Exclusive

दंगो के नाम पर सिर्फ दिल्ली में ही एक अरब से अधिक खर्च…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

भीड़ आतंकवाद से भी खतरनाक होती है. आतंकवादियों का एक निश्चित उद्देश्य होता है लेकिन भीड़ निरुद्देश्य होती है. उत्तेजित भीड़ किसी बम से भी खतरनाक है. भड़काऊ जुमलों के बाद भीड़ का इंसानी जिंदगियों को लीलना कोई नई बात नहीं है. हिंदुस्तान में इतने लोग आतंकी घटनाओं में नहीं मरे हैं उनसे कई गुना अधिक लोग उग्र भीड़ की भेंट चढ़ चुके हैं. और इसी भीड़ के उग्र रूप का परिणाम दंगा होता है, जो नेताओं के लिए ब्लैंक चेक बन जाता है. नेता अपनी मर्जी से जब चाहे तब उसे भुना लेते हैं. जब देश में दंगों की संख्या अचानक बढ़ जाए तो समझ लीजिए… राजनीति आपके वोट की प्यासी हो गई है. और वोट की यह प्यास मासूमों के खून से ज्यादा बुझती है.

हमारा देश एक बार फिर दंगों की आग में झुलस रहा है. अभी इस साल के 8 महीने नहीं गुज़रे कि 8 से ज़्यादा बड़े दंगे देश में अलग-अलग जगहों पर हो चुके हैं. लगता है देश को दंगों और खौफ में रहने की आदत सी हो गई है.  नई शताब्दी का स्वागत भी हमने गुजरात दंगों से किया था.

बहरहाल, अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो BeyondHeadlines को महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग से आरटीआई के ज़रिए मिली जानकारी के मुताबिक सिर्फ महाराष्ट्र में 1995 से 2011 तक दंगों के 2158 मामले थानों में दर्ज हुए.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि इन दंगों में 1996 से 2011 तक कुल 99 लोगों की मौत हुई हैं, जिनमें 65 मुसलमान हैं और एक भी पुलिस वाला नहीं है. वहीं कुल 4356 लोग ज़ख्मी हुए, जिनमें 1465 हिन्दू, 1213 मुस्लिम और 1631 पुलिस वाले थे. अगर इन दंगों में आर्थिक नुक़सान के बारे में बात करें तो सबसे ज़्यादा नुकसान आर्थिक रुप से पिछड़े हुए मुसलमानों का हुआ है.

आंकड़े बताते हैं कि 1996 से 2011 तक 48,99,99,845 (48 करोड़ 99 लाख 99 हज़ार आठ सौ पैंतालिस रूपये) का नुकसान मुसलमानों का हुआ है, वहीं हिन्दू भाईयों को 33,86,69,109 (33 करोड़ 86 लाख 69 हज़ार एक सौ नौ रूपये) और सरकार को 2,02,68,845 (2 करोड़ 02 लाख 68 हज़ार आठ सौ पैंतालिस रूपये) का नुकसान हुआ है. इस तरह से देश का 85,89,12,289 (85 करोड़ 89 लाख 12 हज़ार 289 रूपये) का नुक़सान हुआ है.

वहीं अगर दिल्ली की बात करें तो आरटीआई से मिले कागज़ात बताते हैं कि दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के राहत शाखा के मुताबिक आहुजा कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 2733 दंगे 1984 से लेकर अब तक दिल्ली राज्य में हुए हैं. इन दंगों के बाद 1,59,36,57,409 (1 अरब 59 करोड़ 36 लाख 57 हज़ार 409रूपये) रूपये मुआवज़ा दिया गया है. पैसों का यह आंकड़ा रिलीफ पैकेज 2006 से 31.03.2012 तक का है.

BeyondHeadlines की आरटीआई देश के तमाम राज्यों में भेजा गया था. उत्तर प्रदेश के साम्प्रदायिकता नियंत्रण प्रकोष्ठ ने आरटीआई के जवाब में बताया कि मांगी गई सूचना आरटीआई की धारा-8 (1) से निषिद्ध है. इसके अलावा बाकी के राज्यों ने भी दंगों के संबंध के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी.

हालांकि BeyondHeadlines ने अपनी आरटीआई में यह भी पूछा था कि इन दंगों में कितने सरकारी अधिकारियों को अभियुक्त बनाया गया. उनके नाम व पदों की सूची उपलब्ध  कराएं. इनके खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की गई है. यह अधिकारी पहले किस पद पर थे और अब किस पद पर हैं. यदि वो रिटायर हो चुके हैं, तो अब वो किस पद पर हैं. अब तक कितने लोगों को सज़ा हो पाई है. लेकिन इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई…

सिर्फ उत्तराखंड के पुलिस अधीक्षक जनपद उधम सिंह नगर ने बताया कि थाना हाजा स्तर पर सिर्फ एक दंगा 1994 में हुआ, जिसमें 3 लोग मारे गए. उक्त दंगे में तीन सरकारी अधिकारी अभियुक्त बनाए गए. इन सरकारी अधिकारी पर वर्ष 1999 में धारा 302 IPC के अंतर्गत मुक़दमा दर्ज हुआ, जो न्यायालय में अभी तक विचाराधीन है. इन सरकारी अधिकारियों में से एक प्रभारी निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे तथा बाकी के दोनों आरक्षी पद पर थे, वर्तमान में तीनों उत्तर-प्रदेश राज्य हेतु कार्यमुक्त किए जा चुके हैं.

ऊपर दिए गए आंकड़ों से साफ है कि दंगों की कीमत में सिर्फ इंसानी जानें ही जाया नहीं हुई बल्कि अरबों रुपये की संपत्ति भी राख हो गई. अब बस एक सवाल आप खुद से पूछिएगा कि जब इंसानियत ने जान देकर कीमत चुकाई, अरबों की संपत्ति बर्बाद हुई तो दंगों से फायदा किसे हुआ?

इस पर भी गौर फरमाएं…

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2008 से आतंकवादी और दंगों की घटनाओं में जान गंवाने वाले और घायल होने वाले लोगों की मदद के लिए एक योजना चलाई है. इस योजना के तहत  आतंकवाद और दंगों की घटनाओं में जान गंवाने वाले लोगों और 50 फीसदी से अधिक विकलांग हुए लोगों के परिवार के  लिए 3 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है. यह उन्हीं परिवारों की दी जाती है जिन्हें सरकारी नौकरी नहीं दी जाती है.  यह पैसा लाभार्थी परिवार के खाते में फिक्स्ड डिपाजिट के लिए जमा करवा दिया जाता है. तीन साल तक यह पैसा खाते से नहीं निकाला जा सकता. इस पैसे से मिलने वाला ब्याज लाभार्थी परिवार के बचत खाते में हर तिमाही में भेज दिया जाता है. आतंकवाद और दंगों की घटनाओं के मे जान गंवाने वाले के परिवार के लिए यह योजना एक अप्रैल २००८ से लागू है जबकि नक्सली घटनाओं में जान गंवाने वाले नागरिकों के लिए यह २२ जून २००९ से लागू है. इस स्कीम के तहत २० जून २०१२ तक 144 परिवारों के नाम 4.32 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं.
Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]