BeyondHeadlines News Desk
दुनिया भर के अनेक वैज्ञानिक कई विधियों से धरती के अंदर चल रही हलचलों की टोह लेने की कोशिश कर रहे हैं. सीस्मोलॉजिस्ट धरती की भीतरी चट्टानी प्लेटों की चाल, अंदरूनी फॉल्ट लाइनों और ज्वालामुखियों से निकल रही गैसों के दबाव पर नज़र रखकर भूकंप की चाल का अंदाजा लेने की कोशिश करते हैं.
जापान और कैलिफोनिर्या में ज़मीन के अंदर चट्टानों में ऐसे सेंसर लगाए गए हैं, जो बड़ा भूकंप आने से ठीक 30 सेकेंड पहले इसकी चेतावनी जारी कर देते हैं. ऐसे आंकड़ों का विश्लेषण कर भूकंप की भविष्यवाणी करने के मक़सद से 2005 में अमेरिका के जूलॉजिकल सर्वे विभाग ने एक वेबसाइट भी बनाई. इसमें स्थान विशेष के धरातल में हो रहे बदलावों पर नज़र रखकर हर घंटे भूकंप की आशंका वाले क्षेत्रों का अनुमान लगाकर वे स्थान नक्शे में चिह्नित किए जाते हैं. इस विभाग ने इन जानकारियों और गणनाओं के लिए एक बड़ा नेटवर्क बना रखा है.
बीबीसी के एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल के अंत तक अमेरिका एक सैटेलाइट भी छोड़ने वाला है जिसका मकसद भूकंप का पता लगाना ही है. असल में कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि वायुमंडल के सुदूर हिस्सों में होने वाली विद्युतीय प्रक्रियाओं और ज़मीन के नीचे होने वाली हलचलों में कोई रिश्ता है. यह सैटेलाइट इन्हीं हलचलों को पढ़ने में साइंटिस्टों की मदद करेगा.
वैसे दुनिया में भूकंप का पहले से अंदाजा लगाने के कुछ अपारंपरिक तौर-तरीके भी प्रचलित हैं. जैसे, माना जाता है कि कई जीव-जंतु अपनी छठी इंद्रीय से जान जाते हैं कि भूकंप आने वाला है. ब्रिटेन के जर्नल ऑफ जूलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 2009 को इटली के ला-अकिला में आए भूकंप से तीन दिन पहले टोड अपने प्रजनन स्थल छोड़कर दूर चले गए थे.
कुछ ज्योतिषी भी अपनी गणनाओं से सटीक भविष्यवाणी का दावा करते रहे हैं. उन्नीसवीं सदी में हुए इटली के राफेले बेनदांदी को इस मामले में काफी प्रतिष्ठा हासिल है. उन्होंने नवंबर, 1923 को घोषणा की थी कि दो जनवरी,1924 को इटली के प्रांत ले-माचेर् में भूकंप आ सकता है. घोषित तारीख के ठीक दो दिन बाद वहां ताक़तवर भूकंप आया था. न्यू जीलैंड में एक जादूगर केन रिंग को भी ऐसी ख्याति हासिल रही है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती के भीतर चल रही भूगर्भीय प्रक्रियाओं की वजह से हर साल दस करोड़ छोटे-मोटे भूकंप दुनिया में आते हैं. हर सेकेंड लगभग तीन भूकंप ग्लोब के किसी न किसी कोने पर सीस्मोग्रॉफ के ज़रिए अनुभव किए जाते हैं. पर शुक्र है कि इनमें से 98 फीसदी सागर तलों में आते हैं. और जो दो प्रतिशत भूकंप सतह पर महसूस होते हैं, उनमें से भी करीब सौ भूकंप ही हर साल रिक्टर पैमाने पर दर्ज किए जाते हैं. इन्हीं कुछ दर्जन भूकंपों में बड़ा भारी विनाश छिपा रहता है.
जापान और इंडोनेशिया जैसे भूकंप की सर्वाधिक आशंका वाले क्षेत्रों में भूकंप की भविष्यवाणी करना थोड़ा आसान है, लेकिन बाकी स्थानों पर ऐसा कोई दावा करने का मतलब अंधेरे में तीर चलाने जैसा है.