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बाल दिवस पर रस्म अदायगी से पहले इसे भी पढ़ लें…

Fahmina Hussain for BeyondHeadlines

मेरी पढ़ाई एक चर्च स्कूल में हुई है… बिल्कुल हाई-फाई स्टाईल में… अक्सर मेरी स्कूल बस एक बस्ती के सामने से होकर जाती थी. जहां बस्ती के बच्चे खेलते नज़र आते थें और अक्सर  हमारे कुछ दोस्त (जिनमें मैं भी शामिल होती थी) बस की खिड़की से उन्हें “गंदे बच्चे, गंदे बच्चे” कह कर चिल्लाते थें. आज जब वो दिन याद करती हूं तो अपनी नादानियों पर शर्म और पछतावा होता है.

14 नवम्बर को बड़े खुश होकर स्कूल जाते थें. उस दिन हमें स्पेशल गिफ्ट्स के साथ चॉकलेट भी मिलती थी. आज उन दिनों को याद करती हूं तो अहसास होता है कि यह बाल दिवस उनके लिए है, जो अपने लंच बॉक्स में फॉस्ट फूड ठूंस-ठूंस कर ले जाते हैं. न कि उन जैसे बच्चों के लिए जिनको सुबह से ही दोपहर की एक अदद रोटी की तलाश में निकलना होता है.

किसी भी जनतंत्र में प्रत्येक बच्चा अनमोल माना जाता है और बच्चों के विकास की सम्पूर्ण ज़िमेदारी सरकार की होती है. देश की कुल जनसंख्या का 36 प्रतिशत बच्चे हैं. इसके बावजूद दुर्भाग्पूर्ण ही है कि राजनितिक और मीडिया के एजेंडों में बच्चों से जुड़े स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण जैसे मुद्दों पर जगह मिलती हो. आज भी शिक्षा का स्तर नीचे और बाल मृत्यु दर, कुपोषण  का स्तर बहुत ऊपर है.

बच्चों के चार मौलिक अधिकार है -स्कूल-पूर्व शिक्षा का अधिकार,  कामकाजी महिलाओं के लिए शिशु-गृह का अधिकार, भोजन का अधिकार और स्वास्थ्य का अधिकार… लेकिन वर्तमान में आई.सी.डी.एस. इन लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रही है.

भारत में औसत से कम वज़न के बच्चों की तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा है. भारत में जहां बच्चों को कल का भविष्य माना जाता है, वही भविष्य कुपोषित है. सरकार ने इसके लिए कार्यक्रम तो चलाया, लेकिन ये उन बच्चों को स्वास्थ का पूरा अधिकार नहीं दिला पाया.

भारत में 5 राज्यों और 50 फीसदी गांवों में कुल कुपोषितों की तादाद का 80 फीसदी हिस्सा है. पांच साल से कम उम्र के 75 फीसदी बच्चों में आयरन की कमी है और 57 फीसदी बच्चों में विटामिन-ए की कमी से पैदा होने वाले रोग के लक्षण हैं. देश के 85 फीसदी जिलों में लोगों के आहार में आयोडीन की कमी है.

बाल-कुपोषण, बाल-मृत्यु और व्यस्क व्यक्तियों के रोगी होने की मुख्य वजहों में एक है. भारत में बाल-कुपोषण की मुख्य वजह बच्चों में संक्रमण का लगना और उनको साफ-सफाई के साथ आहार का ना मिलना है.

बाल-कुपोषण की स्थिति ज्यादा है, वहां समेकित बाल विकास योजना के तहत ज्यादा राशि खर्च की जानी चाहिए, लेकिन स्थिति इसके ठीक उलट है. ज्यादा कुपोषण वाले राज्यों में समेकित बाल-विकास योजना के मद में कम राशि दी जा रही है और अपेक्षाकृत कम कुपोषण वाले राज्यों में ज्यादा… (वर्ल्ड बैंक के आकलन के मुताबिक)

वास्तव में बच्चे किसी देश का भविष्य है तो भारत का भविष्य निश्चित ही अंधकारमय है. ब्रिटेन की एक संस्था के सर्वे के अनुसार पूरी दुनिया में जितने कुपोषित बच्चे हैं, उनकी एक तिहाई संख्या भारत में है.

यहां तीन साल तक के कम से कम 46 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इसके अलावा प्रतिदिन औसतन 6,000 बच्चों की मौत होती है. इनमें 2,000 से लेकर 3,000 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है.

सरकार ने बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए कई योजनाएं और जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए हैं. लेकिन कुपोषण के आंकड़े ऐसे प्रयासों, कार्यक्रमों और नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं.

कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए लगातार पंचवर्षीय योजनाओं में प्रावधान किया जा रहा है. आजादी के बाद से जितनी भी योजनाएं बनी हैं, उनमें इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है, लेकिन नतीजे बिल्कुल उलटे रहे हैं.

यूनिसेफ के अनुसार वर्ष 2005-06 में भारत में बच्चों के कुपोषण का प्रतिशत 46 था. भारत में 6 करोड़ 10 लाख बच्चों का विकास कुपोषण से थमा है, तो 2 करोड़ 5 लाख बच्चे जिंदा लाश की तरह जीने पर मजबूर हैं.

“स्वच्छ भारत अभियान” पता नहीं कब “स्वस्थ्य भारत अभियान” में बदलेगा, जहां किसी को अपने हक़ और सेहत के लिए “मरना” न पड़े. जन्म दिन चाहे चाचा नेहरू का हो या सफाई वाले झाड़ू मोटा काका की… बाल दिवस पर रस्म अदायगी करने से पहले हमें अपने अंदर झांक ज़रूर लेना चाहिए कि कहीं वहां कोई मैल तो नहीं…

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