एक महीने के अंतराल में रायगढ़ के पत्रकार साथी नितिन सिन्हा को फर्जी प्रकरण में फंसाया गया… भानुप्रतापपुर के पत्रकार साथी अजय साहु पर असामजिक तत्वों द्वारा हमला किया गया… दरभा के प्रेस फोटोग्राफर को पुलिसिया आत्याचार का सामना करना पड़ रहा है… जांजगीर के युवा पत्रकार साथी अंकुर तिवारी व एक अन्य साथी के साथ पुलिस द्वारा मारपीट किया गया…
इतना ही नहीं, कई पत्रकार साथी बदसलूकी के शिकार भी हुए. कोई रेलवे में अनियमितता का समाचार बनाते, तो जिला कलेक्टर से बाईट लेते समय…
पखांजूर के के तीन पत्रकार साथियों के ऊपर भाजपा नेताओं ने फर्जी रिपोर्ट भी लिखाई. अभी ख़बर आ रही है कि जगदलपुर नई दुनिया के पत्रकार साथी के साथ स्थानीय ठेकेदारों ने मार पीट की है.
मैं पुरे देश के बारे में नहीं जानता… लेकिन जब बात छत्तीसगढ़ की कीजाए तो मेरा ये मानना है कि यहां के पत्रकार अब सुरक्षित नहीं हैं. ख़ासकर बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित सुदूर अंचलो में…
काम करने वाले पत्रकार साथी कभी सत्ता में बैठे भाजपा के नेता तो कभी उन्हीं के पालतू ठेकेदार, तो कभी गुंडे तो कभी उन्हीं के पुलिसिया नुमाइंदे तो कभी नक्सली तो कभी सरकार… पत्रकारों को हर तरह से प्रताड़ित, दबाव में रखना चाहती है.
उन्हें बता दूं कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और जो लोग मीडिया की आज़ादी को अपनी गुलामी में बदलना चाहते हैं, वो लोग सावधान हो जाएं. क्योंकि ऐसे समाज विरोधी लोगों को उनके मनसूबे में कामयाब कभी होने नहीं दिया जायेगा… अगर प्रकाशित ख़बरों से कोई नाराज़गी है, ग़लती है, तो उसके लिए वैधानिक मंच है न कि पत्रकारों के साथ मारपीट…
छत्तीसगढ़ के पत्रकार साथियों पर जिस तरह से लगातार हमले हो रहे हैं. सरकार की उतनी ही नाक कट रही है. बीबीसी के अनुसार देश में कश्मीर और छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में पत्रकारों पर अघोषित सेंसरशिप लागू है. जन प्रतिबद्धता और मानवीय मुद्दों के प्रति संवेदना के साथ ख़बर करने वाले पत्रकार साथियों पर हमले दुर्भाग्यपूर्ण हैं.