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बाक़रखानी : आगा बाक़र की ख़ास देन…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

महीना यदि रमज़ान का हो और खाने-पीने की बात न चले तो फिर सब कुछ फीका लगेगा. वैसे ये अलग बात है कि रोज़ेदारों के लिए सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ खाने-पीने की हसरत करना भी गुनाह है, लेकिन इसके बाद पूरी छूट होती है कि आप जमकर हर तरह के ज़ायकों का मज़ा लें.

दरअसल रमज़ान ही वह महीना है, जिसमें तरह-तरह के पकवान बनते हैं और बाज़ारों में भी तरह-तरह के खाने की चीज़ें मिलती हैं, जो आमतौर पर दूसरे महीनों में देखने को नसीब नहीं होते. बाज़ार में मिलने वाले इन्हें चीज़ों में से खास चीज़ है ‘बाक़रखानी’ जिसका दीदार सिर्फ रमज़ान के महीने मे ही होता है.

इस बाक़रखानी का अपना एक अलग ही इतिहास है. लोग बताते हैं कि यह नवाब घरानों की देन है. सबसे पहले साइलहर (जिसे अब लखाई थाना के नाम से जानते हैं और अब यह बांगलादेश में है) के ‘‘आगा बाक़र’’ नामक शख्स ने इसे बनाया तब से लेकर इसका नाम ‘बाक़रखानी’ ही पड़ गया.

बांग्लादेश के ढाका और पाकिस्तान में यह पूरे वर्ष मिलता है, लेकिन भारत में रमज़ान के महीने में खासतौर पर लोग इसे सेहरी व इफ्तार में खाते हैं.

दरअसल, बाक़रखानी देखने में बिस्किट की तरह ही होता है, लेकिन इसका स्वाद बिस्किट से काफी अलग है. ज़ाकिर नगर स्थित ‘यूनिक बेकर्स’ के मुशीर भाई बताते है कि इसे बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. दूसरी तरफ एक ही दिन के बाद इसका टेस्ट बदल जाता है. इसी वजह से दूसरे महीनों में बाक़रखानी बनाने की हिम्मत कोई भी नहीं करता. यही नहीं, इसे खास तापमान पर बेकिंग करना होता है, जो हर बेकर्स के लिए संभव नहीं है.

बाज़ार में इसकी कीमत 30 से लेकर 300 रूपये प्रति पीस है. और पुरानी दिल्ली के इलाके में धड़ल्ले से बिकते हैं.

बाक़रखानी के अलावा लाल रोटी, शीरमाल रोटी, फिस ब्रेड, लाल ब्रेड, फ्रूट व मिल्क ब्रेड और चिकेन पैटीज़ भी रमज़ान के इसी महीने में मिलते हैं, जिसका जायका हर कोई लेना चाहता है.

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