BeyondHeadlines News Desk
नई दिल्ली : आगामी 11 से 17 अगस्त 2015 को होने वाले कोयला नीलामी में जहां एक तरफ बड़ी-बड़ी कंपनियां बोली लगाने की तैयारी में हैं, वहीं दूसरी तरफ़ ग्रीनपीस भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के विश्लेषण में यह तथ्य सामने आया है कि 101 कोयला ब्लॉक में से 39 ऐसे कोल ब्लॉक हैं, जो पर्यवारण के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील क्षेत्र में आते हैं.
ये नीलाम किए जानेवाले कोल ब्लॉक लगभग 10,500 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं, जिसमें कानूनी अड़चनों के अलावा प्रभावित समुदायों के विरोध के साथ-साथ ज़रुरी पर्यावरण मंजूरी मिलने में लंबा वक़्त लग सकता है.
खनन कंपनियों को अगाह करते हुए ग्रीनपीस कार्यकर्ता नंदिकेश सिवालिंगम का कहना है, “सरकार को उच्च गुणवत्ता वाले जंगलों में खनन के लिये इजाज़त नहीं देनी चाहिये. इससे पर्यावरण को भारी नुक़सान का सामना करना पड़ेगा. इसके अलावा यह प्रोजेक्ट डेवलपर्स, निवेशकों और शेयर होल्डरों के लिये भी जोखिम भरा क़दम होगा, क्योंकि इन क्षेत्रों में कानूनी चुनौतियों, संघर्षों और प्रभावित लोगों के विरोध किये जाने की आशंका है. ऐसा हमने सिंगरौली में महान कोल ब्लॉक में देखा है. सरकार को सघन वन क्षेत्रों में शामिल कोयला ब्लॉक को पारदर्शी, सलाह लेकर और अक्षत नीतियों के तहत नीलामी की सूची में डालना चाहिए.”
ये कोयला ब्लॉक आठ विभिन्न राज्यों मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल में स्थित है. इनमें 35 ब्लॉक में बाघ, तेंदूआ और हाथी जैसे जानवर रहते हैं, जबकि 20 ऐसे कोल ब्लॉक हैं जो संरक्षित वन्यजीव कॉरिडोर के दस किलोमीटर के दायरे में हैं.
नंदिकेश बताते हैं, “कोयला घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हमें एक अवसर दिया है कि हम कोयला नीलामी से पहले पारदर्शी और अक्षत वन नीतियों का पालन करें, जिससे कम से कम आदिवासियों, जंगलों और वन्यजीवों को नुक़सान हो. ऐसा करके हम निवेशकों और प्रोजेक्ट डेवलपर्स में भी भरोसा जता सकते हैं. लेकिन जिस हड़बड़ी में सरकार क़दम उठा रही है, इससे लगता है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय अपने दुर्लभ जंगलों को खनन से बचाने में अक्षम है.”
एक आरटीआई से मिले जवाब के अनुसार पिछले छह सालों में जंगलों का अक्षत क्षेत्र काफी कम हुआ है. अभी तक अक्षत क्षेत्र में शामिल 222 कोल ब्लॉक को कोयला मंत्रालय और कोयला खनन उद्योग के दबाव में घटाकर 35 कर दिया गया है. इसका मतलब है कि अक्षत क्षेत्र घटकर सिर्फ 7.86 प्रतिशत रह गया है.
ग्रीनपीस और कई दूसरे संगठनों ने वर्तमान अक्षत नीतियों में पारदर्शिता और वैज्ञानिकता की कमी बताते हुए आलोचना किया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि अक्षत नीतियों को बनाने के क्रम में स्थानीय समुदाय, सिविल सोसाइटी और वन्यजीव वैज्ञानिकों को नजरअंदाज़ किया गया है.
ग्रीनपीस इंडिया मांग करता है कि सरकार स्वतंत्र रूप से जंगलों को अक्षत क्षेत्र के रूप में चिन्हित करे और उसे संरक्षित करने के लिये आवश्यक क़दम उठाये. कोयला ब्लॉक की नीलामी से पहले सारे लंबित कानूनी मसलों, पर्यावरण और लोगों के अधिकार से जुड़े शिकायतों का निदान करे. साथ ही, ग्रीनपीस संभावित निवेशकों को इन 39 चिन्हित कोल ब्लॉक से दूर रहने को कहा है.