BeyondHeadlines Correspondent
पटना: ‘हज के लिए जाना है तो फोटो के लिए सर की टोपी आपको उतारनी पड़ेगी.’ ऐसा पटना पासपोर्ट ऑफिस में हर रोज़, हर समय हाजियों को सुनने को मिल रहा है. शायद यही वजह है कि पासपोर्ट ऑफिस के अधिकारियों के इस रवैये से बिहार के हाजी काफी गुस्से में हैं.
कटिहार के इस्लामिक विद्वान मुनव्वर आलम का कहना है कि जब वो हज के लिए पासपोर्ट बनवाने गए तो उनकी टोपी उतारवाई गयी जबकि वो टोपी हमेशा ही पहनते हैं. वहीं पटना विश्वविद्यालय के इब्राहीम हुसैन भी काफी ग़ुस्से में हैं. उनका कहना है कि वो हमेशा टोपी लगाते हैं, लेकिन जब पासपोर्ट बनवाने गए तो इनकी टोपी जबरन उतरवाई गयी जिससे इन्हें बहुत दुःख हुआ.
ऐसी ही अनगिनत शिकायतें कई लोगों की हैं कि पासपोर्ट ऑफिस के अधिकारी जबरन उनकी टोपियां उतरवा रहे हैं. कई लोगों के मना करने पर वो क़ानून का हवाला देकर चुप करा दे रहे हैं. उनका दलील है की ‘फोटोग्राफी गाइडलाइन’ के तहत ऐसा किया जा रहा है.
जबकि पासपोर्ट ‘फोटोग्राफी गाइडलाइन’ के अनुसार प्रार्थक का कान, पेशानी और सर का उपरी हिस्सा खुला होना चाहिए सिवाए धार्मिक कारणों के. यही नहीं, संविधान ने अनुच्छेद-25 के तहत धार्मिक आज़ादी दी है और उसे अपने धर्म के अनुसार वस्त्र पहनने के लिए भी छूट दे रखी है. पासपोर्ट फोटोग्राफी गाइडलाइन में धार्मिक कारणों का प्रावधान होने के बावजूद भी धड़ल्ले से ऐसा हो रहा है, जिससे मुसलमानों की भावना को ठेस पहुँच रही है और धार्मिक स्वतंत्रता भी भंग हो रही है. (सरकारी गाईडलाइंस की कॉपी आप नीचे देख सकते हैं.)
बिहार में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थान ‘हेल्प’ के राष्ट्रीय सचिव सफ़दर अली का कहना है कि इस पूरे मसले पर राज्य व केंद्र सरकार को इस पर तुरंत संज्ञान लेते हुए मुसलमानों के धार्मिक आजादी को बरक़रार रखने के लिए इन्साफ दिलाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वो इस मसले पर जल्द ही जनहित याचिका दायर भी करेंगे.
वहीं बिहार में सक्रिय लोजपा नेता आदिल हसन आज़ाद का कहना है कि वो इस मसले पर मोदी सरकार से जल्द ही बातचीत करेंगे, ताकि मुसलमानों को हज़रत मुहम्मद सल्ल० की सुन्नत से महरूम न किया जाये. टोपी मुसलमानों के लिए ज़रूरी ही नहीं, बल्कि उसकी धार्मिक पहचान भी है और वो इस पहचान के साथ खिलवाड़ किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे.
लोगों का यह भी कहना है कि सिक्ख समुदाय के लोगों को पगड़ी पहन कर फोटो खिंचाने की आजादी है. इस मसले पर जब हमने क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकार प्रवीण मोहन सहाय से बात की तो उनका स्पष्ट तौर पर कहना था कि उन्हें इस बात की कोई ख़बर नहीं है. हालांकि उन्होंने इस पर चिंता ज़रूर जताई और पूछताछ करने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए अपना पलड़ा झाड़ लिया.
स्पष्ट रहे कि इससे पूर्व भी आधार कार्ड पंजीकरण के लिए मुस्लिम औरतों के सिर से ओढ़नी उतारकर और मर्दों के सर से टोपी उतारकर फोटो खींचे जाने पर विवाद खड़ा हुआ था. जिस पर देश के कई मुस्लिम संस्थाओं ने आपत्ति जताई थी.