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अटाली के मुसलमानो के हाथो में क़ुरान कंप्यूटर की जगह कटोरा थमा दिया गया है!

आल इण्डिया तंज़ीम-ए-इंसाफ़, दिल्ली की ओर से गृहमंत्री राजनाथ सिंह को लिखा गया पत्र

आदरणीय राजनाथ जी,

केंद्रीय गृह मंत्री, भारत सरकार

जनाब,

कल, आल इण्डिया तंज़ीम ए इंसाफ़ जो की वज़ीर-ए-आज़म के 15 सूत्रीय प्रोग्राम के इम्प्लीमेंटेशन और क़ौमी एकता को बनाने में यह संगठन समर्पित है, इसके साथियों के साथ हम बल्लबगढ़ फ़साद के मुतासरीन से मिलकर हालात का जायज़ा लेकर लौटे हैं, जहां 150 परिवारों की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी गई है… वहां रौशनी की एक किरण ये दिखाई दी कि अटाली का सर्वसमाज इस घटना से बहुत आहत है… ऐसी घटना का उनके गांव से कभी कोई ताल्लुक़ नहीं रहा. यह गांव पिछले कई दशकों से मानवीय और साम्प्रदायिक सौहाद्र सहित आदर्श गांव की पदवी खुद में समेटे हुए है.

इसी गांव में बड़े पैमाने पे और सामूहिक तौर पर रक्षा बंधन मेला लगता रहा है जिसके तहत ये पवित्र त्यौहार सभी साथ मिलकर मनाते चले आ रहे हैं, इसी गांव में मुसलमानो ने अपनी (वक़्फ़ बोर्ड की) मस्जिद से सटी ज़मीन पूजास्थल के लिए दशकों पहले खुद ही दी थी- जो कि जाट समुदाय ने हमें बताया, और वक्फ ज़मीन पर बनी मस्जिद की अंदरुनी बॉउंड्री भी बरसों पहले ग्रामसभा के जाट प्रधान (मरहूम फ़तेह सिंह) ने बना के दी है. यह अटाली गांव के आदर्श होने और सांप्रदायिक सौहाद्र की ज़िंदा मिसालें हैं, जो बगैर मज़हबी भेदभाव के यहाँ की आबो हवा भी घुली बसी रही हैं.

हम जो आप को बताना चाहते हैं- हमारे हिन्दोस्तां की संवैधानिक परिकल्पना भी तो यही है एक दूसरे के साथ रचने, बसने, रहने की, फिर अटाली क्यों बर्बाद हुआ? यह हमें, आपको (जो हम दिल्ली में मात्र २० किलीमीटर पर बैठे हैं) पूछना होगा!

टीम की खोजबीन के बाद यह पता चला है कि गांव के पुरअमन माहौल को एक साज़िश के तहत ख़राब करने के लिए मस्जिद की ज़मीन का बहाना बनाया गया है.

राज्य वक्फ बोर्ड ने सारे दस्तावेज़ (जो सन 1800 के हैं और जिसमें 2 कनाल 10 मरले और 650 ग़ज़ भी शामिल है) कोर्ट को पेश किये और कोर्ट ने दस्तावेज़ों की गहन जाँच के बाद स्टे हटाकर मस्जिद बनाने का फ़ैसला दे दिया. उसके बाद दंगाईयो, कुछ बाहरी असामाजिक युवाओं (जिसमें स्थानीय ज़मीन दलाल भी शामिल हैं) ने अटाली गांव के जाट समुदाय के लोगों को ग़लत जानकारी से प्रभावित किया कि पंचायत की ज़मीं पे गैर क़ानूनी मस्जिद है, इसलिए इसे न बनने दिया जाए, स्थानीय निवासी लाखा ने अपने वकील को भी गलत जानकारी देकर अँधेरे में रखा था.

