदारी तो बहुत पहले ही ख़त्म हो चुकी थी.

ख़ैर ये तो थी पत्रकारों और कब की मर चुकी पत्रकारिता की बात. यहाँ उस संस्थान का ज़िक्र किया जाना ज़रूरी नहीं, जिसने नंगी पड़ी लाश के ऊपर अपना लोगो चस्पा कर दिया था.

लेकिन इंसानों को क्या हुआ? क्या उनकी इंसानियत पर भी झूठे क्रोध-प्रतिशोध का कोहरा चढ़ गया है कि वो भी एक मृत देह से बलात्कार कर रहे हैं. बार-बार. और इसमें सब शामिल हैं. भाई-बाप भी. माएँ-बहनें भी.

जो ‘इंसान’ लखनऊ के मोहनलालगंज बलात्कार पीड़ित की तस्वीरें सोशल मीडिया के ज़रिए शेयर कर रहे हैं या जिन्होंने की हैं, उनसे बस एक सवाल- अगर वो लड़की उनकी बहन, दोस्त रिश्तेदार या दूर की ही परिचित होती तो क्या वो उसकी तस्वीरें साझा कर पाते?

तस्वीरें साझा करने वाले लोगों का तर्क है कि ये सच्चाई सामने आनी चाहिए. क्योंकि बलात्कार बहुत बर्बर तरीके से हुआ है. इतने बर्बर बलात्कार को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए.

अब ऐसे लोगों को किस भाषा में बतलाया जाए कि बलात्कार सभी बर्बर ही होते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के बाहर होने वाले बलात्कार भी शामिल हैं.

अभी बीते हफ़्ते ही मध्य प्रदेश में परीक्षा देने जा रही एक लड़की के साथ रास्ते में गैंगरेप कर दिया गया. शर्म के मारे लड़की ने खंभे से कूदकर जान दे दी. वो बलात्कार बर्बर नहीं था शायद इसलिए ख़बर नहीं बन सका.

बीते साल उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी में एक मेडिकल छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई. मामला सीबीआई तक पहुँच कर भी दब गया क्योंकि शक़ बेहद ताक़तवर लोगों पर जा रहा था.

क्या बलात्कार बर्बर नहीं थे. क्या इनमें पीड़िताओं की मौत नहीं हुई. शायद आपको इनके बारे में पता भी न हो. या इनके होने से आपको फ़र्क भी न पड़ता हो.

कड़वा, बेहद कड़वा सच ये है कि आपको बलात्कार होने से फ़र्क नहीं पड़ता. अगर पड़ता होता तो आप महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले छोटे से छोटे अपराध पर बोलते. अपनी ज़ुबाँ खोलने के लिए किसी महिला के साथ बलात्कार के बाद उसकी लाश को नंगा फ़ेंक दिए जाने का इंतज़ार नहीं करते.

बलात्कार महिलाओं के प्रति हिंसा का सबसे वीभत्स रूप है. आप बेशर्मी से मोहनलालगंज की पीड़िता की तस्वीर साझा कर देते हैं. सिर्फ़ अपनी संवेदनशीलता के फ़ूहड़ प्रदर्शन के लिए.

और उतनी ही बेशर्मी से ख़ामोश रहते है किसी तनु शर्मा को ज़हर खाने पर मजबूर कर दिए जाने पर.

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