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लव, जेहाद और राजनीति

BeyondHeadlines News Desk

भारत में हर साल सैकड़ों युवा पुरुष और महिलायें प्यार के रिश्ते में बंधते हैं. वे अपने माता-पिता, जाति और धार्मिक विचारों और परंपराओं को चुनौती देते हैं. उनमें से कई भागकर शादी कर लेते हैं; कुछ अन्य परिवार के दबाव में आकर हार मान लेते हैं और परंपरागत रूप से अधिक स्वीकार्य भूमिकाओं के लिये अपने क़दम वापस खींच लेते हैं.

बॉलीवुड फिल्म उद्योग इस तरह की कहानियों पर ही फल-फूल रहा है. हम रुपहले पर्दे पर इन जोड़ों को देखकर उनके साथ हंसे और रोये हैं. भारत का सुप्रीम कोर्ट बार-बार ऐसे जोड़ों की सुरक्षा और सहायता के लिए आगे आया है.

यूपी राज्य बनाम लता सिंह मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना है और निर्देश दिया है कि ‘‘यह एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है, और जब एक व्यक्ति बालिग हो जाता है तो वह अपनी पसंद से शादी कर सकता है. लड़का या लड़की के माता पिता अगर इस तरह के अंतर्जातीय या अंतरधार्मिक शादी की मंजूरी नहीं देते है तो ज्यादा से ज्यादा वे अपने बेटे या बेटी के साथ सामाजिक संबंध खत्म कर सकते हैं, लेकिन वे अपने बेटे या बेटी को आतंकित नहीं कर सकते और न ही वे उनके खिलाफ कोई हिंसक कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं या हिंसा भड़का सकते हैं.

साथ ही माता-पिता द्वारा अपने ऐसे बच्चों को परेशान भी नहीं किया जा सकता है. ऐसे में हम देश भर के प्रशासनिक/पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश देते हैं कि वे ध्यान रखेंगे कि अगर कोई बालिग लड़का या लड़की एक बालिग औरत या मर्द के साथ अंतरजातीय या अंतरधार्मिक वैवाहिक संबंध स्थापित करता है, तो ऐसे दंपत्ति को न तो किसी के द्वारा परेशान किया जाए और न ही उन्हें आतंकित किया जाये और न ही उनके खिलाफ कोई हिंसक कार्रवाई की जाये, और अगर कोई खुद आतंकित करने या परेशान करने या हिंसा की कार्रवाई को अंजाम देने में शामिल रहता है या इसे उकसाता है तो पुलिस को ऐसे लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही के तहत मामला गठित करना चाहिए और साथ ही ऐसे लोगों के खिलाफ कानून के मुताबिक कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए.

हम कभी-कभी अपनी मर्जी से अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह करने वाले व्यक्तियों के ‘ऑनर किलिंग’  के बारे में सुनते हैं. ऐसी हत्याओं में ‘सम्माननीय’ कुछ भी नहीं है, और वास्तव में यह और कुछ नहीं बल्कि ऐसे क्रूर, सामंती विचारधारा वाले व्यक्तियों द्वारा की गई बर्बर और शर्मनाक हत्या की है जो कठोर दंड के पात्र हैं. केवल इस तरह से हम बर्बरता के ऐसे कृत्यों को समाप्त कर सकते हैं.’’

अरुमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने खाप/कात्ता पंचायतों द्वारा कानून अपने हाथों में लेने और अपनी पसंद के अनुसार शादी करने वालों के निजी जीवन को खतरे में डालने वाली आक्रामक गतिविधियों में लिप्त रहने की परिपाटी की कड़ी निंदा की है.