यही नहीं यहाँ तक की मौजूदा SDM के यहाँ झूठा केस लगाकर मस्जिद निर्माण पे दोबारा स्टे लगवा दिया गया, जब मुस्लिम समुदाय वक़्फ़ बोर्ड ने असली दस्तावेज़ पेश किये तब माननीया SDM ने 22 मई 2015 को दोनों पक्षों की रज़ामंदी से केस ख़ारिज किया.

उस वक़्त मस्जिद के खिलाफ़ अपील कर्ता ने SDM सुश्री प्रियंका को लिखित में स्वीकार किया की मस्जिद गैर क़ानूनी नहीं है हम इसके निर्माण में कोई बाधा नहीं डालेंगे. और गांव की पंचायत ने भी इसे मंज़ूर किया. लेकिन गांव में लौटते ही स्थानीय धर्मवीर ने घोषणा कर दी की मस्जिद में लेंटर डालने का (अंतिम चरण में पहुंचा काम) काम पूरा नहीं करने देंगे. जबकि गांव के अधिकतर जाट समुदाय ने शुरू में इसमें हिस्सा नहीं लिया और बुज़ुर्गो ने इस रोक का विरोध भी किया. कोर्ट का फैसला आने के बाद गांव के बड़े बुज़ुर्गों ने बाक़ायदा पंचायत बिठा के ये फैसला किया कि अब अदालत से साफ़ हो गया है कि मस्जिद और उसके आसपास की सारी (जिसमें वह पूजा स्थल जी ज़मीन भी शामिल है) ज़मीन वक़्फ़ बोर्ड की है. अत: मुस्लिम समुदाय मस्जिद का बचा काम पूरा करे…

मस्जिद के बकाए निर्माण के विरोध में एक पार्टी से समझौता होने के बाद दूसरी पार्टी खड़ी हो जाती है, तीसरी के बाद चौथी खड़ी हो जाती और स्थानीय पुलिस प्रशासन इस मामले में माननीय अदालत के खिलाफ़ जाट समुदाय के असामाजिक तत्वों के पक्ष में पूरी तरह मूकदर्शक की भूमिका निभाते हुए मुस्लिम समुदाय को धमकाता रहा है… जबकि मस्जिद निर्माण के लिए पुलिस के उच्चाधिकारियों की तरफ़ से पूरी सुरक्षा प्रदान गयी थी, बावजूद इसके बग़ैर आला अधिकारीयों को सूचित किए स्थानीय SHO “बाबूलाल डिकेट” ने छुट्टी से वापस आते ही बिना कारण बताये अधूरे काम के बीच में से ही सुरक्षा हटा ली.

सुरक्षा के हटने के फ़ौरन बाद ही भीड़ का हमला, पथराओ, लूटपाट और घरों में आगज़नी का काम किया गया. इसके लिए भीड़ ने बाक़ायदा अपने साथ लए गैस सिलेंडरों का इस्तेमाल किया. यहाँ तक कि भीड़ ने सार्वजानिक रूप से मस्जिद में तोड़फोड़ करते ये कहा की “SHO ने 2 घंटे का वक़्त दिया है इस वक़्त में ही मस्जिद और मुल्लों का नामोनिशान मिटा दो “

टीवी चैनलों की ख़बरों से आपको पता चल गया होगा कि इस साम्प्रदायिक भीड़ के बर्बर हमले के शिकार सभी 150 पीड़ित समृद्ध परिवारों से हैं… जो भरी गर्मी में स्थानीय पुलिस थाने के अहाते में लगभग 10 दिनों तक शरण लिए हुए थे. गांव के सम्मानित बुज़ुर्ग नेता उन पीड़ितों को थाने से गांव ले जाने आये, लेकिन कोई भी उनकी हिफाज़त की गारंटी लेने को तैयार न था, उसके बावजूद पीड़ित परिवारों ने गाँव का रुख किया और फिर उनपर सशस्त्र हमला किया गया और इस बार हमलावरों ने बूढी जवान औरतों, बूढ़ों और बच्चों को निशाना बनाया, क्योंकि गांव के जवान मर्द अपने काम के सिलसिले में गांव से बाहर थे. अत: गाव वाले घर, ज़मीन, जानवर, सब छोड़ सड़क पर आ गये है, पुलिस ने अपने सरक्षण में उन्हें गाँव से बाहर निकाला है, वे बल्लबगढ़ में शरण लिए हुए हैं.

