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ओखला : बदहाल इलाक़े के करोड़पति उम्मीदवार…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

‘ओखला विधानसभा सीट’ शायद दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिल्ली की सबसे दिलचस्प सीटों में से एक है. यहां से अब तक जिसने भी चुनाव लड़ने का साहस किया है, उन्हें यहां के लोगों के जज़्बातों से खेलना बखूबी आता है. मुद्दों के नाम पर सिर्फ जज़्बात को उभारने वाले मुद्दे ही होते हैं. यह अलग बात है कि चुनाव जीतने के बाद विधायक सारे जज़्बातों को भूल जाते हैं.

मगर जज़्बातों के इस राजनीत का एक बेहद दिलचस्प पहलू यह है कि यहां से जीतने वाले के साथ-साथ चुनाव लड़ने वालों की आमदनी व मिल्कियत दिन-दुनी, रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ती रही. यह अलग बात है कि ओखला आज भी अपनी बदहाली की दास्तान बयां कर रहा है (पिछले एक-दो सालों में कुछ सड़कें ज़रूर बेहतर हुई हैं), मगर यहां के रहनुमा चुनाव दर चुनाव अपनी माली हैसियत को मालामाल करते जा रहे हैं. यानी समझौता जज़्बातों से हुआ है, मगर मिल्कियत बढ़ाने से कोई समझौता नहीं.

हम आपको बताते चलें कि ओखला विधानसभा के चुनावी मैदान में इस बार 9 उम्मीदवार अपने क़िस्मत की आज़माईश कर रहे हैं. वो नौ लोगों के नाम इस प्रकार हैं- (1) अमानतुल्लाह खान (आम आदमी पार्टी), (2) अशरफ कमाल (बहुजन समाज पार्टी), (3) आसिफ मुहम्मद खान (कांग्रेस), (4) ब्रहम सिंह (भारतीय जनता पार्टी), (5) अंजारूल हक़ (इंडियन नेशनल लीग), (6) मो. निज़ामुद्दीन (समरस समाज पार्टी), (7) मो. असलम (स्वतंत्र), (8) बुरहानुद्दीन (स्वतंत्र), (9) हुमा कौसर  (स्वतंत्र)

आईए सबसे पहले बात करते हैं यहां के कांग्रेस उम्मीदवार आसिफ मुहम्मद खान की कि कैसे यह जनाब दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं, और इनकी माली हैसियत बढ़ती जा रही है. दसवीं पास आसिफ की माली हैसियत 2008 में 78,15000 (78 लाख+) की थी, जो अगले साल 2009 उपचुनाव में बढ़कर 93,03,192 (93 लाख+) हो गई. 2013 चुनाव में 13,54,97,276 (13 करोड़+)  के मालिक थे, लेकिन अब 2015 चुनाव में 15,03,25,851 (15 करोड़+) के मालिक हैं.

वहीं आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान (12वीं पास) 2008 में जब लोजपा से चुनाव लड़े थे तो उनकी माली हैसियत सिर्फ 5,57,000 (5 लाख+) की थी, जो अगले साल चुनाव में बढ़कर 2013 में  14,12,000 (14 लाख+) हो गई. लेकिन अब 2015 में जब वो आदमी आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं, 2,00,73,316 यानी 2 करोड़ से अधिक के मालिक हैं.

भाजपा के ब्रहम सिंह (10वीं पास) की भी कहानी थोड़ी अलग है. वो शुरू से ही करोड़पति थे. 2008 में इनकी माली हैसियत 10,04,65,303 (10 करोड़+) की थी, जो 2013 में बढ़कर 15,78,28,812 (15 करोड़+) हो गई. अब 2015 में यह जनाब 16,00,41,733 यानी 16 करोड़ के मालिक हैं.

पहली बार बसपा के टिकट से किस्मत आजमाने वाले अशरफ कमाल (पोस्ट ग्रेजुएट) भी लखपति हैं. वो इस समय 18,56,865 यानी 18.5 लाख के मालिक हैं.

आईएनएल के उम्मीदवार अंजारूल हक़ (दसवीं पास) इससे पहले 2012 के काउंसलर चुनाव में भी अपनी किस्मत आज़मा चुके हैं. 2012 में उनकी मिल्कियत 8,89,714 8 लाख+) थी, पर इस बार वो 11,40,145 यानी 11.4 लाख के मालिक हैं.

मो. निज़ामुद्दीन (पोस्ट ग्रेजुएट) समरस समाज पार्टी से पहली बार अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं. और यह जनाब सिर्फ 1,35,000 यानी 1.35 लाख के मालिक हैं.

पहली बार किस्मत आज़माने वालों में 7वीं पास मो. असलम भी हैं. इनकी मिल्कियत इस समय 25,68,000 यानी 25.68 लाख है. तो वहीं बुरहानुद्दीन (पोस्ट ग्रेजुएट) 62,10,000 यानी 62 लाख के मालिक हैं. हुमा कौसर (ग्रेजुएट) भी इस समय 46,78,430 यानी 46.78 लाख की मालिक हैं.

जज़्बातों के खेल और माली हालात में हुए चमत्कार के बीच यह सवाल ओखला के खुली फिज़ाओं में आज भी तैर रही है कि आखिर कब इस इलाके की बदहाली दूर होगी? क्या यह इलाका अगले पांच सालों में रहने लायक बचा भी रहेगा? आखिर क्यों मुसलमानों के नाम पर सियासत करने वाले ओखला के बुनियादी दिक्कतों की कभी बात नहीं करते?

ऐसे अनगिनत सवालों के जवाब न जाने ओखला की अवाम कब से मांग रही है, मगर चुनाव की मंडी में सियासत का इतना शोर-गुल है कि इन सवालों का कोई खैर-ख्वाह नहीं…

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