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मोदी सरकार ने अमेरिका के आगे घुटने टेक दिए!

BeyondHeadlines News Desk

2008 में भारत और अमेरिका के बीच होने वाला न्यूक्लियर डील आखिरकार अब फाईनल हो गई है, क्योंकि मोदी सरकार अमेरिका के सामने घुटने टेकते हुए उन शर्तों को मंजूर कर ली है, जिन्हें पूर्व की यूपीए सरकार ने मानने से इंकार कर दिया था. यही नहीं, अमेरिका के साथ हुए समझौते के तहत भारत ने न्यूक्लियर लायबिलिटी के मुद्दे पर झुकते हुए 750 करोड़ रुपये की सरकारी गारंटी भी जोड़ दी है.

विदेश सचिव सुजाता सिंह ने कहा कि परमाणु जवाबदेही को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हो गया है. किसी दुर्घटना की स्थिति में चार भारतीय इंश्योरेंस कंपनियां 750 करोड़ देंगी, जबकि बाकी का खर्च भारत सरकार उठाएगी.

स्पष्ट रहे कि सिविल लायबिलिटी न्यूक्लियर डैमेज (सीएलएनडी) एक्ट 2010 के मुताबिक, किसी भी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में पीड़ित पक्षों को मुआवजा देने के लिए 1500 करोड़ रुपये अलग रखने होते हैं. भारत ने इस मुद्दे पर नरम पड़ते हुए अपनी तरफ से 750 करोड़ रुपये की सरकारी गांरटी जोड़ दी है. इस तरह अब 750 करोड़ रुपये भारत सरकार देगी.

न्यूक्लियर रिएक्टरों और मटीरिअल की निगरानी की अमेरिकी मांग पर विदेश सचिव ने कोई साफ जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर प्रशासनिक व्यवस्था बनाई गई है. यह द्विपक्षीय के साथ अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के समझौतों की पुष्टि करते हैं. गौरतलब है कि भारत इस मुद्दे पर IAEA द्वारा निगरानी की मांग करता रहा है.

अमेरिका की ओर से अमेरिकी रिएक्टर के लिए प्रयोग किए जाने वाले मटीरियल या उपकरण की सदैव के लिए निगरानी का अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी, भले ही इन्हें किसी तीसरे देश से लाया गया हो. भारत अमेरिकी की इस मांग का विरोध कर रहा था.

भारत अमेरिका की इस शर्त का यह कहकर विरोध कर रहा था कि इससे देश की परमाणु संप्रभुता पर चोट पहुंचेगी. भारत न्यूक्लियर रिएक्टरों और मैटेरियल की सिर्फ IAEA द्वारा ही निरीक्षण की बात पर जोर डाल रहा था.

उधर कांग्रेस ने मोदी सरकार से अमेरिका के साथ की गई न्यूक्लियर और क्लाइमेंट चेंज डील पर सफाई मांगनी शुरू कर दी है. कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने मोदी सरकार से सवाल पूछते हुए कहा कि सरकार को साफ करना चाहिए क्या उसने देश के हितों से समझौता तो नहीं किया है. हालांकि मोदी सरकार व भारतीय जनता पार्टी इसे अपनी सबसे बड़ी कामयाबी मान रही है. हम आपको बताते चलें कि मनमोहन सिंह के सरकार में भारतीय जनता पार्टी ने कभी इसी डील का विरोध किया था और उस समय कांग्रेस इस डील के पक्ष में थी.

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