यहाँ एक सवाल लाज़मी हो जाता है कि बल्लभगढ़ प्रशासन इतना असहाय कैसे हो गया कि अपराधी शेर हो गए हैं.  जब पुलिस दबंगो की दहशत में है, तो आम जनता के हालात का अंदाज़ा लगाना कोई मुश्किल बात नहीं… (वो भी आपकी गृहमंत्री होते हुए ?)

महिला पीड़ितों ने हमारी टीम को बताया कि वह अपना गांव नहीं छोड़ेंगे और यह भी कि उनके गांव के बुज़ुर्ग लोग उनके अपने लोग हैं और उन्हें भड़काया गया है और वे आखिरी जुमा और ईद अपने घर में ही मनाना चाहते हैं…

पीड़ितों ने हमें ये भी कहा कि वे अपना गांव नहीं छोड़ेंगे भले ही उनकी जान चली जाये. अब ये पुलिस प्रशाशन की ज़िम्मेदारी है कि हमारे जान माल की सुरक्षा के लिए अपराधियों को बिना किसी दबाव के फ़ौरन गिरफ्तार करे.

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा निर्धारित मुआवज़ा 1 करोड़ 60 लाख में से 1 करोड़ 10 लाख स्थानीय प्रशासन के पास आ चुके हैं. उसमें से जिला प्रशासन ने सिर्फ़ 30 % (27 लाख) ही पीड़ित परिवारों को दिया है -जिसके चलते पीड़ितों के सामने भुखमरी के हालात पैदा हो गए हैं. चूँकि वे अपने गांव, घरों से बाहर सड़कों में शरण लेने को मजबूर है. अत: बाक़ी मुआवज़ा भी उन्हें जल्द से जल्द दिया जाना चाहिए ताकि वे अपने त्यौहार की तैयारी कर सकें, बच्चों के लिए खरीदारी कर सकें.

जनाब पीड़ितों द्वारा दर्ज करवाई गयी एफआईआर पर अभी तक हुयी गिरफ्तारियों में दंगो के मुख्य आरोपी (लाखा, प्रह्लाद , धर्मवीर व अन्य) गांव में खुले घूम रहे हैं, चूँकि उनकी गिरफ़्तारी नहीं की गयी है. अत: वे मुस्लिम समुदाय के हर निवासी को वापस गाँव आने पर जान से मार डालने की धमकी दे रहे हैं. अटाली का मुस्लिम समुदाय बड़ी दहशत में है 8 बरस के समीर की आँखों में वो दहशत आज भी साफ़ देखी जा सकती है.

भारत के प्रधानमंत्री जनाब नरेंद्र मोदी ने जब कहा था कि वह “मुसलमानो के एक हाथ में क़ुरान और कंप्यूटर” देना चाहते हैं, तो मुस्लिम समुदाय में बड़ा विश्वास पैदा हुआ देखा गया था. लेकिन अटाली गांव की ही बात करें तो मार्च के बाद यहाँ के अल्पसंख्यक नागरिकों के साथ किये जा रहे अमानवीय और असंवैधानिक अत्याचार को देखते हुए साफ़ दिखने लगा है कि माननीय प्रधानमंत्री का दुनिया के दुसरे मुल्कों में ये कहना कि “भारत में अल्पसंख्यकों के साथ किसी भी तरह का धार्मिक और साम्प्रदायिक भेदभाव नहीं किया जाता” झूठा साबित हो रहा है.

