Abhishek Upadhyay for BeyondHeadlines
पहाड़ टूट पड़ा है आज़म खान पर… बोस्टन एयरपोर्ट पर कुछ देर रोक लिए गए और पूछताछ हो गई, तो बड़ा भारी और भयंकर अपमान हो गया उनका. लग रहा है कि जैसे अटैची में कपड़े नहीं सम्मान गठिया के रखे हुए थे.
अब खुद के मुसलमान होने की याद आ रही है. मुसलमानो के अपमान की बात याद आ रही है. जैसे लग रहा है कि हावर्ड बिजनेस स्कूल अमेरिका में नहीं बल्कि आइसलैंड में हो कि मुसलमानों से खतरा होने के बावजूद उन्हें अमेरिका का न्योता भेज दिया.
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि इस देश में मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक हालत बद से बदतर है. मुसलमानो का एक बड़ा तबका गरीबी और घुटन की जिंदगी जीने को मजबूर है. आज़म ख़ान रामपुर के रहने वाले हैं. देश भर के मुसलमानो का ठेका लेते हैं. दिमाग पर जोर डाल कर कभी बता दें कि रामपुर के मुसलमान किस हाल में हैं?
आज़म के पास सपा की सरकारों में कई बार सत्ता की चाभी रही है. क्या रामपुर के गरीब मुसलमानो की मासिक या दैनिक आमदनी में कोई इज़ाफा हुआ? हवेली नुमा घर में रहते हैं आज़म मगर रामपुर के गरीब मुसलमान किन गलियों में और किन हालातों में रहते हैं, उन्हें इल्म है इस बात का? जिन बास मारती नालियों के इर्द गिर्द इन गरीबों का पूरा परिवार पल जाता है, आज़म को अगर कभी उससे बीस फर्लांग दूर भी खड़ा होना पड़े तो झनझना कर और चक्कर खाकर उलट जाएंगे, आज़म. रामपुर में आज़म ख़ान की आलीशान दावतों में जितना पनीर और कबाब बच जाता होगा, उसकी कुल कीमत में कई गरीब मुसलमानों का पूरे साल पेट पल सकता है और वह भी पेट भर के.
अमीरी की कमर तोड़ देने वाली जिंदगी जीने और पीढ़ी दर पीढ़ी यही जिंदगी अपनी औलादों के लिए मुकम्मल कर लेने के बाद इन्हें खुद के मुसलमान होने की याद आती है और वह भी तब जब इनके खोखले “इगो” पर एक तिनके भर की भी चोट लग जाती है. हिंदुओं की तरह ही मुसलमानो को भी सबसे बड़ा खतरा अपनी ही कौम के इन मौकापरस्तों से है जो सिर्फ अपनी “सत्ता”, अपने “ऐशो आराम” और अपनी “दौलत” के लिए कौम के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं… कुछ भी…