जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुख़ारी ने दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड को सौंपा मस्जिद की आमदनी का ब्योरा
Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
अब तक शाही इमाम जामा मस्जिद को अपने परिवार की निजी मिल्कियत मानते आए थे, लेकिन अब उन्होंने 2006 से लेकर 2014 तक यानी पूरे 9 साल की कमाई का ब्योरा दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड को सौंप दिया है.
दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के सौंपे दस्तावेज़ों के मुताबिक़ मस्जिद से गुज़रे 9 सालों में 2 करोड़ 36 लाख 61 हज़ार 365 रुपए की आमदनी हुई है.
दस्तावेज़ बताते हैं कि साल 2006 से 2014 के बीच जामा मस्जिद की आमदनी में 3 गुना से ज़्यादा का उछाल आया है.
साल 2006 मे मस्जिद की आमदनी 12 लाख 45 हज़ार 38 रुपये थी, जबकि 31 मार्च 2014 को ख़त्म हुए साल में मस्जिद को 41 लाख 7 हज़ार 663रुपए की आमदनी हुई.
साल 2013-14 के दौरान सिर्फ मीनारों की फीस से 12 लाख 19 हजार 50 रुपए की कमाई हुई. तो वहीं शुक्रवार की नमाज़ में लोगों से बतौर चंदा 9लाख 16 हजार 265 रूपये मिलें.
मस्जिद की पार्किंग से 7 लाख 65 हजार 550 रुपए की कमाई हुई तो वहीं मस्जिद में विदेशियों के कैमरा ले जाने की कमाई से 12 लाख 4 हजार 500 रूपये मस्जिद को मिलें.
दस्तावेज़ बताते हैं कि मस्जिद के पास 20 लाख 74 हज़ार 348 रूपये का कॉरपस फंड है.
ये इमाम साहब की नेकनीयती है
दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड की चेयरमैन राना परवीन सिद्दीकी कहती हैं कि इमाम साहब अपनी नेकनीयती दिखाते हुए 2006 से 14 तक की कमाई का ब्यौरा सौंप दिया है. नियम के मुताबिक कुल का 7 फ़ीसद वक़्फ़ को आना चाहिए और वो रक़म पिछले नौ सालों में सिर्फ 16 लाख 56 हज़ार 295 रुपये बनते हैं.
इमाम साहब ने दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड से कुछ रियायत बरतने को कहा, तो हमने वो रक़म 7 फ़ीसद के बजाए सिर्फ 3 फ़ीसद कर दिया है. ऐसा इसलिए कि वक़्फ़ बोर्ड जामा मस्जिद को कुछ भी कंट्रीब्यूट नहीं करती है.
हम बताते चलें कि इससे पूर्व दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर 2006 में भी जामा मस्जिद ने वक़्फ़ बोर्ड को अपने खर्चों व आमदनी का ब्यौरा सौंपा था.
वक़्फ़ बोर्ड और एएसआई दोनों ने पिछले दिनों हाईकोर्ट में हलफ़नामा दायर कर यह कहा था कि मस्जिद शाही इमाम की निजी मिल्कियत नहीं, बल्कि ये वक़्फ़ की प्रापर्टी है.
शाही इमाम का वेतन
दस्तावेज़ बताते हैं कि मस्जिद की इसी कमाई से वेतन भी लेते हैं. वेतन की 2 लाख 52 हजार रुपया सालाना है. यानी 21 हज़ार रुपया महीना.