अगर आपको, आपकी पार्टी/सरकार इजाज़त दे तो बाराए मेहरबानी अटाली की ज़मीनी हक़ीक़त जाकर खुद देखिये, पीड़ितों की सुनिए… तब आपको पता चलेगा कि वे हँसते, खेलते, खुशहाल मुस्लिम किसान परिवारों के हाथों में आपके स्थानीय पुलिस प्रशासन ने भीख के कटोरे थमा दिए हैं.

हमारी जम्हूरियत में संविधान ने सभी को बराबरी के अधिकार दिए हैं. इनके साथ ही अल्पसंख्यकों को उनके धर्म को मानने, धार्मिक स्थल बनाने के लिए सरकार को ज़मीं देने का भी प्रावधान रखा है- अटाली के मुस्लिम सरकार से ज़मीं की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने पुरखों की ज़मीं जिस पर उनका ही (वक़्फ़ का) हक़ है, उसमें से सिर्फ़ 230 ग़ज़ अपनी ही ज़मीं पे अपनी इबादतगाह बना रहे हैं, जिसे स्थानीय ज़मींन माफिया और स्थानीय असामाजिक तत्वों के गैर क़ानूनी दखल से संविधान प्रदत्त उनके नागरिक अधिकारों, अल्पसंख्यक अधिकारों का सरेआम उल्लंघन करते हुए उन पर सशस्त्र जानलेवा हमले किये जा रहे हैं –जो जम्हूरी निज़ाम के लिए आपराधिक कृत्य माना जाता है….

जनाब पूरे माहौल को समझते हुए लगा कि अभी भी हम अटाली और हरयाणा के सौहार्द को बचा सकते हैं –जिसे  बचाया जाना ही चाहिए. दिल्ली और देश में सभी पार्टियो के लोगो के साथ, आप सब भी जब वीआईपी इफ्तार पार्टियो में टोपी लगाये देखे जाते हैं तो लोगों में अच्छा पैग़ाम जा रहा होता है, लेकिन इस रमजान के महीने में अटाली के लोग भूखे नंगे बेघर कर दिए गए हैं, जो हमारे देश की गंगा जमनी संस्कृति के मुंह पर बदनुमा धब्बा है, और आपके गृहमंत्री रहते हुए संवैधानिक आचरण पर सवालिया निशान लगाता है.

अत: आपसे विनम्र निवेदन है कि अटाली पर बार बार किये जा रहे इस बर्बर हमले, विस्थापन और साम्प्रदायिक सौहाद्र की हत्या के इस सवाल को हलके में न लिया जाये.

हमारी आपसे गुज़ारिश है कि आप और आपके मुख्यमंत्री एक बार अटाली बल्लभगढ़ का दौरा ज़रूर करें, बतौर केंद्रीय गृहमंत्री आपको लेकर यहाँ के पीड़ित परिवारो में एक विश्वास हमने देखा है अगर आपका दौरा अटाली होता है सर्वसमाज के शांतिप्रिय लोग एक साथ मिलते हैं तो अटाली के सौहाद्र और भारत की एकता को कोई तोड़ नहीं सकता, हम चाहते हैं कि जिस तरह मुसलमानो ने अटाली की गांव के मंदिर बनने में मदद की आप की क़यादत में मस्जिद बन जाये और ताकि इलाके में अमन चैन क़ायम हो. असामाजिक तत्वों के हौसले पस्त हों और वे देश और संविधान की इज़्ज़त करना सीख पाएं.

सादर

अमीक़ जामेई (जनरल सेक्रेटरी-तंज़ीम ए इंसाफ़ दिल्ली)

ज़ुलैख़ा जबीं (पत्रकार)

हसीन रहमानी (पत्रकार)

मनीषा भल्ला (पत्रकार)

फ़िरोज़ मुज़फ्फर (सामाजिक कार्यकर्ता)

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