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पोंगल और उसका इतिहास…

Siraj Mahi for BeyondHeadlines

जहां उत्तर भारत के लोग मकर संक्रांति व लोहड़ी बनाने में मस्त हैं, वहीं दुनिया भर में तमिल समुदाय के लोग पूरे धूमधाम से पोंगल त्योहार मना रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ-साथ सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मामलों के केंद्रीय राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णन ने पोंगल के अवसर पर राज्य को संदेश देते हुए राज्य को शराब मुक्त बनाने में सहयोग करने का आग्रह किया। हैं. ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की महासचिव जे. जयललिता ने लोगों को पोंगल का संदेश देते हुए कहा कि पोंगल पर्व के अवसर पर किसान ईश्वर से दुआ करते हैं और जीविकोपार्जन में उनकी सहायता करने वाले पशुओं के प्रति आभार जताते हैं.

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के अध्यक्ष एम. करुणानिधि और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तमिलनाडु इकाई के प्रमुख तमिलिसाई सुंदराजन ने भी लोगों को पोंगल की बधाई और शुभकामनाएं दी है.

वहीं तमिलनाडु के पलामेडु ग्रामवासियों ने विश्व प्रसिद्ध जल्लीकट्टु (बैलों की दौड़) के आयोजन को बंद करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरोध में अपने घरों में काले झंडे लगाए और बंद का आह्वान किया है.

इस खेल को बंद करने के विरोध में पालामेडु गांव के तकरीबन सभी घरों और बैलों को क्रीड़ास्थल तक लाने वाले संकीर्ण गलियारों (वाडी वासल) में काले झंडे लगाए गए हैं. कम से कम 300 दुकानों और व्यापारिक संगठनों ने अपनी दुकानें बंद कर केन्द्र और राज्य सरकार से इस खेल पर लागू प्रतिबंध हटाने की मांग की है.

आखिर क्या है पोंगल…

पोंगल तमिल हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है. तमिल समुदाय के लोग इस त्योहार को चार दिनों तक मनाते हैं, जिसमें पहले दिन घरों की साफ-सफाई कर पुराने सामानों से भोगी जलाई जाती है और नई उम्मीद और आशा के साथ अगले दिन की शुरुआत करते हैं.

दूसरे दिन लोग अपने-अपने घरों में मीठे पकवान चकरई पोंगल बनाते हैं, जो सूर्य देवता को समर्पित किया जाता है. चावल के आटे से सूर्य की आकृति भी बनाई जाती है. लोग दूध से भरे एक बरतन को ईख, हल्दी और अदरक को धागे में पत्तों के साथ सिलकर बांधते हैं और इसे आग में गर्म करते हैं. दूध के उबल जाने पर पूरा परिवार उसके पास इकट्ठा होता है और ‘पोंगलो पोंगल’ का उच्चारण करते हुए पोंगल पर्व का स्वागत करता है.

तीसरे दिन मत्तु पोंगल मनाया जाता है, जिसमें गाय-बैलों को नहलाकर उनको संवारा जाता है, और उनके प्रति आभार जताया जाता है. महिलाएं पक्षियों को रंगे चावल खिलाकर अपने भाई के कुशल-क्षेम और कल्याण की कामना करती हैं. पर्व का समापन चौथे दिन कन्नुम पोंगल के साथ होता है, जब लोग अपने नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने उनके घर जाते हैं.

क्या है पोंगल का इतिहास…

बताया जाता है कि इस पर्व का इतिहास कम से कम एक हज़ार साल पुराना है. इसे तमिलनाडु के अलावा अन्य देशों जैसे  श्रीलंका,  मलेशिया,  मॉरिशस, अमेरिका,  कनाडा,  सिंगापुर आदि में रहने वाले तमिलों द्वारा उत्साह से मनाया जाता है.

हालांकि पोंगल पर्व का प्राचीनतम ऐतिहासिक उल्लेख 200 वर्ष ईसा पूर्व से 300 वर्ष ईसापूर्व ग्रंथों में प्राप्त होता है. लेकिन द्रविण शस्य उत्सव के रूप में इसका उल्लेख इससे बहुत पूर्व पुराणों में भी है. इतिहास विशेषज्ञों का मानना है कि तमिल साहित्य के स्वर्ण काल “संगम युग” (600 से 200 वर्ष ईसा पूर्व) में वर्णित थाई उन तथा थाई निरदल नामक पर्व पोंगल के ही प्राचीव स्वरूप है. पल्लवों के शासन काल में इस पर्व के विशाल आयोजन का वर्णन मिलता है. आण्डाल की तिरुप्पवाई तथा मणिकवचकर की तिरुवेम्बवाई में इसके विस्तृत और अलंकृत वर्णन मिलते हैं. तिरुवल्लूर के वीर राघव मंदिर में प्राप्त एक शिलालेख में कहा गया है कि चोल राजा किलुतुंगा पोंगल के अवसर पर प्रजा को भूमि और मंदिर दान करता था.

पोंगल नाम कैसे नाम पड़ा?

इस त्योहार का नाम पोंगल इसलिए है क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पोंगल कहलाता है. तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ निकलता है –अच्छी  तरह उबालना और सूर्य देवता को भोग लगाना. पोंगल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह तमिल महीने की पहली तारीख को आरम्भ होता है.

कई वर्षों पूर्व पोंगल पर्व कन्याओं द्वारा बहादुरी दिखाने वाले युवकों से विवाह करने का पर्व भी हुआ करता था, लेकिन आधुनिक युग में पोंगल खेत-खलिहानों के बजाए टीवी, मोबाइल आदि पर सिकुड़ता जा रहा है.

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