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तो यह कानून व्यवस्था का फेल होना ही माना जाए?

BeyondHeadlines News Desk

फ़रीदाबाद ज़िला के बल्लभगढ़ के नज़दीक अटाली गांव में निर्माणाधीन मस्जिद के साथ ही मुस्लिम समुदाय के चुन-चुन कर अनेक घर व दुकाने जलाने, करीब 50 व्यक्तियों को घायल करने के बाद से करीब 150 लोग स्थानीय थाने में पिछले पांच दिनों से शरण लेने को बाध्य हैं. वो अभी भी अपने घरों को नहीं लौट पाए हैं. इस मामले में प्रशासन ने शांति वार्ताओं का दौर शुरू किया व आवाज़े उठी कि बाहर से लोगों के हस्तक्षेप के चलते हालत ख़राब हो सकते हैं.

अब पांच दिन बीत जाने के बाद भी घटना की साजिश रचाने वालों की क्या कहें, घटना को अंजाम देने वालों में से किसी को गिरफ्तार तक नहीं किया गया है. ना ही मुस्लिम समुदाय के लोगों को सरकार सुरक्षा का भरोसा दिला सकी है कि वो लोग अपने घरों को लौट सकें. न ही ये विश्वास दिलवाया गया है कि   मुस्लिम समुदाय कानून के अनुसार मस्जिद निर्माण का कार्य कर सकेगा, किसी को भी निर्माण कार्य को रोकने के लिए गैर कानूनी तरीके अपनाने कि छूट नहीं दी जाएगी.

ये बातें आज स्वराज अभियान की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है. स्वराज अभियान की राय है कि बिना न्याय के स्थाई व ठोस शांति स्थापित नहीं की जा सकती, हाँ शांति का गुब्बारा ज़रूर उड़ाया जा सकता है.

स्वराज अभियान ने ये मांग किया है कि सम्प्रदायिक व अपराधिक घटना को अंजाम देने वालों की पहचान कर तुरंत गिरफ्तार किया जाये. मुस्लिम समुदाय के घर से बाहर ठहरे लोगों की घर वापसी सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा का उपयुक्त माहौल बनाया जाये. मस्जिद निर्माण के मामले में क़ानून के अनुसार आगे की गतिविधियाँ सुनिश्चित की जाएं.

स्वराज अभियान ने अपने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम ये तथ्य सामने लाया है कि मस्जिद जिस जगह बन रही थी, उस विवादित ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर एक मुक़दमा अदालत में चल रहा था, जिसके तथ्य अखबारों में छपे हैं, जिसके अनुसार मस्जिद निर्माण की जगह को लेकर दोनों समुदायों के अपने-अपने दावे थे. एक समुदाय का कहना था कि जहां मस्जिद बनाई जा रही है, वह जगह पंचायत की है, जबकि दुसरे समुदाय का कहना है कि यह ज़मीन “गैर मुमकिन कब्रिस्तान” है, इसलिए वक्फ बोर्ड की है. जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग टीन शेड के नीचे सालों से अपनी धार्मिक गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं.

इस मामले में दो लोगों ने करीब पांच साल पहले अदालत के सामने मुक़दमा दायर कर यह घोषित करने की मांग की कि यह विवादित ज़मीन पंचायत की है व इस ज़मीन पर मुस्लिम समुदाय का कब्जा गैर कानूनी है. इस मुक़दमें में मुस्लिम समुदाय ने कहा कि यह ज़मीन वक्फ बोर्ड की है व एक अधिसूचना में यह ज़मीन “गैर मुमकिन कब्रिस्तान” बताई गई है.

अदालत ने 31 मार्च 2015 को दिए फैसले में कहा कि वादी यह साबित करने में पूरी तरह नाकामयाब रहे हैं कि इस विवादित ज़मीन का मालिकाना हक़ पंचायत को मिल गया है. साथ ही फैसला दिया कि अपरिहार्य निष्कर्ष यह है कि विवादित ज़मीन पर हमेशा से ही मुस्लिम समुदाय का कब्जा रहा है. अदालत ने स्पष्ट किया कि अदालत यह निर्णय नहीं दे सकती कि विवादित ज़मीन वक्फ बोर्ड की है.

अदालत का फैसला आने के बाद अटाली गांव की पंचायत ने बल्लभगढ़ के उप-मंडल अधिकारी के सामने दरखास्त दायर कर उक्त ज़मीन पर मस्जिद निर्माण को रोकने के लिए स्टे ऑर्डर ले लिया, यानी इस आदेश के बाद मुस्लिम समुदाय विवादित ज़मीन पर मस्जिद निर्माण नहीं कर सकता था. मगर मई के शुरूआती दिनों में चंडीगढ़ से ज़िला रेवन्यू ऑफिस की टीम अटाली गांव में मौके पर पहुंची व पूरी जांच के बाद उस टीम ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी. जिसके बाद उप-मंडल अधिकारी ने विवादित ज़मीन पर मस्जिद के निर्माण की इजाज़त दे दी.

गांव में उसी जगह पर करीब सप्ताह पहले ही मस्जिद निर्माण का काम शुरू हुआ था. गांव के पूर्व सरपंच ने अदालत में चल रहे मुक़दमें में गवाही दी थी, जिसमें कहा था कि इस विवादित जगह पर टीन का एक शेड है, जहाँ मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी प्रार्थना करते हैं. सरपंच ने गवाही में यह भी कहा कि उसी जगह पर सिर्फ मुस्लिम समुदाय के इस्तेमाल के लिए एक सामुदायिक भवन भी बनवाया गया था.

लेकिन 26 मई 2015 के दिन सैंकड़ों की संख्या में आई हथियार बंद भीड़ ने चुन चुन कर निर्माणाधीन मस्जिद सहित मुस्लिमों के घर व दुकानें जला दी व अनेक लोगों को घायल कर दिया गया.

तथ्य बताते हैं कि एक तरफ मुस्लिम समुदाय के लिए पंचायत ने सामुदायिक भवन का निर्माण करवाया वहीं कुछ असमाजिक व साम्प्रदायिक ताक़तों ने इस तरह की वीभत्स घटना को अंजाम दिया. इसलिए पूरे जाट/हिन्दू समुदाय को कटघरे में खड़ा करने की बजाय जिन्होनें इस घोर साम्प्रदायिक व अपराधिक घटना को अंजाम देकर अल्पसंख्यक समुदाय में डर पैदा करने के साथ ही दोनों समुदायों में नफ़रत पैदा करने की कोशिश की है, उन्हें पहचान कर उन ताक़तों को नकेल डालने की ज़रूरत है, जो परदे के पीछे से इस तरह के हिंसक व नफ़रत भरे माहौल को बनाने की साजिश करती हैं.

स्वराज अभियान ने हरियाणा सरकार से मांग किया है कि वह वोट के गणित को छोड़कर एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के संवैधानिक विचार को तरजीह देते हुए, धर्म व जाति के कटघरों से बाहर आकर कुछ ठोस क़दम उठाये ताकि राज्य को साम्प्रदायिकता की आग से बचाया जा सके. विश्वास करना चाहिये कि सरकार शांति के नाम पर पीड़ितों को घर वापिस पहुंचाने के लिए अभियुक्तों को कोई छूट नहीं देगी. यदि ऐसी छूट दी गई तो यह कानून व्यवस्था का फेल होना ही माना जाएगा.

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