विधि आयोग ने एक बिल का सुझाव भी दिया है, जिसका शीर्षक है, ‘‘सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक गठबंधन के साथ हस्तक्षेप का निषेध विधेयक’

जिहाद को प्रेम के प्राकृतिक और निःस्वार्थ भावना के साथ जोड़ा जा रहा है. एक नया शब्द अर्थात ‘‘लव जिहाद’’ दो समुदायों में फूट डालने और झूठ व नफरत फैलाने के एक नवीनतम हथियार के रूप में संघ द्वारा गढ़ा गया है. वे इस झूठ का प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसे सभी अंतरधार्मिक विवाह जिसमें पुरुष एक मुस्लिम है, वह दुर्भावनापूर्ण है और ऐसा धर्म परिवर्तन और असंख्य बच्चे पैदा कर मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि के एक मात्र उद्देश्य से साथ जान-बूझ कर किया जा रहा है. इसी प्रकाररूढि़वादी मुसलमान एक गैर मुस्लिम के निकाह के बगैर किसी भी अंतरधार्मिक विवाह को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं.

दक्षिणपंथी धड़ा फूट डालने और समुदायों के बीच नफरत फैलाने के लिए जिस तरह ‘लव जिहाद’ का उपयोग कर रहा है, हम उस तरीके से बहुत चिंतित हैं.

शब्द ‘लव जिहाद’ ज़रुर एक तेज़ शैतानी दिमाग की उपज है और इसका इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को और बदनाम करने के लिए किया जा रहा है. प्रचार यह किया जा रहा है कि कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा गैर मुस्लिम लड़कियों को लुभाने, उनसे शादी करने और मुस्लिम आबादी को बढ़ाने के लिए मुस्लिम युवाओं को पैसे दिये जा रहे हैं. अफवाह फैलाया जा रहा है कि गैर मुस्लिम लड़कियों को आकर्षित करने के लिए युवाओं को मोटरसाइकिल, मोबाइल आदि खरीदने के लिए पैसे दिए गए हैं.

 भारत में यह शब्द कुछ सालों पहले तटीय कर्नाटक, मंगलोर और केरल के कुछ हिस्सों में प्रचलन में आया. श्रीराम सेना ने हिंदू लड़की-मुस्लिम लड़के वाले प्रेमी जोड़ों पर हमले शुरू किये थे. श्रीराम सेना की स्थापना आरएसएस द्वारा प्रशिक्षित स्वयं सेवक प्रमोद मुतालिक ने की थी. ऐसे प्रेमी जोड़ो के विवाह को संदेह की नज़र से देखा जाने लगा और माता पिता यदि शादी के खिलाफ थे, तो श्रीराम सेना अदालत में मामला ले जाने में मदद करने लगा. इस तर्क के साथ कि लड़की को मुस्लिम लड़के से शादी करने के लिए मजबूर किया गया था.

कुछ समय से ‘लव जिहाद‘ को हिंदू लड़कियों के जीवन को नियंत्रित करने वाली व्यवस्था के रुप में प्रयोग में लाया जा रहा है.यह एक ऐसा हथियार बना दिया गया है जिससे यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं है और यह शब्द हिंसा भड़काने के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है. सांप्रदायिक हिंसा के अधिकांश मामलों में इस कपट को पकाया जाता है, धीरे-धीरे तैयार किया जाता है.

अब यह शब्द ‘लव जिहाद’ एक खतरनाक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. व्हाट्स ऐप और फेसबुक पर मौजूद ऐसे कई संदेश इसे मुसलमानों की अंतर्राष्ट्रीय साजिश बताते हुए तैर रहे हैं. पूरी दुनिया में सांप्रदायिक राजनीति और हिंसा ने महिलाओं के शरीर को संघर्ष और सामुदायिक सम्मान के अखाड़े के रुप में प्रयोग किया है. महिला यौनिकता को नियंत्रित किये जाने की मांग की जा रही है क्योंकि इसे संस्कृति, मूल्यों, आस्था और सम्मान के खजाने के रूप में देखा जाता है.

