Mango Man

कामरेड मस्तराम वालिया को लाल सलाम…

By Himanshu Kumar

कल सुबह सुखदेव विश्वप्रेमी का फोन आया . सुखदेव जी हिमाचल के पालमपुर में दलित अधिकारों पर काम करते हैं और #CPI से जुड़कर छात्र राजनीति में सक्रिय हैं.

बोले कामरेड मस्तराम वालिया की डेथ हो गयी है. 11 बजे द्रमण श्मशान पर पहुंच सकते हैं क्या?

मैं कभी किसी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं रहा हूं. अलबता कम्युनिस्टों के प्रगतिशील विचारों के कारण मैं हमेशा कम्युनिस्टों को मित्र मानता रहा हूँ.

हिमाचल में मैं नया हूँ.  इसलिये मृतक कामरेड के बारे में जानता नहीं था. 11 बजे मैं मृतक के घर पहुंच गया. वहां सुखदेव जी मिल गये. दो अन्य कामरेड विपिन और नानक चन्द जी से सुखदेव जी ने परिचय करवाया. नानक चन्द जी फायर ब्रिगेड में सिपाही थे, लेकिन साथियों के अधिकारों के लिये आवाज़ उठाने के कारण उन्हें इतना परेशान किया गया कि नौकरी छोड़नी पड़ी. दलित परिवार में जन्म लिया, पिता मजदूर थे.

नानक चन्द जी बता रहे थे कि हमें खाना भी मुश्किल से मिलता था. उन्होंने कहा कि अम्बेडकर और कम्युनिस्ट ना होते तो हमारी हालत कभी ना बदलती.

सुखदेव जी ने मृतक कामरेड मस्तराम वालिया जी के बारे में बताया कि उन्होंने सन् 1952 में किसानों की सहकारी संस्था की शुरुआत की. सन 80 में इस सहकारी संस्था को हिमाचल का प्रथम पुरस्कार मिला. बाद मे भाजपा नेताओं ने इस संस्था में अपने लोग घुसा दिये और इसका बंटाधार कर दिया.

पिछले कुछ वर्षों से कामरेड मस्तराम वालिया को पैरोलिसिस हो गया था. आज उनका देहांत हो गया था.

कामरेड विपिन ने कहा लाश पार्टी के लाल झन्डे में लिपट कर जानी चाहिये. दूसरे कामरेड ने कहा पार्टी ऑफिस फोन कीजिये वो एक झन्डा ले आयें.  मैने सुझाव दिया कि पार्टी आफिस तो दूर है. यहीं किसी दुकान से लाल कपड़ा खरीद कर हंसिया हथौड़ा बनवा लिया जाय.

सुखदेव जी ने जेब से एक पैकेट निकाला और बोले लाल कपड़ा तो मैंने पहले ही खरीद लिया है, लेकिन इस पर हंसिया हथौड़ा नहीं बना है.

मैंने कहा सामने चौक के पास एक पेन्टर की दुकान है, वो गाड़ियों की नंबर प्लेट बनाता है, उसके पास चलते हैं.

पेन्टर ने कहा कि ब्रश से बनाऊंगा तो बनाने और सुखाने में एक घन्टा लग जायेगा. अगर आप फोटो दे दें तो प्रिन्टर से निकाल कर कपड़े पर पांच मिनट में चिपका दूँगा.  मैंने इन्टरनेट चालू कर गूगल पर हंसिया हथौड़ा का फोटो डाउनलोड करके पेन्टर को दिया और उसने दस मिनट में हंसिया हथौड़ा लाल कपड़े पर बना दिया.

हम झन्डा लेकर कामरेड मस्तराम वालिया के निवास पर वापस आये तो पता चला शवयात्रा श्मशान की ओर निकल चुकी है.  हम चारों लोग झन्डा लेकर दौड़ कर शवयात्रा में शामिल हो गये. लेकिन अब झन्डे को कामरेड के शव पर कैसे डालें ?

मैंने धीमे से बाकी तीनों कामरेड से कहा झन्डा फैलाकर पकड़ लो और नारे लगाना शुरू करते हैं.  कामरेड नानकचन्द और मैनें लाल झन्डा फैला कर तान दिया.  आगे-आगे लोग राम नाम सत्य के नारे लगा रहे थे.

मैंने ज़ोर से नारा लगाया कामरेड मस्तराम वालिया को लाल सलाम…  बाकी तीनों कामरेड ने ज़ोर से जवाब दिया –लाल सलाम… लाल सलाम…

मैंने कहा कामरेड वालिया को जय भीम… तीनों कामरेड ने जवाब दिया. जय भीम… जय भीम…

मैंने कहा दुनिया के किसानों मज़दूरों का संघर्ष जिंदाबाद… जवाब आया. जिंदाबाद… जिंदाबाद…

हमारे नारे सुनने के लिये राम नाम सत्य वाले अपने नारे बन्द कर चुके थे. शमशान घाट आ गया था.

किसी ने हमसे कहा आप लोग शव पर लाल झन्डा चढ़ाना चाहते हैं तो आ जाइये. हमने कामरेड मस्तराम वालिया के शव पर झन्डा डाल दिया और एक बार फिर से चार कामरेडों के इन्क़लाब जिन्दाबाद और दूसरे इन्कलाबी नारों से आस पास का इलाका गूंज गया.

शव को आग के हवाले कर दिया गया था. उपस्थित लोग कश्मीर में सेना की कार्यवाही का समर्थन करने लगे.  कामरेड विपिन ने इस पर पूरा विश्लेषण सुनाया. सब लाजवाब थे.

कुछ घन्टों बाद हम सब वापस चले गये. लेकिन तय पाया गया कि हमें बार-बार मिलते रहना चाहिये,  सिर्फ शवयात्राओं में नहीं , वैसे भी…

 

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]