India

आरटीआई को ख़त्म करने की तैयारी!

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

देश में सूचना के अधिकार क़ानून पर भारी बैकलॉक की ख़तरनाक तलवार लटक रही है. सूचना के अधिकार से जुड़ी देश की सबसे सर्वोच्च संस्थान यानी केन्द्रीय सूचना आयोग के पास आज की तारीख़ तक 40,322 अपील व शिकायतों के मामले पेंडिंग हैं और जिस रफ़्तार से इस आयोग में केसों का निपटारा हो रहा है, उससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इन तमाम मामलों के निपटारे में तीन-चार साल से अधिक का समय लग सकता है.

अगर मामला राष्ट्रपति कार्यालय, उप-राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय या रक्षा मंत्रालय जैसे अहम दफ़्तरों से संबंधित है तो यह इंतज़ार और भी लंबा हो सकता है.

स्पष्ट रहे कि पिछले 8 जून, 2015 को मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर आयोग के वरिष्ठ सूचना आयोग विजय शर्मा को नियुक्त कर दिया गया है. यह पद 22 अगस्त, 2014 से रिक्त थी.

दिलचस्प बात यह है कि विजय शर्मा सिर्फ 6 महीने ही काम कर सकेंगे, क्योंकि  वे दो दिसंबर को 65 वर्ष के हो रहे हैं, इसलिए उनका कार्यकाल उसी दिन समाप्त हो जाएगा.

केन्द्रीय सूचना आयोग की वेबसाईट पर उपलब्ध जानकारी बता रही है कि शर्मा साहब के पास अभी 12,668 अपीलों व शिकायतों के मामले लंबित हैं. जब से शर्मा ने मुख्य सूचना आयुक्त का पद संभाला है, तब से उनके द्वारा अपीलों के निपटारे की रफ्तार में कमी आई है. सूचना आयुक्त के रूप में वो पहले औसतन हर महीने 230 से अधिक मामलों की निपटारा करते थे, लेकिन जून महीने में उन्होंने सिर्फ 170 मामलों का ही निपटारा किया है. वहीं जुलाई में आज तक वो सिर्फ 13 अपीलों व शिकायतों की ही सुनवाई कर सके हैं.

इतना ही नहीं, केन्द्रीय सूचना आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी बता रही है कि तीन सूचना आयुक्त के पद भी खाली हैं. यानी आयोग के सारे कामों की ज़िम्मेदारी सात सूचना आयुक्तों के कंधों पर टिकी हुई है.

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राईट्स इनीसिएटिव से जुड़े वेंकटेश नायक का कहना है –‘मेरे खुद के अपील आयोग में एक साल से पड़े हुए हैं. एक तरफ़ तो हमारे प्रधानमंत्री देश-दुनिया में घूम-घूम कर पारदर्शिता की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, लेकिन उनकी बातों का पालन ख़ुद उनके अपने दफ़्तर के अधिकारी नहीं कर रहे हैं. ये प्रधानमंत्री के इज़्ज़त पर एक बहुत बड़ा सवाल है.’

पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी BeyondHeadlines से बातचीत में सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए बताते हैं कि पिछले साल 2014 में आयोग ने सिर्फ 16 हज़ार मामलों का निपटारा किया था. अगर उसी रफ़्तार में काम होता रहा तो सिर्फ इन मामलों में दो साल से अधिक का समय लगना तय है. इस तरह से देखा जाए तो सरकार आरटीआई को ख़त्म कर देने के पूरी तैयारी में है. ये आयोग भी कोर्ट की तरह हो जाएगा.

नेशनल कैंपेन फॉर राईट टू इंफोर्मेशन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे कहते हैं कि इससे पहले भी आरटीआई का हाल बहुत ज़्यादा अच्छा नहीं था, पर इस सरकार ने इसे और बुरा कर दिया. हमने इस मसले पर सब करके देख लिया. धरना-प्रदर्शन भी हो गया. अदालत भी चले गए.  अब इस समस्या का समाधान एक दिन में तो संभव है नहीं. सरकार का जो मक़सद था, उसे उसने पूरा कर लिया.

इससे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी केन्द्र सरकार की आलोचना कर चुकी हैं. उन्होंने कहा था –‘सरकार बेरहमी से आरटीआई अधिनियम को कमजोर करने तथा खुद को बचाने की कोशिश कर रही है.’

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