इस साल रक्षा बंधन के दिन (अगस्त 2014) पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में फैले हुए आरएसएस के स्वयंसेवकों के समूहों ने लोगों को राखी बांधी और उन्हें उस खतरे के प्रति चेताया जो खतरा ‘लव जिहाद’ के नाम पर मुस्लिम युवा उनकी लड़कियों को फंसा कर पेश कर रहे हैं. ‘मुस्लिम युवा हिंदू लड़कियों को फुसला रहे हैं और उन्हें परेशान कर रहे हैं.’, ऐसा कहना वर्तमान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दुष्प्रचार का मूल संदेश बना दिया गया है.

संघ इस तथ्य से भी ध्यान हटाने की कोशिश कर रहा है कि सांप्रदायिक हमलों के दौरान अल्पसंख्यक महिलाओं को संगठित रुप से निशाना बनाया जाता है और उनके साथ बलात्कार होता है. ऐसा हुआ है और हो रहा है. गुजरात, कंधमाल एवं मुजफ्फरनगर इसके स्पष्ट उदाहरण हैं. और यह भी महिलाओं की यौनिकता को नियंत्रित करने का एक और तरीका है.

2009 में केरल उच्च न्यायालय और 2010 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पुलिस से ‘लव-जिहाद’ की जांच करने को कहा था. दोनों ही मामलों में पुलिस ने बताया कि मुस्लिम युवकों द्वारा ऐसा कोई संगठित अभियान नहीं चलाया जा रहा था.

भाजपा की बयानबाजी का जो नया चरण उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को एक सांप्रदायिक रंग देने पर केंद्रित है वह विश्वसनीय तथ्यों पर आधारित नहीं है. एनडीटीवी के आंकड़े बताते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिन्दू महिलाओं के कथित प्रताड़ना को सामने लाने का उग्र अभियान चलाया जा रहा है, में इस साल बलात्कार के ज्यादातर मामलों में महिलाओं को अपने ही समुदाय से पुरुषों द्वारा प्रताडि़त किया गया है.

उत्तर प्रदेश के 9 जिलों से संबंधित 334 बलात्कार के मामलों में से 25 मामलों में मुस्लिम पुरुष अभियुक्त हैं और हिंदू महिलायें पीडि़त हैं, वहीं 23 मामलों में हिंदू पुरुष अभियुक्त हैं और मुस्लिम महिलायें पीडि़त हैं, 96 मामलों में मुस्लिम पुरुष अभियुक्त हैं और मुस्लिम महिलायें ही पीडि़त हैं और 109 मामलों में हिंदू पुरुष अभियुक्त हैं और हिंदू महिलायें ही पीडि़त हैं.

अंतरधार्मिक, अंतरजातीय विवाह के खिलाफ इस तरह का अभियान न केवल एक विविधतापूर्ण और बहुरंगी समाज की भावना के खिलाफ हैं, बल्कि वे महिलाओं की यौनिकता को नियंत्रित करना चाहते हैं और चुनावी एवं राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सांप्रदायिक आधार पर समाज में फूट डालना भी उनका मक़सद है.

क्या हम प्रेम को उन लोगों के द्वारा नए सिरे से परिभाषित करने देंगे जिन्होंने सही मायनों में कभी प्रेम को महसूस ही नहीं किया है?

वास्तविकता यह है कि देश भर में हजारों प्रेमी जोड़े दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों और रूढि़वादी मुस्लिम समूहों, दोनों को धता बता रहे हैं और अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं. हमारा यकीन है कि अंतरजातीय और अंतर धार्मिक विवाह भविष्य में एक संगठित और मजबूत भारत का निर्माण करेगा.

हम उन सभी से अपील करना चाहते हैं, जो यह मानते हैं कि प्यार प्राकृतिक है न कि एक मिशन है; जो आस्था, जाति, क्षेत्र, लिंग, भाषा जैसे मानव निर्मित मतभेदों के ऊपर उठकर प्यार, लैंगिक समानता, शांति और मानवता का सम्मान करते हैं; कि वे सांप्रदायिक ताकतों के एक सीमित समाज निर्माण के ऐसे सभी तरह के प्रयासों के खिलाफ आवाज उठाने में हमारे साथ आयें.

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